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महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय | Maharshi Panini Biography in Hindi

महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय
महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय

महर्षि पाणिनि का जीवन परिचय (Maharshi Panini Biography in Hindi)- ‘समय की जंग से, जो नाम अक्षुण्ण रह जाते हैं, वही महानता के द्योतक होते हैं।’  पाणिनि का नाम भी इनमें शामिल किया जाता है। यद्यपि इतिहासकार इनके जन्म, जीवनकाल एवं मृत्य को लेकर एकमत नहीं हो पाए हैं, किंतु समझा जा सकता है कि पाणिनि के समय में इतिहासकार राजा-महाराजाओं के आदेश पर इनकी स्तुतिवंदना करने वाला इतिहास ही लिखा करते थे। विद्वान व्यक्ति यदि इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाता है तो इसके पीछे उसकी विलक्षण प्रतिभा से इनका कृतित्व ही मजबूत कारण बनता है। पाणिनि के संस्कृत के परम ज्ञान ने ही इन्हें एक विद्वान पुरुष के रूप में जीवित रखा है।

२३६१ संस्कृत भाषा के महान व्याकरणविज्ञ और ‘अष्टाध्यायी’ के सृजक रहे पाणिनि का जीवनकाल कुछ इतिहासकार सातवीं सदी ई. पूर्व का मानते हैं तो कुछ पांचवी सदी ई. पूर्व का।

पाणिनि का जन्म अफगानिस्तान में उस स्थान पर, जहां काबुल नदी और सिंधु नदी का संगम स्थल है, शलातुर गांव में संपन्न हुआ। यह स्थान अब लहुर कहलाता है। इनके पिता का नाम शलंक था और माता का दाक्षी। शायद पाणिनि इनका कुल गोत्र था। कुछ लोग पाणि नाम के ऋषि पुत्र होने से इनका नाम पाणिनि होना स्वीकार करते हैं।

तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् संस्कृत व्याकरण निर्माण मे जुट गए। वैदिक संस्कृत उस समय बेहद दुष्कर मानी जाती थी। ‘लौकिक’ संस्कृत के शीर्षक से एक भिन्न संस्कृति का रूप भी सामने आ गया था। पाणिनि ने अर्वाचीन ग्रंथों की और नए प्रचलन का शब्दकोश द्वारा नवीन व्याकरण की रचना की। इनका ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी‘ व्याकरण ग्रंथ होने के साथ ही उस समय की सामजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और भौगोलिक स्थिति का भी साक्ष्य है। इसे वेदों के पश्चात्वर्ती और पुराणों से पूर्ववर्ती भारतीय इतिहास के रूप में प्रामाणिक ग्रंथ की प्रतिष्ठा प्राप्त है। इन्होंने तत्कालीन लोक जीवन का भी शोधकार्य उसमें प्रस्तुत किया है।

सामान्य जीवन का प्रत्येक महत्वपूर्ण विषय उसमें शामिल किया गया था। पाणिनि मध्यमार्गी रहे थे, उससे ऐसा आभास होता है। इन्होंने प्रचलित मत मान्यताओं में से किसी के प्रति पक्षपात नहीं किया। इन्होंने अनेक सुदूरपूर्व की यात्राएं कीं। समाज के प्रत्येक वर्ग से संपर्क किया। वैदिक परिषदों में भी गए। इस तरह एक शोधार्थी की भांति सापेक्ष भाव से अनुभव व सामग्री को एकत्र किया और उससे अपने महान ग्रंथ की रचना की। इस कारण पाणिनि को संस्कृत भाषा का प्रामाणिक विद्वान माना जाता है।

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