तुकाराम का जीवन परिचय (Biography of Saint Tukaram in Hindi)- भक्ति काव्य की प्राचीनकाल में पर्याप्त महिमा रही है। कबीरदास, मीराबाई और सूरदास की परंपरा में संत तुकाराम को भी रखा जाता है। इतिहासकार इनके जन्मकाल को लेकर परस्पर एकराय कायम नहीं कर पाए और इनका जीवनकाल भी संदेह के घेरे में ही रहा है। तथापि कुछ दंतकथाएं इनके बारे में प्रचलित रही हैं और उन दंतकथाओं से ही इनके जीवन की आधी-अधूरी तस्वीर सामने आती है। ऐसी मान्यता है कि इनका जन्म पुणे जिले के देहू गांव में एक सामान्य वणिक परिवार में हुआ था। साधारण शिक्षा के पश्चात् वे अपने पिता के साथ कारोबार करने लगे थे, लेकिन 18 वर्ष की उम्र में इनके पिता का निधन हो गया।
इसी दौरान महाराष्ट्र में भयानक दुर्भिक्ष पड़ा। ये उस समय तीर्थयात्रा पर गए हुए थे। घर लौटने पर देखा कि इनका संपूर्ण कारोबार समाप्त हो गया है। दुर्भिक्ष में इनकी पहली पत्नी, मां व ज्येष्ठ पुत्र का भी निधन हो गया। अब अभाव और मुश्किलों का यातना प्रदायक दौर आरंभ हो गया। इनकी दूसरी पत्नी रईस परिवार से थी, लेकिन थी बेहद कर्कशा। तुकाराम अपना समय विट्ठल के भजन- गायन में गुजारते थे और पत्नी दिन-रात उलाहने दिया करती। ये गायन में इतने मग्न रहते थे कि एक बार किसी का सामान बैलगाड़ी में ढोकर पहुंचाने जा रहे थे। पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि गाड़ी में लदी बोरियां मार्ग में ही चोरी हो चुकी हैं। इसी तरह धन वसूल करके घर लौटते समय एक गरीब ब्राह्मण की करुण गाथा सुनकर संपूर्ण रुपया उसे दे दिया।
घर की कलह से परेशान होकर तुकाराम नारायणी नदी के उत्तर में मानतीर्थ नामक पहाड़ी के शिखर पर जा बैठे और ईश्वर का गुणगान करने लगे। इससे विचलित होकर पत्नी ने देवर के द्वारा इन्हें घर बुलाया और अपने तरीके से रहने की आजादी दे दी। अब तुकाराम ने ‘अभंग’ रचकर कीर्तन करना शुरू कर दिया। इसका लोगों पर गहरा असर पड़ा। कुछ लोग घोर विरोधी भी बन गए। कहते हैं, रामेश्वर भट्ट नामक कन्नड़ ब्राह्मण ने कहा कि तुम अभंग रचकर और कीर्तन करके लोगों को वैदिक धर्म के खिलाफ कह रहे हो। तुम यह कार्य बंद कर दो। इसने संत तुकाराम को देहू गांव से निष्कासित करने का भी आदेश जारी करवा दिया। इस पर तुकाराम नै रामेश्वर भट्ट से जाकर कहा कि मैं तो विट्ठल की अनुमति से काव्य पाठ करता हूं। आप कहेंगे तो मैं यह कार्य बंद कर दूंगा। यह कहते हुए इन्होंने स्वरचित अभंगों का बस्ता नदी में डाल दिया, लेकिन 13 दिन पश्चात् लोगों ने देखा कि जब तुकाराम ध्यानमग्न बैठे थे, तब इनका बस्ता सूखी स्थिति में नदी की धारा पर तैर रहा है। ज्ञात होने पर रामेश्वर ने भट्ट भी इनका शिष्यत्व धारण कर लिया।
अभंग छंद में तुकाराम रचित लगभग 4,000 पद प्राप्त होते हैं। इनका मराठी भाषी जन के हृदय में गहरा सम्मान है। लोग इनका पाठ करते हैं। इनकी रचनाओं में ‘ज्ञानेश्वरी’ एवं ‘एकनामी भागवत’ की छाप स्पष्ट नजर आती है। काव्य के दृष्टिभाव से भी ये रचनाएं उत्कृष्ट दरजे की स्वीकार्य की गई हैं। महज 42 वर्ष की आयु में संत तुकाराम की मृत्यु हो गई। इनका देहू ग्राम तीर्थ माना जाता है और 5 दिन तक वार्षिक आधार पर इनकी पुण्यतिथि का पर्व मनाया जाता है।
FAQ
संत तुकाराम महाराज कौन थे?
संत तुकाराम महाराज भारत के महाराष्ट्र के एक प्रमुख भक्ति संत और कवि थे, जो अपनी भक्ति रचनाओं और सामाजिक सुधार प्रयासों के लिए जाने जाते थे।
संत तुकाराम महाराज किस लिए प्रसिद्ध हैं?
वह भगवान विठोबा (भगवान कृष्ण का एक रूप) के प्रति अपनी अटूट भक्ति और अभंग और कीर्तन की रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।
अभंग और कीर्तन क्या हैं?
अभंग मराठी में भक्ति गीत हैं, और कीर्तन भक्ति भजन हैं। तुकाराम के अभंग और कीर्तन भगवान के प्रति उनके प्रेम और उनके आध्यात्मिक अनुभवों को व्यक्त करते हैं।
तुकाराम के जीवन में पंढरपुर का क्या महत्व है?
पंढरपुर भगवान विठोबा से जुड़ा एक पवित्र तीर्थ स्थल है। तुकाराम ने कई बार पंढरपुर का दौरा किया और इसे अपने प्रिय देवता का निवास माना।
तुकाराम ने सामाजिक सुधार में किस प्रकार योगदान दिया?
तुकाराम ने सामाजिक समानता, समावेशिता और सद्भाव की वकालत की। उन्होंने अधिक समतावादी समाज को बढ़ावा देते हुए जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता को खारिज कर दिया।
संत तुकाराम महाराज की विरासत क्या है?
उनकी विरासत में भक्ति साहित्य का समृद्ध भंडार, सामाजिक सुधार के प्रति प्रतिबद्धता और मराठी संस्कृति और आध्यात्मिकता पर स्थायी प्रभाव शामिल है।
पंढरपुर की वार्षिक वारी तीर्थयात्रा क्या है?
वारी एक वार्षिक तीर्थयात्रा है जहाँ भक्त भक्ति गीत गाते हुए पंढरपुर तक जाते हैं। तुकाराम इस तीर्थयात्रा में नियमित भागीदार थे।
संत तुकाराम जयंती का क्या महत्व है?
संत तुकाराम जयंती, संत तुकाराम महाराज की जयंती है और इसे भक्ति और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।
तुकाराम की शिक्षाओं की सार्वभौमिक अपील क्या है?
तुकाराम की शिक्षाएँ भाषाई सीमाओं से परे हैं और प्रेम, भक्ति और सामाजिक सद्भाव के अपने संदेशों से दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती रहती हैं।
कोई संत तुकाराम की शिक्षाओं का पालन कैसे कर सकता है?
उनकी शिक्षाओं का पालन करने में सामाजिक न्याय और समानता के प्रति प्रतिबद्धता के साथ-साथ सादगी, भक्ति, विनम्रता और ईश्वर के प्रति प्रेम का जीवन अपनाना शामिल है।
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