कित्तूर रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय | Kittur Rani Chennamma History in Hindi- ब्रितानी फौज को इनको द्वारा महज सशस्त्र चुनौती ही नहीं दी गई, बल्कि दो बार पीछे हटने के लिए भी मजबूर कर दिया था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ही भांति कर्नाटक के कित्तूर की रानी चेनम्मा ने भी अपार शौर्य का प्रदर्शन किया था। स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दोनों ही नारियों ने ब्रिटिश सेना के विरुद्ध संघर्ष किया था।
कित्तूर रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय (Kittur Rani Chennamma History in Hindi)
नाम | रानी चेन्नम्मा |
जन्म | 23 अक्टूबप 1778 |
पति का नाम | राजा मल्लसरजा |
मौत | 21 फरवरी 1829 |
प्रसिद्ध | घुड़सवारी, तलवारबाजी |
विद्रो | अंग्रेजो के खिलाफ |
रानी चेन्नम्मा की महानता को रेखांकित करने से पूर्व मैं राष्ट्र के कर्णधारों से ये कहना चाहता हूं कि गुलामी के प्रतीक ‘राष्ट्रमंडलीय कार्यक्रमों’ को महिमामंडित करके क्या वह अपने देश की गुलामी पर गर्व का अनुभव करते हैं ? रानी चेन्नम्मा व झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को यदि स्वतंत्रता संग्राम की नायिकाएं मानते हैं तो फिर गुलामी की मानसिकता को कायम रखने की क्या आवश्यकता है?
चेनम्मा अर्थात् खूबसूरत कन्या। चेन्नम्मा का जन्म 1778 में दक्षिण के काकातीय राजघराने में हुआ था। पिता धूलप्पा व माता पद्मावती ने इनका पालन- पोषण राजपरिवार के युवराज की तरह ही किया। उसे संस्कृत, कन्नड़, उर्दू व मराठी भाषाओं के अलावा अश्वारोहण, शस्त्र संचालन एवं युद्ध कौशल की भी शिक्षा प्रदान की गई। उचित समय पर कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ चेन्नम्मा का विवाह संपन्न हुआ। कित्तूर उस दौरान कर्नाटक के उत्तर में एक छोटा आजाद राज्य होता था, लेकिन यह बेहद संपन्न राज्य था। यहां हीरे-जवाहरात का क्रय- विक्रय हुआ करता था व सुदूर पूर्व से व्यापारी यहां आया करते थे।
चेन्नम्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया, किंतु अल्पायु में ही उसकी मृत्यु हो गई। कुछ दिन पश्चात् राजा मल्लसर्ज की मृत्यु हो गई। तब इनकी बड़ी रानी रुद्रम्मा का पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज सिंहासन पर बैठा व चेन्नम्मा की मदद से राजकार्य करने लगा। शिवलिंग की भी कोई संतति नहीं थी। अतः उसने अपने एक रिश्तेदार गुरुलिंग को गोद लिया और वसीयत लिख दी कि उसके बालिग होने तक शासन चेन्नम्मा देखेगी। फिर शिविलिंग का भी निधन हो गया।
अंग्रेजों की दृष्टि उस छोटे, किंतु संपन्न राज्य पर काफी समय से लगी थी। समय आते ही उन्होंने गोद लिए पुत्र को वारिस मानने से मना कर दिया और वे राज्य को हड़पने का षड्यंत्र रचने लगे। आधा राज्य देने का दाना फेंककर अंग्रेजों ने राज्य के कुछ गद्दारों को भी अपनी तरफ कर लिया, किंतु रानी ने साफ जवाब दिया कि उत्तराधिकार का प्रकरण हमारा निजी मसला है, अंग्रेजों को उससे दूर ही रहना चाहिए। साथ ही उसने अपनी प्रजा से कहा कि जब तक तुम्हारी रानी के शरीर में रक्त की एक भी बूंद है, कित्तूर को कोई नहीं हथिया सकता।
रानी का जवाब सुनकर धारवाड़ के कलेक्टर थैकरे ने 500 सिपाहियों के साथ कित्तूर का किला घेर लिया। वह 23 सितंबर, 1834 का दिन था। किले के द्वार बंद कर दिए गए थे। थैकरे ने बीस मिनट के भीतर आत्मसमर्पण करने की धमकी दे डाली। इतने में अकस्मात् किले के द्वार खुले और दो हजार दिलेर राष्ट्रभक्तों की अपनी सेना के साथ रानी चेन्नम्मा मर्दाने वेश में अंग्रेजों की सेना पर टूट पड़ी। थैकरे जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। दो गद्दार भी मौत के घाट उतार दिए गए।
अंग्रेजों ने मद्रास व मुंबई से सेना मंगाकर 3 दिसंबर, 1824 को पुनः कित्तूर पर घेरा डाला, किंतु इन्हें कित्तूर के देशभक्तों के सम्मुख पुनः पीछे हटने को विवश होना पड़ा। दो दिन पश्चात् वे पुनः सेना जमा करके आ धमके। फिरंगियों का पुनः सामना किया, पर इस बार इनकी हार हुई। रानी चेन्नम्मा को अंग्रेजों ने कैदी बनाकर कारावास में डाल दिया। इनके अनेक सहयोगियों को मृत्युदंड दिया गया। कित्तूर की दौलत लूट ली गई। 21 फरवरी, 1829 को जेल के भीतर ही इस वीरांगना रानी का निधन हुआ।
FAQ
Ans : रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को हुआ।
Ans : रानी चेन्नम्मा के पति का नाम राजा मल्लसरजा था।
Ans : रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा था।
Ans : रानी चेन्नम्मा की मौत 21 फरवरी 1829 को हुई।
Ans : रानी चेन्नम्मा घुड़सवारी और तलवारबाजी में विद्धमान थी।
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