विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा (Integrated Education for Disabled Children)
किसी भी श्रेणी की निःशक्ततायुक्त बच्चों को समाज में प्रचलित सामान्य विद्यालयों में सामान्य बच्चों के साथ-साथ समन्वित करते हुए एक साथ, एक जैसी शिक्षण पद्धति एवं परिस्थितियों में पढ़ाना ही समेकित शिक्षा कहलाती है।
वास्तव में विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा (IEDC) योजना वर्ष 1974 में शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत चयनित सामान्य स्कूलों में विकलांग छात्र-छात्राओं को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है। उसके पीछे ऐसी समझ है कि विकलांग बच्चों का मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक एवं ज्ञानात्मक विकास सामान्य बच्चों के साथ-साथ हो सके ताकि बच्चे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इस योजनान्तर्ग चयनित स्कूलों के विकलांग छात्रों को पुस्तक एवं लेखन सामग्री, स्कूली पोशाक, परिवहन भत्ता, साथ चलने वाले को आने-जाने का किराया भत्ता, नेत्रहीन छात्रों के लिए पढ़ने वाले को पठन भत्ता, उपकरणों, विकलांग छात्रों को पढ़ाने के लिए नियुक्त शिक्षकों को वेतन आदि सुविधा प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों/केन्द्र शासित प्रदेशों तथा गैर-सरकारी संगठनों को शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 21 मार्च, 2005 को राज्य सभा के पटल पर रखे गए वक्तव्य में विकलांग छात्रों और युवाओं के लिए पूर्व प्राथमिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक समेकित शिक्षा प्रदान करने हेतु एक व्यापक कार्ययोजना के निर्णय की घोषणा की। कालांतर में यह योजना इंटेग्रेटेड एजुकेशन फॉर चिल्ड्रेन एंड यूथ विथ डिसएबिलिटी (आई.ई.सी.वाई.डी.) के नाम से जानी जाने लगी है।
समेकित शिक्षा के लक्ष्य ऐसे निःशक्त अथवा विकलांग बच्चों के यद्यपि सामान्य क्रियाकलापों को करने में आंशिक अथवा गंभीर बाधा पेश आ सकती है, परंतु उन्हें बिल्कुल अक्षम समझकर सामान्य प्रचलित शिक्षा से वंचित करना, अन्यायपूर्ण एवं अनुचित है । ऐसे बच्चों में जो सकारात्मक क्षमताएँ विद्यमान हैं उनका विकास करना समेकित शिक्षा का लक्ष्य हैं। इसके तहत् ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल करते हुए इनकी आंतरिक प्रतिभा एवं क्षमता को पहचान कर उनका सदुपयोग करना, निःशक्त बच्चों को स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बनाना इत्यादि समेकित शिक्षा के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) – राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) की धारा 4.9 में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की आवश्यकताओं पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। इस धारा का मुख्य उद्देश्य शारीरिक और मानसिक विकलांग बच्चों को सामान्य समुदाय के साथ समन्वित करना है ताकि वे सभी गरिमा एवं आत्मविश्वास के साथ जीवन जी सकें। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं।
(i) जहाँ तक भी व्यावहारिक है कर्मेन्द्रिय-दोषों और मामूली निःशक्ताग्रस्त बच्चों की शिक्षा दूसरे बच्चों के यसथ्स साझी होगी।
(ii) जहाँ तक संभव हो, संयत निःशक्तता ग्रस्त बच्चों के लिए छात्रावासयुक्त विशेष विद्यालय उपलब्ध करायी जाएगी।
(iii) नि:शक्त बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी।
(iv) नि:शक्त बच्चों को विशेष समस्याओं को सुलझाने के लिए अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम (खासकर प्राथमिक शिक्षकों के) का पुनर्गठन किया जाएगा।
(v) नि:शक्त बच्चों की शिक्षा के स्वयंसेवी प्रयासों को हर संभव उपाय से प्रोत्साहित किया जाएगा।
