अजातशत्रु कौन था?- भारतीय इतिहास में अजातशत्रु का नाम बेहद गौरव के साथ लिया जाता रहा है, लेकिन उस गौरव के साथ ही अपयश की कथाएं भी पल्लवित होती रही हैं। ऐसी मान्यता है कि अजातशत्रु मगध के सम्राट बिंबिसार का पुत्र था। इस प्रतापी राजा का शासनकाल ईसा पूर्व 516 से ईसा पूर्व 489 के मध्य माना जाता है। वह गौतम बुद्ध का समकालीन था और उसका विवरण बौद्ध एवं जैन ग्रंथों में भी मिलता है।
अजातशत्रु का इतिहास (Ajatshatru History In Hindi)
मगध के राजा अजातशत्रु का इतिहास (Ajatshatru History In Hindi) जानने से पहले हम संक्षिप्त में उनके जीवन परिचय की चर्चा करेंगे।
- पूरा नाम- मगध नरेश अजातशत्रु।
- अजातशत्रु के बचपन का नाम ajatshatru nickname- कुणिक।
- जन्म वर्ष- 509 ई.पू.
- मृत्यु वर्ष- 461 ई.पू.
- पिता का नाम- राजा बिंबीसार।
- माता का नाम- वैदेही।
- पत्नी का नाम- राजकुमारी वजीरा।
- पुत्र- उदयभद्र और उदयिन।
- धर्म- जैन धर्म और बौद्ध धर्म।
- आजातशत्रु के मंत्री का नाम- वस्सकार।
- पूर्ववर्ती राजा- बिंबिसार।
- उत्तरवर्ती राजा- उदयभद्र।
- शासनकाल- 492 ई.पू. से 460 ई.पू. तक।
एक जनश्रुति के अनुसार मान्यता है कि उसने अपने पिता की हत्या करके राजगद्दी पर कब्जा कर लिया था, किंतु अजातशत्रु एक बहादुर राजा था। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी और कौसल इत्यादि जनपदों पर जीत प्राप्त कर अपने साम्राज्य को समृद्ध किया। कौसल-नरेश प्रसेनजित को परास्त करके उसने राजकुमारी बाजिरा को पत्नी बनाया और काशी का जनपद दहेज के रूप में हासिल कर लिया। अजातशत्रु ने गंगा और सोन नदी के संगम पर स्थित पटील नाम के किले का निर्माण किया व पाटलीपुत्र नगर की बुनियाद रखी। यद्यपि पितृहंता के रूप में उसके मस्तक पर सदैव कलंक लगा रहा, किंतु वह जैन और बौद्ध दोनों धर्मों का सम्मान करता था। साथ ही गौतम बुद्ध के विरोधी एवं चचेरे भ्राता देवदत्त को भी उसका सहारा एवं मदद प्राप्त थी।
अजातशत्रु के राज्यकाल में ही गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था। अजातशत्रु ने इनके अवशेष प्राप्त करके राजगृह के पर्वत पर एक स्तूप में इन्हें संरक्षित करवाया था। उसके शासक रहते ही राजगृह में बौद्धधर्म की पहली संगीति हुई, जिसमें ‘विनयपिटक’ और ‘सुत्तपिटक’ ग्रंथों को पूर्ण किया गया। तदंतर राजगृह के स्तूप का नवनिर्माण करके वहां तक रज्जुमार्ग (रोप वे) बनाया गया। इस प्रकार अज्ञातशत्रु ने अपने शासनकाल में अपनी योग्यता को विभिन्न रूपों में दर्शाया अवश्य है। इतिहासकार भी मानते हैं कि अजातशत्रु ने शायद अपने पिता का वध न किया हो, लेकिन वध के बाद अजातशत्रु ने सिंहासन प्राप्त किया था। इसी कारण उस पर मिथ्या आरोप लगा हो, लेकिन सच्चाई आज भी रहस्य की परतों में दफन है।