अरस्तू : का जीवन परिचय, महत्वपूर्ण रचनाएँ, अध्ययन की पद्धति तथा अरस्तू पर प्रभाव
परिचय
(Introduction)
अरस्तू यूनानी राजदर्शन के इतिहास में सुकरात और प्लेटो के बाद अरस्तू का ही नाम प्रसिद्ध है। इन तीनों दार्शनिक ने न केवल यूनान की गरिमा बढाई बल्कि मानव ज्ञान के विकास में भी महान् योगदान दिया। अरस्तू प्लेटो के सबसे प्रिय शिष्य थे और राजनीतिक दर्शन में अपने गुरु से प्रेरित थे, किन्तु दोनों के राजनीतिक विचारों में विशेषकर अध्ययन पद्धति में मौलिक अन्तर मिलता है। जहाँ प्लेटो एक आदर्शवादी तथा क्रान्तिकारी विचारक थे, अरस्तू अपने चिन्तन में एक यथार्थवादी और यथास्थिति के समर्थक थे। राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में जहाँ प्लेटो ने चिन्तन की निगमन प्रणाली (Deductive Method) अपनाई, वहीं अरस्तू ने आगमन पद्धति (Incluctive Method) का प्रयोग किया। प्लेटो के दर्शन में जहाँ आदर्श और कवित्व का पुट है, अरस्तू के दर्शन मैं यथार्थवादिता और वैज्ञानिकता का समावेश है। प्लेटो की तरह अरस्तू का दर्शन भी बहुमुखी है। राजनीतिशास्त्र के अतिरिक्त नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, प्रकृतिविज्ञान जैसे विषयों का भी उनको महान् ज्ञाता माना जाता है।
जीवन परिचय
(Life History)
अरस्तू का जन्म एथेन्स से 200 मील उत्तर में स्थिति यूनानी उपनिवेश स्तागिरा में 384 ई. में हुआ था। अरस्तू के पिता निकोमाकस एक राजवैद्य थे और उनकी माता फैस्टिस एक गृहिणी थी। उसका बचपन मेसीडोनिया की राजधानी पेल्ला में बीता जहाँ उसके पिता राजवैद्य थे। उसकी बाल्यावस्था में ही उसके सिर से माँ-बाप का साया उठ गया। अरस्तू की शारीरिक बनावट एक कुरूप की तरह थी। अरस्तू ने बचपन से ही चिकित्सा विज्ञान में रुचि लेनी शुरु कर दी और उसने इस अनुभव का अपनी रचनाओं में फायदा उठाया। अरस्तू के जीवन काल को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
अपने जीवन के प्रथम काल में उसने अठारह वर्ष की आयु में प्लेटो का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। इस समय एथेन्स प्लेटो की अकादमी की ख्याति जोरों पर थी। अरस्तू एक प्रतिभाशाली छात्र था और प्लेटो का सबसे प्रिय शिष्य बन गया। अरस्तू को नई-नई पुस्तकें एकत्रित करने का शौक था। प्लेटो ने अरस्तू के घर को पाठक का घर कहा। वह प्लेटो का पिय शिष्य होने के बावजूद भी स्वतन्त्र चिन्तन में विश्वास रखता था, इसलिए उसने अपने गुरु प्लेटो के कुछ आदर्शों का विरोध भी किया। अरस्तू ने स्वयं कहा कि प्लेटो के साथ ही ज्ञान का अन्त नहीं होगा। लेकिन उसने अपने गुरु की मृत्यु तक अकादमी नहीं छोड़ी और उसकी मृत्यु पर उसे एक महान् चिन्तक बताया।
