अकबर का जीवन परिचय (Akbar Biography in hindi)- मुगलिया सल्तनत के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक के रूप में अकबर का नाम इतिहास में दर्ज है। अकबर का संपूर्ण नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। अकबर के पिता का नाम हुमायूं था। हुमायूं जब अपना शासन छिन जाने के कारण भारी मुश्किल दौर से गुजर रहा था, तब 3 नवंबर, 1542 को सिंध के रेगिस्तान में बने अमरकोट के किले में अकबर का जन्म हुआ। हुमायूं को बेटे को छोड़कर फारस भागना पड़ा। अतः अकबर का बाल्यकाल अपने चाचा के संरक्षण में काबुल में गुजरा। उसे अस्त्र- शस्त्र चलाने में बचपन से ही रुचि रही थी, लेकिन पठन-पाठन का मौका प्राप्त नहीं हुआ। सहज ज्ञान के दम पर उसने तमाम कलाओं में दक्षता हासिल की और अपने दरबार में भी एक से बढ़कर एक कलाविज्ञों व विद्वानों को स्थान दिया। अकबर हिंदी में कविता भी किया करता था। इसकी कविताएं ‘शिवसिंह सरोज’ में संकलित करके रखी गई हैं।
अकबर के बारे में जानने योग्य तथ्य और जानकारी
पूरा नाम | अबुल-फतह जलाल-उद्दीन मोहम्मद अकबर |
किस रूप में जाना जाता है | अकबर महान |
शासनकाल | 11 फरवरी 1556 से 27 अक्टूबर 1605 |
जन्म | 14 अक्टूबर 1542 (अमरकोट सिंध) |
मृत्यु | 27 अक्टूबर 1605 (फतेहपुर सीकरी, आगरा) |
दफन | सिकंदरा, आगरा |
धर्म | इस्लाम, दीन-ए इलाही |
राजवंश | मुगल राजवंश |
राज्याभिषेक | 14 फरवरी 1556 |
पूर्वज | हुमायूँ |
उत्तराधिकारी | जहाँगीर |
राज्य संरक्षक | बैरम खान (1556-1561) |
पत्नी | रूकैया सुल्तान बेगम |
पत्नियाँ | पत्नी हीर कुँवारी, हीरा कुँवारी, हरका बाई, जोधा बाई, सलीमा सुल्तान बेगम |
पिता | हुमायूँ |
माँ | हमीदा बानो बेगम |
दादा | बाबर |
दादी | महम बेगम |
बच्चे | जहाँगीर, दानियाल, सुल्तान मुराद मिर्जा, हवर्ष, हुसैन |
विवाह | नबंवर 1551 में अकबर ने काबुल में अपनी चचेरी बहन, रुकैया सुल्तान बेगम से शादी की। रुकैया अकबर की मुख्य पत्नी थीं। |
युवा सम्राट | हुमायूँ की मृत्यु के बाद, 13 वर्षीय अकबर को बैरम खान द्वारा पंजाब के कलानौर में ताज पहनाया गया था। जब तक अकबर स्वतंत्र रूप से शासन करने में सक्षम नहीं हो गए, तब तक बैरम खान ने राज्य के मामलों में फैसला किया। |
दिल्ली को पुनः प्राप्त करना | 5 नवंबर 1556 को, हेमू और सूर की सेना अकबर की सेना से हार गई थी, जिसने पानीपत के द्वतीय युद्ध में बैरम खान का नेतृत्व किया था। |
बैरम खान को पद से हटाना | अकबर ने अपनी धाय माँ, माहम अनगा की सलाह पर उनके संबंधी बैरम खान को वर्ष 1560 में पद से हटा दिया था। |
मध्य भारत में विस्तार | वर्ष 1564 में, मुगल सेनाओं द्वारा गोंडवाना साम्राज्य पर विजय प्राप्त की थी। |
हल्दीघाटी का युद्ध | वर्ष 1576 में मुगलों ने हल्दीघाटी के युद्ध में उदय सिंह के पुत्र और उत्तराधिकारी प्रताप सिंह को हराया। |
बलूचिस्तान पर विजय | मुगल साम्राज्य ने बलूचिस्तान पर भी विजय प्राप्त की थी। |
सफाविद और कंधार | वर्ष 1558 में, तहमासप I, सफ़ाविद सम्राट, कंधार को पछाड़ दिया और इस मुगल शासक को परास्त कर दिया। |
