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अगस्त्य ऋषि का जीवन परिचय | Biography of Maharishi Agastya in Hindi

अगस्त्य ऋषि का जीवन परिचय
अगस्त्य ऋषि का जीवन परिचय

अगस्त्य ऋषि का जीवन परिचय (Biography of Maharishi Agastya in Hindi)- ऋषि वशिष्ठ के लघु भ्राता और प्रख्यात वैदिक ऋषि अगस्त्य का विवरण वेदों, महाकाव्यों व पुराणों में कई प्रसंगों में आया है। ये ऋग्वेद के अनेक सूत्रों के दृष्टा हैं। अगस्त्य को मित्र और वरुण देवताओं का पुत्र प्रदर्शित किया गया है। उर्वशी को देखकर इन दोनों का पुरुषत्व एक साथ स्खलित हो गया था, जिसे इन्होंने कुंभ अथवा कमल पर डाल दिया। उसी से अगस्त्य और वशिष्ठ ऋषि पैदा हुए। विदर्भ नरेश निमि की पुत्री लोपामुद्रा अगस्त्य की भार्या थीं। इनका भी वैदिक मंत्र दृष्टा के रूप में विवरण मिलता है। महाभारत के अनुसार अगस्त्य ऋषि को अपने पितरों की मुक्ति के लिए जब विवाह करने की आवश्यकता हुई तो अपने योग्य कोई कन्या न मिलने पर इन्होंने तपोबल द्वारा एक सर्वगुण संपन्न कन्या की उत्पत्ति की और उसे संतान की कामना से तप कर रहे विदर्भराज को प्रदान किया। युवा होने पर ऋषि ने उसे अपनी पत्नी का दर्जा प्रदान किया।

ऋषि अगस्त्य को प्राचीन आर्य सभ्यता का दक्षिण भारत में प्रसार करने का श्रेय दिया जाता है। इस प्रकरण में प्राप्त कथाओं के अनुसार विंध्याचल पर्वत का अहंकार खंडित करने के लिए नारद ने एक उपाय किया। इनके सिखाने में आकर विंध्याचल इतना ऊपर उठा कि इसने सूर्य का मार्ग ही बाधित कर दिया। इस स्थिति में स्वतंत्रता पाने के लिए विष्णु ने देवताओं को काशीवासी अगस्त्य ऋषि के पास भेजा।

ऋषि इस विपदा को मिटाने के लिए दक्षिण की तरफ चल पड़े। इन्हें आया देखकर विंध्याचल ने झुककर विनत भाव से आदेश मांगा तो ऋषि ने कहा कि जब तक मैं लौटकर न आऊं, इसी प्रकार झुके हुए रहना। ये दक्षिण की तरफ चले गए और पुनः वापस नहीं आए। इसी वजह से कुछ पुराणों में इन्हें दक्षिण का वासी होना बताया गया है।

एक बार अगस्त्य ने आचमन करके संपूर्ण समुद्र सोख लिया था। देवासुर युद्ध के पश्चात् जब दधीचि की अस्थियों का वज्र बनाकर इंद्र ने वृत्त नाम के असुर को मार दिया तो दैत्य समुद्र में जा छिपे । ये पूरे दिन समुद्र के भीतर रहते और रात्रि में ऋषि-मुनियों व देवताओं पर आक्रमण करते। इस पर देवताओं की विनय से प्रेरित होकर ही अगस्त्य ने संपूर्ण समुद्र का जल सोख लिया, ताकि राक्षस मारे जा सकें। एक भिन्न कथा के अनुसार समुद्र अगस्त्य की पूजन सामग्री बहा ले गया था। इससे नाराज होकर ऋषि ने आचमन करके उसे सुखा दिया, किंतु बाद में लघु शंका द्वारा उसे मुक्त भी कर दिया। कुछ विद्वान इस कथा को दृष्टांत मानकर कहते हैं कि समुद्र सोखने का तात्पर्य है- चातुर्मास की समाप्ति पर ‘अगस्त्य’ तारे का उदय पर वर्षा का योग समाप्त प्रायः माना जाता है।

पांडवों के पूर्वज राजा नहुष को श्राप द्वारा सर्प बनाने वाले भी अगस्त्य ही थे। वृत्रासुर के डर से छिपे इंद्र का आसन अपने तपोबल से नहुष ने अपने अधिकार में कर लिया था। उसकी बुरी दृष्टि इंद्र की पत्नी शची पर भी थी। शची ने कहा, ‘यदि नहुष सप्तऋषियों द्वारा उठाकर लाई गई पालकी में बैठकर आए, तभी वह इनका स्वागत करेगी।’ नहुष ने सप्तऋषियों को पालकी में जोता और सर्प-सर्प ‘शीघ्र-शीघ्र’ कहकर अगस्त्य के सिर पर लात मार दी। कुपित ऋषि ने उसे सर्प बनकर भूमि पर गिर जाने का श्राप दिया। गज-ग्राह युद्ध के गज को श्रापित करने वाले भी अगस्त्य ऋषि ही थे। वनवास समय में राम के इनसे मिलने का भी विवरण पाया जाता है।

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