अपने जीवन के दूसरे काल में प्लेटो की मृत्यु (347 ई. पू.) के बाद वह अकादमी में प्रधान पद प्राप्त करने में असफल रहने पर एथेन्स छोड़कर अपने मित्र जेनोक्रेटिज के साथ एस्सास नामक नगर में चला गया। वहाँ पर उसने सम्राट हरमियास के दरवार में राजवैद्य का पद स्वीकार कर लिया। कालान्तर में उसने सम्राट की सहायता से एक अकादमी की स्थापना की। अरस्तु ने सम्पाट हरमियास की मानजी और दत्तकपुत्री से विवाह भी किया। 432 ई. पू. में सम्राट की मृत्यु के बाद वह एस्सास छोड़कर स्तागिरा चला गया और वहाँ पर उसने हर्पलिस नामक सुन्दरी से गुप्त विवाह कर लिया। 342 ई. पू. में ही वह मेसीडोनिया के राजा फिलिप द्वारा आमन्त्रित किए जाने पर सिकन्दर महान् को पढ़ाने हेतु मेसीडोनिया चला गया। 344 ई. पू. जब सिकन्दर विश्व विजय अभियान पर निकला तो वह वापिस एथेन्स चला गया।
अपने जीवन के तीसरे काल में मेसीडोनिया के राजा फिलिप की मृत्यु के बाद वह एथेन्स में 12 वर्ष तक रहा और उसमें ‘लाइसियम’ नामक अकादमी की स्थापना की। 323 ई.पू. सिकन्दर की मृत्यु होने पर एथेन्सवासियों ने मेसीडोनिया के विरुद्ध विदोह कर दिया। अरस्तू मेसिडोनिया समर्थक होने के कारण देशद्रोह का आरोप लगने पर अपने प्राण बचाने हेतु यूबोइया टापू के कैल्सिस नामक नगर में चला गया। यहीं पर इस महान् दार्शनिक की 322 ई. पू. में जीवन ज्योति बुझ गई।
महत्वपूर्ण रचनाएँ
(Important Works)
अरस्तू की महानता उसके जीवन से नहीं, अपितु उसकी रचनाओं से स्पष्ट होती है। उसने गणित को छोड़कर मानव- जीवन और प्राकृतिक विज्ञान के हर क्षेत्र को छुआ है। उसने दर्शन, साहित्य, यन्त्र विज्ञान, भौतिकशास्त्र, शरीर विज्ञान, खगोल विद्या, शासन कला, आचारशास्त्र, लेखन कला, भाषण कला, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति आदि विषयों पर लेख लिखे हैं। उसके गन्भीर और प्रभावशाली लेखन कार्य को देखकर यह कहा जाता है कि सबसे महान् दार्शनिक चिन्तक है। मैक्सी ने उसे ‘सर्वज्ञ गुरु’ और दाँते ने उसे ‘ज्ञाताओं का गुरु’ की संज्ञा दी है। कैटलिन ने उसे सामान्य बुद्धि और स्वर्ण मार्ग का सर्वोच्च धर्मपूत कहा है। उसके लेखन कार्य की महानता को देखकर फोस्टर कहा है. “अरस्तु की महानता उसकी रचनाओं में है, न कि उसके जीवन में।” उस की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ इस कथन को स्पष्ट करती हैं कि वह अपने समय के यूनानी ज्ञान-विज्ञान का विश्वकोष था।
अरस्तू ने लगभग 400 ग्रन्थों की रचना की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने उसके समस्त ग्रन्थों को 12 खण्डों में प्रकाशित किया है, जिसमें पृष्ठों की संख्या 3500 है। उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति ‘पॉलिटिक्स’ है। उसकी रचनाओं को सामान्य रूप से तार्किक, वैज्ञानिक, सौन्दर्यशास्त्रीय एवं दार्शनिक चार वर्गों में बाँटा सकता है। ‘कंटेगरीज’ (Categories). ‘टॉपिक्स’ (Topics), ‘प्रायर एनालीटिक्स’ (Prior Analytics), ‘पोस्टेरियर एनालीटिक्स’ (Posterior Analytics), ‘प्रोपोजीशन्स’ (Propositions), ‘सोफिस्टिकल रेफुटेशन’ (Sophistical Refutation) आदि रचनाएँ तार्किक रचनाएँ हैं।
