
सत्य साईं बाबा का जीवन परिचय (Sathya Sai Baba Biography In Hindi)- भारतीय अध्यात्म और भारतीय संस्कृति के कारण भारतीय धरा पर साधु एवं महात्माओं की परंपरा आदि काल से ही रही है। इनमें कई महान चमत्कारी सिद्ध पुरुष भी हुए हैं तो कुछ ढोंगी एवं स्वार्थी व्यक्ति भी हुए हैं। सत्य साईं बाबा चमत्कारी पुरुष थे या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन देश में उन लोगों की भारी संख्या है, जो उन पर पूर्ण श्रद्धा रखते थे और इनके न रहने पर भी उन श्रद्धालुओं के विश्वास में कोई कमी नहीं आई है। एक सामान्य श्रमिक से लेकर देश के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति भी इन पर श्रद्धा रखता था और इनकी भक्ति करता था।
सत्य साईं बाबा महान साधु-संतों तथा महात्माओं की उसी भारतीय परंपरा के द्योतक रहे थे, जिनके द्वारा इनके कई श्रद्धालु भक्त जिंदगी में शांति को महसूस करने का प्रयास करते थे। आंध्र प्रदेश के एक गांव पुट्टपर्थी में इनके आश्रम ‘प्रशांति निलयम्’ में रोजाना सुबह सहस्त्रों भक्त इनके दर्शनों के लिए जमा होते थे। भक्तों को मुश्किल से ही एक पल के लिए इनकी झलक मिल पाती थी, लेकिन ये उसी के दम पर अपने दुख-दर्द को भूलने व शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते थे। वास्तव में संतों-महात्माओं में श्रद्धा और विश्वास के साथ सोच का भारी योगदान होता है। अतः जहां कई भक्त सत्य साईं बाबा को चमत्कारी पुरुष मानते थे और इनके बारे में कई अनोखी घटनाएं कहते हैं, वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जो इन्हें ढोंगी मानते थे। इसके लिए ये 1993 की घटना को नमूने के तौर पर प्रस्तुत करते हैं, उस समय इनकी हत्या की कोशिश की गई थी। लोगों का कहना है कि साईं बाबा को इसका पूर्व ज्ञान नहीं हो सका, इस कारण ये तर्क देते थे कि उनमें कोई चमत्कारी शक्ति होती तो इन्हें हमले की पहले से जानकारी हो जाती, लेकिन हैरत का विषय यह है कि इनके इस परोपकार को प्रत्यक्ष देखने के बाद भी शायद अनुभव नहीं कर पाते हैं कि सिर्फ तरह इनकी इच्छा-भर से ही लाखों-करोड़ों रुपया जमा होता था, जिससे गरीब व पिछड़े लोगों के बच्चों की शिक्षा हेतु विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय भी बन जाया करते थे तथा उपचार के निमित्त अस्पताल भी बनते थे। इन्होंने आम लोगों के लिए, जो सेवाकार्य किए हैं, ये ही इनके जीवित चमत्कार रहे हैं, जो इनके पश्चात् भी इनकी स्मृति करा रहे हैं।
यह सत्य है कि भक्तों की ही मदद से साईं बाबा ने कई गांवों का कायाकल्प करके दिखाया था। इतना वृहद कार्य, जो देश की सरकारों के लिए भी दुष्कर था, यह साईं बाबा ने अपने भक्तों की मदद से बड़ी आसानी से पूर्ण कर दिया था। इस तरह ये कई संतों से अलग नजर आते थे और अनेक भक्तों के लिए तो साक्षात् ईश्वर स्वरूप ही हो गए थे।
सत्य साईं बाबा का जन्म 23 नवंबर, 1926 को पुट्टपर्थी गांव में एक हिंदू परिवार में संपन्न हुआ। इनका बाल्यकालीन नाम सत्यनारायण राजू था। इनका स्वभाव तब आम बच्चों से अलग था। ये किसी भी ऐसे काम को नहीं करते थे जिससे पशुओं को किसी तरह का कष्ट हो, उनमें दूसरी भी कई बातें अपनी उम्र के बच्चों से अलग थीं। ये भिखारियों को अपने घर बुला लाते और इन्हें भोजन कराते। बच्चों को एकत्र करके अपनी नाट्य एवं लेखन प्रतिभा को दिखाया करते।
20 अक्टूबर, 1940 को जब इनकी उम्र 14 वर्ष ही थी, इन्होंने अपना घर परिवार यह कहकर त्याग दिया, ‘मैं अपने लोगों के पास जा रहा हूं, मैं सिर्फ तुम लोगों का ही नहीं हूं। मेरे अन्य भक्त मुझे आवाज दे रहे हैं।’ इसके पश्चात् इन्होंने अपने भक्तों को एकत्र करना शुरू किया। नतीजा यह हुआ कि देश-विदेश में लाखों की संख्या में इनके भक्त बन गए। इनमें पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, जज, नेता और अभिनेता सभी शामिल थे और आम जनता की सेवा में साईं बाबा का साथ दे रहे थे। 24 अप्रैल, 2011 को 85 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया।
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