संशोधित शिक्षा नीति (1992) : (i) नि:शक्त बच्चों के लिए पाठ्य सामग्रियों में पाठ्यक्रम में लचीलेपन का विशेष महत्त्व है यदि बाल केन्द्रित शिक्षा का व्यवहार किया जाए तो इन बच्चों की विशेष आवश्यकताएँ पूरी की जा सकती हैं।
(ii) नि:शक्तता ग्रस्त बच्चों की शिक्षा में एक-दूसरे के लिए बच्चों की आपसी सहायता बड़ी कक्षाओं और बहुश्रेणीय अध्यापन को देखते हुए एक कारगर संसाधन है।
जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम में विकलांग (District Primary Education Programme)
प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 1994 में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में वृहद पैमाने पर पहल की थी। इसके तहत देश के 7 राज्यों के ऐसे 42 जिलों का चयन किया गया था जो शैक्षिक पैमाने पर अति पिछड़े माने गए थे। इस कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य था। (क) प्राथमिक शिक्षा की सर्वव्याप्ति एवं (ख) ठहराव । वर्ष 1997 में समाकलित शिक्षा को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया गया। 1998 आत-जाते डीपीईपी राज्यों ने सर्वे, एसेसमेंट कैंप के जरिए डीपीईपी स्कूलों में नामांकित बच्चों को संसाधन सहायता मुहैया कराने लगे थे। कालांतर में इस कार्यक्रम में कम्युनिटी मोबिलाइजेशन और विकलांगों की पहचान, सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधन सहायता, शैक्षिक सामग्रियों के साथ-साथ विकलांगों के लिए बाधारहित माहौल बनाने पर बल दिया जाने लगा। शुरूआती दौड़ में प्रत्येक डीपीईपी जिलों के एक प्रखंड या संकुल में समाकलित शिक्षा को बतौर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया। वर्ष 1998 में देश के चुनिन्दे सौ से अधिक प्रखंडों और कालांतर में 18 राज्यों के कुल 2014 प्रखंडों को इसके दायरे में लाया गया जबकि यह कार्यक्रम गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु तथा उत्तरांचल के सभी प्रखंडों में चल रहे हैं। डीपीईपी कार्यक्रम के क्रियान्वयन के दौरान बड़ी संख्या में विकलांग बच्चों को चिह्नित कर इसकी परिधि में लाया गया। बाद में महसूस किया जाने लगा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की परिधि में लाए बगैर प्राथमिक शिक्षा का सार्वजनीकरण संभव नहीं है।
जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम को कालांतर में सर्व शिक्षा अभियान के साथ मिला दिया गया। लेकिन भारतीय पुनर्वास परिषद् में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया है कि संसाधनसेवी शिक्षकों को आरसीआई द्वारा ही प्रशिक्षित कराएँ ।
निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 (Person with Disability Act, 1995)- निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के अध्याय-5 (धारा 26) में निःशक्त बालकों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था किए जाने का प्रावधान धारा 26 (क) में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि “समुचित सरकारें और स्थानीय प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक निःशक्त बालक को अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक उचित वातावरण में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त हो सके (धारा 26 (क)। वे नि:शक्त विद्यार्थियों का सामान्य विद्यालयों में एकीकरण के संवर्धन का प्रयास करेंगे (धारा 26 (ख))। उनके लिए जिन्हें विशेष शिक्षा की आवश्यकता है, सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में विशेष विद्यालयों की स्थापना में ऐसी रीति से अभिवृद्धि करेंगे कि जिनसे देश के किसी भी भाग में रह रहे नि:शक्त बालकों की ऐसी विद्यालयों में पहुँच हो (धारा 26 (ग))। साथ ही नि:शक्त बालकों के लिए विशेष विद्यालयों को व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं से सज्जित करने का प्रयास करेंगे (धारा 26 (घ))।
