
सर गंगाराम का जीवन परिचय (Sir Ganga Ram Biography in Hindi)- भारत-पाकिस्तान विभाजन की अनेक सनसनीखेज घटनाएं हृदय को उद्वेलित करती रही हैं, लेकिन सर गंगाराम के संदर्भ में इस तथ्य को मार्मिक ही कहा जाएगा कि इन्होंने पाकिस्तान (अविभाजित स्थिति में) को ही अपनी मातृभूमि मानकर वहां समाजसेवा के अप्रतिम कार्य किए थे, लेकिन इसके बावजूद भी एक हिंदू व्यक्ति का जन्मभूमि के प्रति जज्बा नहीं समझा गया और राष्ट्रभक्ति का जज्बा कट्टर धर्मांधता की भेंट चढ़ गया।
महान इंजीनियर और भारत में हरित क्रांति के प्रवर्तक सर गंगाराम का जन्म 15 अप्रैल, 1851 को पश्चिमी पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान) के शेखूपुर जिले के एक ग्राम में हुआ था। इनकी शुरुआती शिक्षा अमृतसर एवं लाहौर में पूर्ण हुई और अभियांत्रिकी की शिक्षा इन्होंने रुड़की महाविद्यालय से प्राप्त की। कुछ समय तक लाहौर, दिल्ली और फिर उत्तर-पश्चिमी रेलवे में सेवाएं देने के पश्चात् गंगाराम ‘वाटरवर्क्स’ निर्माण का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए ब्रिटेन भी गए।
भारत वापसी पर गंगाराम ने 12 वर्ष तक लाहौर में कार्य किया। वहां के विख्यात भवन व जलाशय इत्यादि इन्हीं की देख-रेख में बने। इस दौरान इन्होंने अभियांत्रिकी के कई नए उपकरणों का भी वहां आविष्कार किया। इनकी सेवाओं के प्रत्युत्तर में ब्रिटिश सरकार ने इन्हें ‘सर’ की उपाधि द्वारा सम्मानित भी किया। 1910 में सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करते ही इन्हें पटियाला रियासत ने आमंत्रित किया।
इनके प्रयास से कुछ ही समय में पटियाला नगर का नक्शा ही परिवर्तित हो गया, लेकिन सर गंगाराम को अभी और कार्य करना था। साठ वर्ष की उम्र में ये कृषि केंद्रों को देखने के लिए पुनः ब्रिटेन गए। वापसी पर इन्होंने 1911 के दिल्ली दरबार के दौरान भारतीय नरेशों के शिविर निर्माण में अपनी राय दी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय को भी ये निःशुल्क अभियांत्रिकीय जानकारी प्रदान करते हुए मुख्य अभियांत्रिक भी रहे। ब्रिटेन वापसी पर इन्होंने अपने कृषि विषयक ज्ञानार्जन का उपयोग करने का इरादा किया। पंजाब में काफी जमीन नदियों से ऊंची होने की वजह से सिंचाई रहित और अनुपजाऊ पड़ी थी। सर गंगाराम ने सबसे पहली जल स्तर उठाकर सिंचाई का आरंभ किया। इससे वहां फसलें लहलहा उठीं। बांधों के माध्यम से जल विद्युत पैदा करने का श्री गणेश करने वाले भी सर गंगाराम ही थे।
अपनी मेहनत और प्रतिभा द्वारा सर गंगाराम ने पर्याप्त धन भी अर्जित किया। ये खुद गरीब परिवार में उत्पन्न हुए थे और गरीबी को अभिशाप मानते थे। उस दौरान समाज में अनेक कुरीतियां फैली हुई थीं। कम उम्र में ही बच्चों की शादी हो जाती थी और विधवाओं की स्थिति समाज में बेहद दयनीय थी। एक सर्वेक्षण के अनुसार 1921 में एक वर्ष से कम उम्र की ही तकरीबन आठ हजार विधवाएं थी। इससे द्रवित होकर इन्होंने पचास लाख रुपये से ‘सर गंगाराम ट्रस्ट सोसायटी’ गठित की जिसके तहत विधवा आश्रम, अपाहिज आश्रम और चिकित्सालय जैसी संस्थाओं को स्थापित किया। लड़कियों के उच्च विद्यालय और प्रशिक्षण महाविद्यालय खुले तथा लाहौर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई। इन्होंने अनेक गुरुद्वारों के निर्माण में भी सहायता दी। देश के विभाजन के पश्चात् ये तमाम संपत्ति पाकिस्तान में ही रह गई। सर गंगाराम का 10 जुलाई, 1927 को लंदन में 76 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
देश के विभाजन के पश्चात् सर गंगाराम ट्रस्ट ने दिल्ली में ‘सर गंगाराम अस्पताल’ की स्थापना की, जो इस प्रतिभाशाली और अनूठे समाजसेवी शख्स का स्मरण श्रद्धांजलि स्वरूप कराता रहता है।
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