समाजशास्‍त्र / Sociology

प्रसार शिक्षा के सांस्कृतिक एवं सामुदायिक उद्देश्य

प्रसार शिक्षा के सांस्कृतिक एवं सामुदायिक उद्देश्य
प्रसार शिक्षा के सांस्कृतिक एवं सामुदायिक उद्देश्य

प्रसार शिक्षा के सांस्कृतिक एवं सामुदायिक उद्देश्य

प्रसार शिक्षा का सांस्कृतिक उद्देश्य

हमारा समाज हमारी संस्कृति को एक अनमोल धरोहर के रूप में संभाल कर रखता है। हमारी संस्कृति में हमारे ज्ञान, नैतिकता, कला, विश्वास, प्रथाएँ, कानून, आदतों का समावेश होता है और यह सब मनुष्य अपने समाज से ग्रहण करता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है अतः उसकी संस्कृति उसके समाज का प्रतिनिधित्व करती है। संस्कृति केवल समाज का ही प्रतिनिधित्व नहीं करती बल्कि संस्कृति हमारे व्यक्तित्व, हमारे सामाजिक संगठन, राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित करती है। हमारा धर्म हमारी संस्कृति का एक प्रमुख तत्व होता है। हमारी परम्पराएँ, हमारे त्यौहार, उत्सव, विश्वास हमारी धार्मिक भावनाओं से प्रभावित होते हैं।

प्रसार शिक्षा सांस्कृतिक उद्देश्य के अन्तर्गत दोहरी भूमिका निभाती है। एक और प्रसार शिक्षा हमारी संस्कृति को मजबूत बनाने, सुरक्षित रखने में सहायता देती है। सांस्कृतिक क्रियाएँ आयोजित कर हमैं अपनी संस्कृति से जोड़ती है तो दूसरी ओर हमारी संस्कृति को कमजोर करने वाले अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीतियाँ, रूढ़िवादिता कुप्रथाओं के प्रति जागरूकता पैदा कर उन्हें दूर करने की कोशिश करती है ताकि हमारी संस्कृति स्वस्थ और सुगठित रहे।

प्रसार शिक्षा के सामुदायिक उद्देश्य

समुदाय क्या है? समुदाय व्यक्तियों का वह समूह है जो एक समान निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के अन्दर रहकर अपना जीवनयापन करते हैं तथा उस समूह के सदस्य उसी क्षेत्र के अन्दर रहकर अपनी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। समुदाय तथा समाज के बीच एक पतली चादर जैसा अन्तर है क्योंकि दोनों की प्रकृति में अन्तर है।

समुदाय एवं सदस्यों की संस्कृति एक ही होती है। उनके सम्बन्ध का आधार भी वही एक ससंस्कृति होती है। इनके बीच मैं नहीं हम की सामुदायिक भावना होती है। ये एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं अतः आपस में सहयोग तथा सहानुभूति भावना का सम्बन्ध होता है। उनकी समस्याएं व्यक्तिगत नहीं होती पूरे समुदाय की होती हैं इसी प्रकार प्राप्त होने वाली सफलता भी व्यक्तिगत नहीं पूरे समुदाय की होती है।

प्रसार शिक्षा का उद्देश्य समुदाय का सर्वांगीण विकास है और प्रसार शिक्षा के इस उद्देश्य पूर्ति में समुदाय की हम भावना सहायक सिद्ध होती है। हम की भावना को अपना हथियार बनाकर प्रसार शिक्षा स्थानीय साधनों का प्रयोग कर सामूहिक रूप से सामूहिक मदद से कार्य पूरे करवा सकती है। सामुदायिक भावना का प्रयोग ग्रामीण समुदाय के सदस्यों में उत्तरदायित्व को समझने के लिये किया जा सकता है। प्रसार शिक्षा समुदाय के कुटीर उद्योगधन्धों को बढ़ावा देकर रोजगार के नये अवसर ढूंढ़ सकती है। समुदाय की रोज की आवश्यकताएं शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का पानी, यातायात, मकान बनाना को पूरा करने में सहायता ले सकती है। हम की भावना स्वयं में अनेक समस्याओं का समाधान है। सामुदायिक विकास के लिये ग्राम्य संगठनों को संगठित तथा कार्य के लिये प्रेरित करना आवश्यक है। इस काम में प्रसार शिक्षा के साथ सहकारी समितियों की अहम् भूमिका होती है।

सामुदायिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये प्रसार शिक्षा को ग्रामीण नेतृत्व का विकास, ग्रामीणों में आत्मनिर्भर होने की भावना का विकास, ग्रामवासियों के सोचने ढंग में बदलाव, ग्रामीण आर्थिक विकास हेतु आर्थिक सुविधाएं उपलब्ध करवाना ताकि ग्रामीण उद्योग धन्धे पनप सकें, गांव की युवा शक्ति को गांव के विकास में भाग लेने के लिये प्रेरित करना, स्त्रियों की दशा में सुधार, परिवारों के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाना, गांवों में प्रौढ़ शिक्षा, पाठशाला का प्रबन्ध, चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना ताकि जनस्वास्थ्य का नारा पूरा हो सके, गांवों के प्रमुख उद्योग कृषि हेतु जल का प्रबन्ध ताकि सिंचाई हो सके, यातायात साधन, सड़कें, मकान, क्रय-विक्रय के केन्द्र तथा उद्योगों के प्रशिक्षण केन्द्रों की सुविधा प्रदान करवानी है।

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