कर निर्धारण | अकबर ने कर के वार्षिक मूल्यांकन को अधिकार के रूप में अपनाया, लेकिन यह वर्ष 1580 में विफल हो गया। इसके बाद उन्होंने दहसला नामक व्यवस्था को शुरू किया । अकबर शायद अपने राजस्व अधिकारियों के लिए एक लक्ष्य-आधारित पारिश्रमिक प्रणाली का प्रयोजन करने वाले पहले सम्राट थे। इसमें राजस्व अधिकारियों केवल तीन-चौथाई वेतन प्राप्त करना होता था और शेष राशि तब ही देनी होती थी, जब राजस्व लक्ष्य निर्धारित होते थे। |
राजधानी | वर्ष 1599 में आगरा को राज्य की राजधानी बनाया गया था। |
सिक्का | अकबर द्वारा चलाए गए सिक्के गोल और चौकोर थे और उनके किनारे पर बिंदु, फूलों का रूपांकन और चौपतिया छिद्र बने थे। उन्हें ‘मेहराब’ आकार में भी डिजाइन किया गया था। |
विद्वानों के संरक्षक | अकबर ने मुस्लिम विद्वानों जैसे ताहिर मुहम्मद थतवी और मीर अहमद नसरलाह थतवी को संरक्षण दिया। |
दीन-ए-इलाही | अकबर ने 1582 ईस्वी में एक समरूप धर्म दीन-ए इलाही का प्रतिपादन किया, लेकिन समय से पहले ही उनका यह विचार विफल हो गया। |
हिंदुओं के साथ संबंध | अकबर ने घोषित किया कि धर्म परिवर्तन न करने वाले हिंदू लोगों को कोई मौत की सजा नहीं दी जाएगी। अकबर ने दिवाली का त्यौहार मनाया। ब्राह्मणों के आशीर्वाद के माध्यम से उनको कलाई में कलावा पहनने की इजाजत दी गई थी। गाय के माँस का त्याग करने के लिए कहा गया था और उन्होंने कुछ दिनों के लिए माँस की बिक्री पर रोक लगा दी थी। |
साहित्य में उल्लेख | अबुल फजल द्वारा आइने-ए-अकबरी और अकबरनामा तथा बदायुनी द्वारा शेखजादा रशीदी और शेख अहमद सरहिंदी पुस्तकें लिखी गई। अकबरनामा में फारसी में अकबर की जीवनी है |
मृत्यु | 27 अक्टूबर 1605 में उनकी मृत्यु हो गई। उनका दफन कक्ष सिकंदरा, आगरा में एक मकबरे के रूप में बना है। |
फिल्में और टेलीविजन | जोधा अकबर, मुगल-ए-आजम, अकबर-बीरबल (टीवी धारावाहिक), अकबर महान (टीवी धारावाहिक), जोधा अकबर (टीवी धारावाहिक) |
उपन्यास | सलमान रुश्दी द्वारा (2008) एन्चेंट्रेस ऑफ फ्लोरेंस |
हुमायूं ने 1555 में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया तो अकबर भी अपने पिता के साथ भारत आ गया। एक वर्ष पश्चात् ही 1556 में हुमायूं इंतकाल हो गया। उस समय अकबर की आयु महज 13 वर्ष चार माह ही थी। उसी अल्पायु में उसे हिंदुस्तान का शासक घोषित कर दिया गया। उस समय उसके शासन में कुछ ही क्षेत्र था, किंतु पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू को परास्त करने के पश्चात् पंजाब, दिल्ली, आगरा और उससे लगा संपूर्ण क्षेत्र मुगल साम्राज्य में शामिल हो गया। अकबर इस दौरान अपने पिता के सेनापति बैरम खां के संरक्षण में था, किंतु जब उसने बैरम खां को स्वेच्छाचारी होते देखा तो न केवल उसे पद से ही हटा दिया, बल्कि उसे हज पर जाने को भी विवश कर दिया। फिर अकबर ने अपनी हुकूमत का विस्तार शुरू किया। आगामी 20 वर्षों में इसने समूचे उत्तर भारत पर अपना अधिकार कर लिया। राजपूतों से जरूर इसे कड़ा मुकाबला करना पड़ा था। जयपुर व जोधपुर के राजाओं ने अकबर से समझौता करके स्वयं उसके तथा मुगल राजकुमारों के साथ अपने घरानों की लड़कियों के वैवाहिक रिश्ते कर दिए गए थे, किंतु चित्तौड़ और रणथंभौर पर फतह पाने के लिए मुगल सेना को एड़ी चोटी का जोर लगा देना पड़ा था। उदय सिंह और राणा प्रताप न कभी मुगल हुकूमत को स्वीकार नहीं किया व राजपूती आन बनाए रखी।
