नामदेव जी का जीवन परिचय (Biography of Namdev in Hindi)- यद्यपि महाराष्ट्र के विख्यात भक्त संत नामदेव के जीवन के सटीक समय के बारे में विद्वान एकराय नहीं हैं, तथापि आम तौर पर यह माना जाता है कि इनका जन्म 1270 में नरसी ब्राह्मणी नाम के ग्राम में दामाशेट नामधारी दर्जी के परिवार में हुआ था। शुरू में ये बेहद क्रूर वृत्ति के थे एवं पाशविक कृत्यों द्वारा जीविका चलाया करते थे। एक बार जब ये मंदिर में प्रभु दर्शनार्थ गए तो एक स्त्री को अपने छोटे बच्चे को पीटते हुए देखा। कारण जानने पर स्त्री ने बताया, ‘इसके पिता को तो डाकू नामदेव ने मार डाला, अब मैं इसका पेट किस प्रकार पालूं?’
संत नामदेवजी का जीवन परिचय
नाम | संत शिरोमणि श्री नामदेवजी |
उपनाम | नामदेवजी |
जन्म स्थान | पंढरपुर मराठवाड़ा, महाराष्ट्र |
जन्म तारीख | 26-अक्टूबर-1270 |
वंश | शिम्पी (छीपा) |
माता का नाम | गोणाई देवी (गोणा बाई) |
पिता का नाम | दामाशेटी |
पत्नी का नाम | राजाई |
प्रसिद्धि | संत शिरोमणि, 2500 के आस पास पद लिखे, भगवद् भक्ति का प्रचार-प्रसार |
पेशा | संत, कवी |
बेटा और बेटी का नाम | नारायण, विट्ठल, महादेव, गोविन्द, पुत्री लिम्बाबाई |
गुरु/शिक्षक | विट्ठल ( श्री हरि) |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | सन् 1350 |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Sant Namdev (संत नामदेव की जीवनी) |
इससे नामदेव को अपने पाप अनुभव हुए। तब ये सीधे पंढरपुर जाकर ‘विढोबा’ की भक्ति करने लगे। फिर इनकी संत ज्ञानेश्वर से भी भेंट हुई और इनके प्रेरित करने पर नामदेव ‘वारकरी’ संप्रदाय में दीक्षित हो गए। विठ्ठल या विढोबा की प्रतिमा में ही ईश्वर को माननेवाले नामदेव को अब सब स्थानों पर प्रभु के दर्शन होने लगे। इन्होंने ज्ञानेश्वर के साथ उत्तर भारत में तीर्थयात्राएं कीं और निर्गुण भक्ति का प्रचार उन्होंने कबीर से पूर्व किया। नामदेव रचित ‘अभंग’ मराठी भाषा में बेहद लोकप्रिय है। भक्तगण श्रद्धा के साथ उसका गान करते हैं। इन्होंने हिंदी में भी भक्तिपरक काव्य सृजित किए हैं। गुरुग्रंथ साहब में भी नामदेव के 61 पद संग्रहित किए गए हैं।
दूसरे संतों की तरह नामदेव के बारे में भी अनेक चमत्कारी घटनाएं कही- बताई जाती हैं। कहते हैं, एक सुल्तान के आग्रह पर इन्होंने मृत गाय को जीवनदान दिया था। एक पुजारी ने मंदिर के सम्मुख इनके कीर्तन करने पर आपत्ति की तो ये वहां से हट गए, लेकिन मंदिर का द्वार भी इन्हीं की तरफ घूम गया। एक बार पंढरपुर की विढोबा की मूर्ति ने इनके हाथ से दूध भी पी लिया। 80 वर्ष की उम्र में 1350 में नामदेव का निधन बताया जाता है।
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