चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय (Biography of Chaitanya Mahaprabhu in Hindi)- भारतीय अध्यात्म के श्रीकोष में वृद्धि करने वाली अनेक भारतीय विभूतियों में बंगाल के वैष्णव धर्म के संस्थापक चैतन्य महाप्रभु भी एक रहे हैं। इनका जन्म बंगाल के नवद्वीप नगर में 1484 को हुआ था। बाल्यकाल में इनका नाम विश्वंभर था। लोग इन्हें निमाई, गौर, गौरांग और गौरहरि भी कहा करते थे। प्रतिभाशाली विश्वंभर ने कम उम्र में ही व्याकरण, स्मृति, ज्योतिष, षड्दर्शन, न्याय व तर्कशास्त्र इत्यादि का गहन अध्ययन पूर्ण कर लिया था। 16 वर्ष की आयु में ही ये अपनी पाठशाला खोलकर व्याकरण की शिक्षा प्रदान करने लगे। इनकी प्रतिभा विलक्षण रही। इस कारण जल्दी ही इनके अनुपम पांडित्य की सुगंधि चहुं दिशाओं में फैल गई। विद्वानों से शास्त्रार्थ करते, ये विद्वान इनके तर्कों से त्रस्त होकर इनकी बात मान लेते।
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | चैतन्य महाप्रभु |
जन्म (Birth) | 18 फरवरी 1486 |
जन्म स्थान (Birth Place) | नबद्वीप, पश्चिम बंगाल, भारत |
मृत्यु (Death) | 14 जून 1534 |
मृत्यु कारण (Death Cause) | अज्ञात |
पिता (Father Name) | जगन्नाथ मिश्रा |
माता (Mother Name) | सची देवी |
गुरु (Teacher Name) | ईश्वर पुरी |
भाई (Brother) | विश्वरूपा |
पत्नी (Wife Name) | लक्ष्मीप्रिया |
विश्वंभर जब अपने पिता का पिंडदान करने के लिए ‘गया तीर्थ’ गए थे, वहीं इनके जीवन में असाधारण बदलाव आया। ये एक विनम्र कृष्णभक्त में ढल गए। अब इनके जीवन का उद्देश्य प्रेमभक्ति एवं नाम कीर्तन का अधिकाधिक प्रचार करना भर रह गया। अपने कार्य को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से इन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर महज 24 वर्ष की उम्र में पूर्ण संन्यास ले लिया। अब इनका नाम ‘श्रीकृष्ण चैतन्य’ हो गया। इसके बाद अपनी तमाम जिंदगी भ्रमण कर प्रेम और भक्ति का प्रचार करने में गुजार दी। 18 वर्ष तक ये उड़ीसा में रहे
और 6 वर्ष दक्षिण भारत, वृंदावन, काशी, प्रयाग और मथुरा आदि में व्यतीत किए। चैतन्य महाप्रभु की सोच यह थी कि प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर को अपने करीब अनुभव किया जा सकता है। ये धार्मिक भेदभाव से पृथक थे। हिंदू, मुसलमान सभी लोग इनके शिष्य बने। चैतन्य ने हिंदू धर्मकांड को उचित नहीं माना। ये सिर्फ श्रीकृष्ण पर आस्था रखने पर जोर दिया करते थे। इनके अनुयायियों का संप्रदाय ‘गौडीय वैष्णव संप्रदाय’ भी कहलाता रहा है। इनके भक्त चैतन्य को विष्णु का अवतार कहते हैं। मृदंग बजाकर कीर्तन करने वाले चैतन्य के समर्थकों के ‘गौड़ीय मठ’ कई स्थानों पर बने हैं और देश के लगभग सभी भागों में ये कायम हैं। चैतन्य महाप्रभु का देहांत 38 वर्ष की अल्पायु में ही 1532 में नीलाचंल में बेशक हो गया, किंतु अपने कृतित्व से ये अजर अमर रहेंगे।