पुरुषोत्तम दास टंडन का जीवन परिचय- कुछ व्यक्ति इसी कारण महान बनते हैं, क्योंकि ये निस्पृह भाव से लोक कल्याण के कार्य करते हैं। व्यक्तिगत हानि-लाभ से ऊपर उठ जाने वाले शख्स ही परोपकार के मार्ग पर अलग से पहचाने जाते हैं। पुरुषोत्तम दास टंडन भी ऐसे ही महान शख्स रहे हैं।
हिंदी भाषा के श्रेष्ठतम पत्रकार एवं राजनेता पुरुषोत्तम दास टंडन भारतीय संत संस्कृति के पुरुष थे, इस कारण इन्हें राजर्षि के प्रतिष्ठित संबोधन से भी जाना जाता था। टंडन जी का जन्म 11 अगस्त, 1882 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। शिक्षा पूर्ण करके ये इलाहाबाद में ही वकालत का कार्य करने लगे। इस कार्य में सफल होने के साथ ही इनके द्वारा विभिन्न सार्वजनिक कार्यों में भी भारीदारी की गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया व जेल भी गए। इसी दौरान जाती थी। 1919 में ये इलाहाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1921 में इन्होंने लाला लाजपत राय द्वारा गठित ‘लोकसेवक मंडल’ की सदस्यता भी प्राप्त संभाला और 1929 तक इस दायित्व को संभाला। तदंतर लाला जी के निधन के की। लाला जी आग्रह पर इन्होंने पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक का पद भार पश्चात् प्रबंधक का पद त्याग दिया, लेकिन लोकसेवक के जीवनपर्यंत अध्यक्ष बने रहे। उत्तर प्रदेश के किसानों को जमींदारों के अत्याचारों से बचाने के लिए इन्होंने ‘किसान संघ’ भी स्थापित किया। कृषक जागृति के इस पुनीत कार्य को करते हुए इन्हें 1930 में जेलयात्रा भी करनी पड़ी। 1932 के सत्याग्रह के दौरान भी इन्हें जैल में डाल दिया गया।
1937 में जब उत्तर प्रदेश में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल गठित हुआ तो विधानसभा के अध्यक्ष का पदभार संभाला। विश्वयुद्ध आरंभ होने पर मंत्रिमंडलों के साथ इन्होंने भी पद छोड़ दिया और 1940 और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में ये दीर्घकाल के लिए जेलों में बंद रहे। 1946 में टंडन जी को पुनः विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। 1948 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस की सदारत भी की। ये संविधान परिषद् के भी सदस्य रहे और संविधान में हिंदी को राजभाषा स्वीकार कराने में इनका योगदान प्रमुख माना जाता है।
1950 में टंडन जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए, लेकिन नीति-निर्धारण के प्रकरण में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से असहमत होने के कारण इन्होंने इस्तीफा दे दिया। 1952 में ये लोकसभा के और 1957 में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कारण से इन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से स्वयं को पृथक कर लिया।
टंडन जी का हिंदी प्रेम जग प्रसिद्ध रहा है। ये हिंदी साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में रहे और ‘सम्मेलन के प्रमुख’ कहे जाते थे। इन्होंने 1922 के कानपुर साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। भाषा व देवनागरी लिपि पर इन्होंने गांधी जी की विचारधारा से अपनी असहमति जाहिर की। यद्यपि निजी जीवन की सादगी, सत्य और अहिंसा और साध्य और साधन की पवित्रता की गांधीजी की विचारधारा को इन्होंने अपनी जिंदगी में उतारने का भरसक प्रयास किया, लेकिन सिद्धांतों पर समझौता करना इन्हें स्वीकार नहीं होता था ।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की अनवरत राष्ट्रसेवा के लिए 1961 में इन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। टंडन जी की रुग्णावस्था की वजह से राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्वयं इलाहाबाद में इन्हें यह सम्मान दिया। 1 जुलाई, 1962 को 80 वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया।
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