प्रसार शिक्षा के भौतिक एवं सामाजिक उद्देश्य
प्रसार शिक्षा के भौतिक
कृषि प्रसार के भौतिक उद्देश्यों का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। ग्रामीणों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने, उनके लिए गाँव में रोजगार के अवसर बढ़ाने, उन्हें आर्थिक समृद्धि प्रदान करने, उनके जीवन को सुखमय बनाने, उन्हें आधुनिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण करने के निमित्त ही प्रसार शिक्षा कार्यक्रम का प्रतिपादन हुआ। ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में समृद्धि लाना प्रसार शिक्षा का लक्ष्य है। इसी पर ऊपर वर्णित भौतिक उद्देश्य आधारित हैं। व्यक्ति के जीवन में खुशहाली अर्थोपार्जन द्वारा आती है। ग्रामीणों के जीवन में आर्थिक समृद्धि, उनके अपने धंधे को उन्नत बनाकर तथा रोजगार के अन्यान्य अवसर प्रदान करके लाई जा सकती है। ग्रामीणों का मुख्य धंधा कृषि है। यह एक ऐसा धन्धा है जिसकी कई शाखाएँ हैं तथा जो अनेक कार्यों का मिला-जुला फल है। भूमि की देखभाल, भूमि के अनुरूप खाद, उर्वरक तथा जल की व्यवस्था, उन्नत बीजों का चयन, सही प्रणाली द्वारा रोपण, पौधों की देखभाल, बीमारियों तथा कीटों से उनकी सुरक्षा,, कृषि यंत्रों का प्रयोग एवं रख-रखाव, उत्पादनों की कटाई-भंडारण, उचित मूल्य पर बिक्री, कृषि कार्य हेतु ऋण की उपलब्धि, सिंचाई सुविधा, पशुधन की देखभाल एवं सुरक्षा इत्यादि पक्ष कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं। आज भी भारतीय कृषकों का एक बहुत बड़ा वर्ग इन कार्यों को वर्षों पुराने चले आ रहे ढर्रे पर ही निबटाता आ रहा है। प्रसार शिक्षा का उद्देश्य है कि वह इनसे सम्बन्धित समुचित जानकारियाँ कृषकों को पहुंचाए तथा कृषि कार्य सम्पादन प्रणाली को आधुनिक बनाए। कृषि उद्योग से सम्बन्धित आधुनिक जानकारियाँ उपलब्ध कराना, मिट्टी कीक्षण की व्यवस्था करना, उर्वरक खाद-बीज, दवाइयों आदि के विक्रय केन्द्र खुलवाना, कृषकों को ऋण सुविधाएँ ! प्रदान करना, उत्पादनों के समुचित मूल्य पर बिक्री की व्यवस्था करना, पशु चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना जैसे महत्वपूर्ण कार्य प्रसार कार्यक्रम के उद्देश्य हैं।
कृषि के अतिरिक्त अन्य ग्रामीण उद्योग धंधे भी परम्परागत जड़त्व के शिकार हैं। इनमें बढ़ईगिरी, टोकरी इत्यादि बुनना, कपड़े बुनना, कुम्हारगिरी, चर्म उद्योग, खिलौने बनाना, पशुपालन, मुर्गीपालन इत्यादि सम्मिलित हैं। अनेक कृषक परिवारों के यह सह-धंधे हैं। प्रसार कार्य का उद्देश्य इन्हें भी समुन्नत एवं आधुनिक बनाना है। प्रसार कार्यक्रमों द्वारा इनसे सम्बन्धित जानकारियाँ ग्रामीणों तक पहुँचायी जाती हैं। इस प्रकार के उद्योग तो आजकल शहरों में निवास करने वालों के मध्य भी लोकप्रिय होते जा रहे हैं तथा अतिरिक्त आय के साधन के रूप में माने जा रहे हैं। शहरी लोगों को भी इनसे सम्बन्धित सूचनाओं की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि ग्रामवासियों को। उद्योग-धन्धों की उन्नति एवं आधुनिकीकरण, नई कार्य-प्रणालियों तथा तकनीकों से जुड़ाव, रोजगार के नए अवसर जैसे कदम आर्थिक समृद्धि के द्योतक हैं। आर्थिक समृद्धि प्रदान कर ग्रामीणों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना ही प्रसार शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य है। आर्थिक समृद्धि जीवन यापन की सुविधाएँ प्राप्त करने में व्यक्ति को सक्षम बनाती है। वह उन भौतिक सुविधाओं को प्राप्त कर पाता है, जिनकी प्राप्ति हेतु वह शहरों की ओर आकर्षित होता है। प्रसार कार्यक्रम का उद्देश्य इन्हीं भौतिक सुविधाओं को ग्रामवासियों को उपलब्ध कराना तथा उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
