शाहजहां का जीवन परिचय (Biography of Shah Jahan in Hindi)– अपने ही भ्राता शहज़ादा खुसरो के साथ शाहजहां की कभी भी नहीं बनी थी। शहजादा खुसरो यद्यपि शाहजहां का बड़ा भाई था, लेकिन वह पिता जहांगीर के द्वारा अंधा करवा दिया गया था। शाहजहां का बाल्यकालीन नाम खुर्रम था। यही खुर्रम मुगल वंश का पांचवां हिंदुस्तानी बादशाह बना था। इसी शाहजहां के द्वारा विश्वविख्यात ताजमहल का निर्माण अपनी बेगम मुमताज महल की याद में करवाया गया था। खुर्रम उर्फ शाहजहां का दूसरा निकाह आसफ ख़ां की पुत्री अर्जमंद बानू बेगम के साथ हुआ, जो मुगल दरबार का रईस व ताकतवर दरबारी भी था और नूरजहां का भाई भी। इस प्रकार नूरजहां के भाई की पुत्री से शाहजहां का विवाह करवाया तो इसके छोटे भाई शहरयार से अपनी उस बेटी का निकाह करवा दिया, जो उसे पहले शौहर से हुई थी। इस प्रकार वह शहरयार को ही जहांगीर का उत्तराधिकारी भी बनाना चाहती थी। खुर्रम (शाहजहां) ने अपने पिता के शासनकाल में ही अपनी दिलेरी और सैन्य निपुणता का परिचय देकर इनका विश्वास हासिल कर लिया था। मेवाड़ की मोर्चेबंदी करके उसे मुगलों की अधीनता कबूल करने पर विवश किया। दक्षिण में मलिक अंबर को परास्त करने के जिस काम को दूसरे सरदार वर्षों से नहीं कर पा रहे थे, खुर्रम ने उसे तीन माह में पूर्ण कर दिखाया। इस पर जहांगीर ने खुश होकर उसे ‘शाहजहां’ का खिताब प्रदान किया था।
Shah Jahan Biography In Hindi | मुगल शासक का जीवन परिचय
नाम | शाहजहाँ |
उपनाम | मिर्जा शहाब-उद-दीन बेग मुहम्मद खान खुर्रा |
लोकप्रिय | 5 वें मुगल सम्राट के रूप में |
जन्म | 5 जनवरी 1592 |
जन्मतिथि | लाहौर किला, लाहौर, मुगल साम्राज्य |
कार्य | वास्तुकला, कला और संस्कृति में उनके योगदान |
माता पिता | जहांगीर/बिलकीस मकानी |
पत्निया | कन्दाहरी बेग़म, अकबराबादी महल, मुमताज महल , हसीना बेगम, मुति बेगम, कुदसियाँ बेगम, फतेहपुरी महल, सरहिंदी बेगम |
बच्चे | पुरहुनार बेगम , जहाँआरा बेगम , दारा शिकोह , शाह शुजा , रोशनआरा बेगम , औरंग़ज़ेब , मुराद बख्श, गौहरा बेगम |
राज्याभिषेक | 4 फ़रवरी 1628 |
शासनकाल | जनवरी 1628 -31 जुलाई 1658 |
धर्म | मुस्लिम |
मुगलों में सिंहासन पाने हेतु प्रतिस्पर्धा चल रही थी। नूरजहां शाहजहां के खिलाफ थी। जहांगीर की तबियत खराब चल रही थी। तथापि शाहजहां को कंधार और दक्षिण के विद्रोह को कुचलने के लिए जाना पड़ा। इससे अपने पिता के प्रति इसके हृदय में बगावत की भावना का उदय हुआ। 1627 में जहांगीर का निधन हो गया। शाहजहां के आगरा लौटने तक इसके ससुर आसफ खां ने इसके हितों की रक्षा की और 1628 में वह सिंहासन पर बैठ पाया।
शाहजहां के शासनकाल में तीन बगावत हुई, किंतु तीनों कुचल दी गईं। वह सर्वाधिक वैभवशाली मुगल बादशाह था। इसने तब एक करोड़ की लागत से मयूर सिंहासन का निर्माण करवाया। आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया जिसमें 22 वर्ष का समय लगा। वहां इसने कुछ दूसरी इमारतें भी बनवाईं। 1648 में शाहजहां राजधानी आगरा से दिल्ली ले गया। वहां भी इसने दीवाने-आम और दीवाने-खास सहित एक महल का निर्माण करवाया। शाहजहां अपनी न्यायप्रियता, उदारता और प्रजाहित के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन इसके जीवन का अंतिम समय बेहद खराब था। शाहजहां को कैद में डाल दिया गया, जहां से वह ताजमहल का अवश्य ही दीदार किया करता था। इसके अंत समय में इसकी पुत्री ने इसकी काफी सेवा की थी।
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