समुचित सरकारें और स्थानीय प्राधिकारी अधिसूचना के जरिए, (क) ऐसे निःशक्त बालकों की बाबत, जिन्होंने पाँचवी कक्षा तक शिक्षा पूरी कर ली है, किन्तु पूर्णकालिक आधार पर अपना अध्ययन चालू नहीं रख सके हैं, अंशकालिक कक्षाओं का संचालन करेंगे (धारा 27 (क)) । (ख) सोलह वर्ष और उससे ऊपर की आयु समूह के बालकों के लिए क्रियात्मक साक्षरता की व्यवस्था के लिए विशेष अंशकालिक कक्षाओं का संचालन करेंगे । -(धारा 27 (ख)) । (ग) ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध जनशक्ति का उपयोग करके उन्हें समुचित अभिविन्यास शिक्षा देने के पश्चात् अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करेंगे (धारा 27 (ग)) । (घ) खुले विद्यालयों या खुले विश्वविद्यालयों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करेंगे (धारा 27 (घ)) । (ङ) अन्योन्य क्रियात्मक इलेक्ट्रॉनिक या अन्य संचार साधनों के माध्यम से कक्षा और परिचर्चाओं का संचालन करेंगे (धारा 27 (ङ)) । और (च) प्रत्येक निःशक्त बालक के लिए उसकी शिक्षा के लिए आवश्यक विशेष पुस्तकों और उपस्करों की निःशुक्ल व्यवस्था भी करेंगे (धारा 27 (च)) ।
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999 नियम 2000 (The National Trust Act 1999)- यूँ तो राष्ट्रीय स्वपरायणता प्रमस्तिष्कघात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 का सीधा सरोकार विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा से नहीं है फिर भी यह पर के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है। साथ ही सह बाधारहित वातावरण का निर्माण के जरिये निःशक्त व्यक्तियों में कार्यात्मक कौशल विकास और स्वयं सहायता समूह को बढ़ावा देता है।
राष्ट्रीय न्यास का उद्देश्य निःशक्त व्यक्तियों के परिवारों को सशक्त बनाना है ताकि वे निःशक्त व्यक्तियों को परिवार में ही रख सकें। यह न्यास निःशक्त व्यक्तियों और उनके परिवारों को राहत एवं कई अन्य तरह की सेवाएँ प्रदान करती हैं। ये सेवाएँ सांस्थानिक देखरेख एवं घरों के जरिए मुहैया करायी जाती हैं।
सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan (SSA))- सबके लिए शिक्षा के लक्ष्य प्राप्ति हेतु वर्ष 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में घोषणा की गई थी इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु शिक्षा के सार्वजनीकरण तथा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संसद ने 86वाँ संशोधन किया। जिसके तहत 6-14 आयुवर्ग के सभी बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मुहैया कराने के अधिकार का मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया। स्त्री-पुरुष असमानता तथा सामाजिक विभेद को पाटकर प्रारंभिक शिक्षा को लोक आधारित बनाना ही इस कार्यक्रम का मिशन है।
सर्व शिक्षा अभियान में इस बात पर बल दिया गया है कि विशेष आवश्यकता वाले सभी सामान्य स्कूलों में एकीकृत एवं समावेशी शिक्षा प्रदान की जाए साथ ही यह विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा के लिए बहुविधि दृष्टिकोणों, विकल्पों और कार्यनीतियों का समर्थन भी किया जाए। इसमें निम्न माध्यमों से दी जाने वाली शिक्षा शामिल है। मुफ्त शिक्षण पद्धति एवं मुफ्त स्कूल, गैर-औपचारिक तथा वैकल्पिक स्कूली शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा तथा अधिगम, विशेष स्कूल जहाँ कहीं भी आवश्यक हो वहाँ गृह आधारित शिक्षा भ्रमणशील अध्यापक मॉडल उपचारात्मक शिक्षण, अंशकालीन कक्षाएँ, समुदाय आधारित पुनर्वास तथा व्यावसायिक शिक्षा और सहकारी कार्यक्रम आदि।
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