श्री राधा रानी का जीवन परिचय (Biography of Shri Radha Rani in Hindi)– आध्यात्मिक भक्ति के रूप में भारतीय कला व लोक संस्कृति दोनों में ही राधा को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। महत्व की पराकाष्ठा को इसी बात से समझा जा सकता है कि राधा का नाम स्मरण करते ही भगवान श्रीकृष्ण का नाम भी स्वतः ही जिह्वा पर आ जाता है। यद्यपि श्रीकृष्ण एवं राधा को लेकर कई दंतकथाएं लोक जीवन में प्रचलित रही हैं, किंतु इनके वास्तविक जीवन की घटनाओं के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते। इन्हें बरसाने की आभीरपति वृषभानु गोप की सुपुत्री स्वीकारा जाता है। राधा की माता का नाम कीर्तिदा था। पद्म पुराण के विवरणानुसार ये वृषभानु नरेश को यज्ञ हेतु भूमि साफ करने के दौरान मिली थीं और राजा ने पुत्री के रूप में राधा की परवरिश की। कृष्ण की बाललीलाओं में सभी स्थानों में राधा की उपस्थिति है, लेकिन महाभारत में कृष्ण की कथा के साथ राधा का विवरण प्राप्त नहीं होता है। भागवतगीता में भी इसका स्पष्ट बखान नहीं किया गया है।
परवर्ती संप्रदाय, जो भिन्न पुराणों को महत्व देते हैं, राधा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। भागवत् पुराण के अनुसार कृष्ण एक अनाम गोपी का इतना सम्मान करते हैं कि इसके साथ अकेले भ्रमण करते हैं। दूसरी गोपियां इसके इस सौभाग्य को देखकर ईर्ष्या करके ये अनुमान लगाती हैं कि उस गोपी ने पूर्वजन्म में अवश्य ही श्रीकृष्ण की आराधना ज्यादा भक्तिभाव से की होगी। कुछ विद्वान लोग इसी कारण से ‘राधा’ नाम का उद्भव मानते हैं। ‘राध्’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है उज्ज्वल, आनंददायक। इस शब्द का प्राथमिक उपयोग कब से आरंभ हुआ; यह अज्ञात है। निंबार्क संप्रदाय राधा को सबसे पहले और सर्वोपरि मान्यता प्रदान करता है। इनके द्वारा राधा को कृष्ण की कल्पित पत्नी माना गया है, किंतु ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा को कृष्ण की सखी व राणण नाम के व्यक्ति की पत्नी प्रदर्शित किया गया है।
राधा के बारे में अलौकिकता का भी विवरण मिलता है, कृष्णावतार के दौरान विष्णु ने अपने परिवार के सभी देवताओं को पृथ्वी पर जन्म लेने की अनुमति दी थी। विवरण के अनुसार विष्णु की प्रिय सखी राधा ने भी धरती पर आना स्वीकार किया था। राधा का जन्म भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन का माना जाता है। कृष्ण के प्रति इनका आत्मिक लगाव सामाजिक मान्यताओं की वर्जना कर दिव्य भाव में परिवर्तित हो गया। अक्रूर जब श्रीकृष्ण को गोकुल से मथुरा ले गए तो यह अलौकिक लगाव और अधिक बढ़ गया।
इसके पश्चात् राधा की श्रीकृष्ण से सिर्फ एक ही बार भेंट हुई। सूर्य-ग्रहण के समय श्रीकृष्ण द्वारिका से कुरुक्षेत्र आए थे, तभी नंदराय भी गोपीजनों के साथ वहां उपस्थित हुए थे।
आध्यात्मिक सोच से कृष्ण को शक्तिपुंज और राधा को इनकी शक्ति का स्त्रोत माना जाता है। देश में इसी रूप में ‘राधा-कृष्ण युगल’ रूप में पूजा करते हैं। इस पूजा की शुरुआत कुछ विद्वान वृंदावन में 1100 के लगभग होना मानते हैं। यहीं से इसका विस्तार देश के अन्य प्रदेशों में भी हुआ। भक्ति साहित्य में राधा का बखान बेहद भक्तिभाव से किया गया है। कई संप्रदायों में राधा एवं कृष्ण के अलौकिक व निराकार प्रेम का महत्व माना गया है। आधुनिक साहित्य में भारतेंदु हरिश्चंद्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, हरिऔध और मैथिलीशरण गुप्त जैसे दिग्गजों की रचनाओं में भी राधा के आदर्श प्रेम का दिग्दर्शन होता है। राधाकृष्ण का नाम बेहद आदर के साथ ही लिया जाता है।
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