प्रसार शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य
अरस्तू का कथन आज भी उतना ही प्रचलित है कि ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।’ यह छोटा सा वाक्य व्यक्ति तथा समाज के परस्पर सम्बन्धों की व्याख्या करता है। समाज और व्यक्ति दोनों ही एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं तथा एक-दूसरे पर आश्रित हैं। व्यक्ति अपने आत्म-विकास के लिए समाज पर निर्भर करता है। सामाजिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत सहयोग, सहकारिता, सहभागिता, सह-अस्तित्व, समायोजन, सात्मीकरण, सहिष्णुता जैसे तत्व समाहित हैं। प्रत्येक समाज अपने सदस्यों के लिए व्यवहार के कुछ नियम निर्धारित करता है जो सामाजिक संगठन को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं। इसे सामाजिक नियंत्रण कहते हैं। सामाजिक नियंत्रण के फलस्वरूप व्यक्ति को सुरक्षा प्राप्त होती है, लोगों में एकता तथा सहानुभूति की भावना जाग्रत होती है, उसकी परम्पराओं की रक्षा होती है, व्यक्ति के कार्य संतुलित होते हैं, पारस्परिक सहयोग में वृद्धि होती है तथा सामाजिक संगठन में स्थिरता आती है। सामाजिक नियंत्रण के ही अन्तर्गत कुछ अन्य तत्व भी आते हैं, जैसे- लोकरीतियाँ, लोकाचार, रूढ़ियाँ, प्रथाएँ, नैतिकता, धर्म, परिवार, परम्पराएँ, नेतृत्व, शिक्षा व्यवस्था, वैधानिक व्यवस्था आदि।
प्रसार कार्य के अंतर्गत एक सुदृढ़ सामाजिक परिवेश की परियोजना की जाती है जो मानव विकास में सहायक हो। इस उद्देश्य की पूर्ति या प्राप्ति हेतु ऐसे कार्यक्रम नियोजित किए जाते हैं जो व्यक्ति को पूर्ण सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें। सहकारी कार्यक्रमों पर बल दिया जाता है जिससे लोगों में सह-अस्तित्व, सहभागिता, सहयोग, एकता, परस्पर सहानुभूति जैसी भावनाओं का विकास हो। सात्मीकरण (Assimilation) एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सामाजिक प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध रीति-रिवाज, खान-पान, वेशभूषा, मनोवृत्तियों, विश्वासों जैसे तत्वों से है। प्रसार शिक्ष का उद्देश्य एक स्वस्थ विकासोन्मुख सामाजिक वातावरण तैयार करना है जो व्यक्तिगत विकास में सहायक सिद्ध हो सके। हमारे देश में आज भी अनेक समुदाय हैं जो रूढ़िवादी पररम्पराओं, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, अंधविश्वासों में बुरी तरह जकड़े हुए हैं तथा आधुनिकीकरण से घबराते हैं। परिवार नियोजन, जनसंख्या शिक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों, स्वच्छता के नियमों का पालन, पोषण सम्बन्धी जानकारियाँ, प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था जैसी उपलब्धियाँ प्रसार कार्यक्रम के माध्यम से लोगों तक पहुँचाकर एक समुन्नत समाज की स्थापना जैसी उपलब्धियाँ प्रसार कार्यक्रम के माध्यम से लोगों तक पहुँचाकर एक समुन्नत समाज की स्थापना करना एक लक्षित कार्यक्रम है। विभिन्न जनसंचार माध्यमों, नाटकों, कठपुतली के खेल, कविता तथा गीतों के माध्यम से ऐसी रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास, गलत रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं से लोगों को विमुक्त करने की चेष्टा की जाती है, जो मानव विकास में बाधक हैं और उसे प्रगति पथ पर बढ़ने से रोकते हैं। भारतीय गाँवों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की परम्परा प्राचीन है। अंग्रेजी शासनकाल में इसमें ह्रास हुआ था। किन्तु पुनः ग्रामीण प्रजातांत्रिक प्रणाली को विशेष महत्व दिया जाने लगा है। इसके अन्तर्गत पंचायतों तथा ग्रामीण न्यायालयों को पुनर्गठित एवं स्थापित किया जा रहा है।
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