जयदेव का जीवन परिचय (Jaydev Biography in Hindi)- जीवन का एक क्षण किसी के जीवन को परिवर्तित कर सकता है तो एक ग्रंथ भी व्यक्ति को अमरता प्रदान कर सकता है। सिर्फ एक ग्रंथ ‘गीत गोविंद’ लिखकर संस्कृत साहित्य को अतुलनीय रूप से समृद्ध बनाने वाले कवि जयदेव का जन्म बंगाल के एक छोटे-से ग्राम केंदु बिल्व (वर्तमान वीरभूम जिले का केंदुली ग्राम) में हुआ था। इनके जन्म के समय के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त नहीं है। शायद ये बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन (लगभग 1180-1202) के समकालीन रहे थे। जयदेव के पिता का नाम भोजदेव था, लेकिन जब ये बहुत छोटे थे तभी माता-पिता का निधन हो गया था। उसके पश्चात् ये पुरी में आकर बस गए। पद्मावती नामक कन्या से जयदेव की शादी हुई। कहते हैं, कन्या के पिता को सपने में भगवान जगन्नाथ ने इस शादी का आदेश दिया था और तब उसने पुरी में एक वृक्ष के नीचे अपनी पुत्री का हाथ जयदेव के सुपुर्द कर दिया था।
थोड़े समय पश्चात् जयदेव ने मथुरा-वृंदावन की यात्रा की। कृष्ण की रासलीला के इस क्षेत्र को देखकर ये बेहद हर्षित हो उठे। लौटने पर इन्होंने पुरी में अपने अमर ग्रंथ ‘गीत गोविंद’ की सृष्टि की। इसमें राधा व कृष्ण के प्रेम की कहानी काव्य के मनोहारी छंदों में कही गई है। इसमें महज तीन पात्रों का बखान है- राधा, कृष्ण और राधा की एक सखी, जो इन दोनों को परस्पर एक-दूसरे का संदेश पहुंचाती है। कवि ने जिस प्रेम का बखान किया है, वह सांसारिक न होकर अलौकिक प्रतीत होता है। इस कारण मंदिरों में बेहद श्रद्धा से उन गीतों को आज भी गाया जाता है।
जयदेव की बंगाल के राज दरबार में भी प्रतिष्ठा थी और ये दरबार के पांच रत्नों में से एक थे, किंतु पत्नी के निधन के पश्चात् दरबार त्याग दिया। जयदेव के ‘गीत गोविंद’ से अनेक कवि, संत और चित्रकार प्रभावित रहे हैं। इस काव्य पर आधारित चित्र जम्मू और कांगड़ा में बसोहली शैली के चित्र कहे जाते हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘गीत गोविंद’ का हिंदी पद्यानुवाद किया था। इस कारण जयदेव कालजयी ग्रंथ के अमर सृजक माने जाते हैं।