अकबर का शासन पश्चिम में काबुल तक, पूर्व में बंगाल तक एवं उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक कायम था। इस विशाल साम्राज्य को संगठित करने के लिए अकबर ने बेहद नीति निपुणता से काम लिया। वह उच्च शिक्षित न होने पर भी बुद्धिमान था। उसने हिंदू एवं मुसलमान दोनों ही संप्रदायों के प्रतिभावान व्यक्तियों को अपना दरबारी तैनात किया। अपने बाप-दादा की नीति के विरुद्ध दोनों संप्रदायों को महत्व देने के कारण आमजन में उसकी विश्वसनीयता बढ़ी। उसने साम्राज्य को शासनिक व्यवस्था के नजरिए से 15 सूबों में तकसीम किया। राजा टोडरमल की मदद से भूमि की पैमाइश करके मालगुजारी प्राप्त करने की नई व्यवस्था को भी अकबर ने ही आरंभ करवाया।
वह पहला और कदाचित अंतिम मुगल शासक था, जिसने महसूस किया कि भारत का बादशाह सिर्फ मुसलमानों का बादशाह नही है। उसने स्थानीय राजाओं को गुलाम के रूप में अपमानित नहीं किया और सिर्फ हिंदुओं पर लगने वाला ‘जजिया कर’ भी खत्म किया। उसकी सोच उदार थी। सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथ पढ़वाकर सुनने और विद्वानों के शास्त्रार्थ से ज्ञान प्राप्त करने में उसकी भारी रुचि थी। सभी धर्मों की समान अच्छी बातें शामिलकरके उसने दीन-ए-इलाही’ नाम से एक उदार धर्म चलाने का भी प्रयत्न किया।
अकबर को बड़ी-बड़ी व खूबसूरत इमारतें बनवाने और संगीत का भी बेहद शौक था। संगीत सम्राट तानसेन उसके नौ रत्नों में शामिल थे। अपनी उदार नीति के कारण अकबर को धर्माध मुसलमानों के विरोध को भी झेलना पड़ा था, लेकिन वह अपनी उदारवादी सोच पर सदैव कायम रहा। 7 अक्टूबर, 1605 को अकबर का निधन हुआ और उसकी हिंदू रानी जोधाबाई के पुत्र सलीम ने जहांगीर के नाम से शासन संभाला। अकबर के शासनकाल को मुगलकालीन भारत के स्वर्णयुग की संज्ञा प्रदान की जा सकती है, लेकिन अकबर की उदारवादी सोच को आगे के शासक कायम नहीं रख पाए और इसी कारण इनका पतन भी हुआ।
अकबर बादशाह के नव रत्न :
1. बीरबल- (सन 1528 से सन1583) दरबार के विदूषक, परम बुद्धिशाली, और बादशाह के सलहकार।
2. फैजि- (सन 1547 से 1596) फारसी कवि थे। अकबर के बेटे के गणित शिक्षक थे।
3. अबुल फज़ल- (सन 1551 से सन 1602) अकबरनामा, और आईन-ए-अकबरी की रचना की थी।
4. तानसेन- (तानसेन उत्तम गायक थे। और कवि भी थे)।
5. अब्दुल रहीम खान-ए-खान- एक कवि थे, और अकबर के पूर्व काल के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे।
6. फकीर अजिओं-दिन- अकबर के सलाहकार थे।
7. टोडरमल- अकबर के वित्तमंत्री थे।
8. मानसिंह- आमेर / जयपुर राज्य के राजा और अकबर की सेना के सेनापती भी थे।
9. मुल्लाह दो पिअजा- अकबर के सलहकार थे।