उसने भौतिकशास्त्र, जीव विज्ञान, ऋतुविज्ञान आदि वैज्ञानिक विषयों पर भी लिखा। ‘मैटरोलॉजी (Meterology) तथा ‘हिस्ट्री ऑफ एनीमल’ (History of Animals) आदि रचनाएँ वैज्ञानिक कोटि की हैं। ‘रेटोरिक’ (Rhetoric) और ‘पोएटिक्स’ (Poetics) रचनाएँ सौन्दर्यशास्त्र के अन्तर्गत आती हैं। ‘मेटाफिजिक्स’ (Metaphysics), ‘निकोमाकियन एथिक्स’ (Nicomachean Ethics) एवं पालिटिक्स’ (Politics), ‘दो कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ एथेन्स’ (The Constitution of Athens) दर्शनशास्त्र की रचनाएँ हैं। यूडेमस’ (Eudemus), ‘काइलो’ (Caelo) तथा ‘डी अनिमा’ (De Anima) अरस्तू की अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
अध्ययन की पद्धति
(Method of Study)
अरस्तू राजनीति दर्शन के इतिहास में ऐसा प्रथम चिन्तक है जिसने एक परिपक्व विद्वान की तरह क्रमबद्ध ढंग से साहित्य का सर्जन किया। इसी कारण उसे प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक होने का श्रेय प्राप्त हुआ। अरस्तू की रचनाएँ कल्पना की उड़ान न होकर वास्तविकता से सम्बन्ध रखती हैं और उनमें प्रौढावस्था का अनुभव है। मैक्सी के अनुसार- “अरस्तु ने प्रायः वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method) का अनुसरण किया है।” इसी प्रकार वार्कर ने भी लिखा है- “अरस्तु ने एक वैज्ञानिक की तरह लिखा है, उसके ग्रन्थ क्रमबद्ध, समीक्षात्मक एवं सतर्क हैं। उसमें कल्पना की उड़ान नहीं यथार्थ का पुट है।” अरस्तू ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण वचपन से विशेष घटनाओं और तों के निरीक्षण के आधार पर प्राप्त अनुभवों का पूरा लाम उठाया और सामान्य सिद्धान्त कायम करने में सफल रहा। उसने अपने चिन्तन में जीव-विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति में जो अभिरुचि दिखाई, वह उसके पारिवारिक वातावरण की ही देन है। अतः उसको वैज्ञानिक अनुभव विरासत के रूप में प्राप्त हुआ था जिस पर उसने अपना लेखन कार्य आधारित किया।
अरस्तू की अध्ययन पद्धति की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :-
अरस्तू ने सर्वप्रथम राजनीतिशास्त्र का अध्ययन करते समय आगमनात्मक पद्धति (Inductive Method) का ही प्रयोग किया। यह पद्धति विशेष से सामान्य की ओर बढ़ती है। इसमें घटनाओं का सामान्यीकरण किया जाता है। अरस्तू ने भी घटनाओं का सामान्यीकरण किया है। बार्कर ने अरस्तू की आगमनात्मक पद्धति के बारे में लिखा है- “इस अध्ययन पद्धति का सार था निरीक्षण करना तथा सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और इसका उद्देश्य था, प्रत्येक विचार्य विषय का कोई सामान्य सिद्धान्त खोज निकालना।” अरस्तू ने इस पद्धति का प्रयोग तथ्यों के निरीक्षण, संग्रह, समायोजन, तुलनात्मक अध्ययन तथा उसके आधार पर निष्कर्ष निकालने में किया है। अतः अरस्तू दृश्यमान जगत् के वास्तविक पदार्थों को अपने विचार का आधार बताते हुए स्थूल सूक्ष्म की ओर बढ़ता है।
अरस्तू की पद्धति विश्लेषणात्मक (Analytical) भी है। इस पद्धति के अन्तर्गत किसी विषय या वस्तु के निर्माणकारी अंगों को अलग करके उनका अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए अरस्तू ने राज्य के स्वभाव का अध्ययन करने से पहले उसके निर्माणकारी तत्त्वों – परिवारों और गाँवों का अध्ययन किया है। जीवन का अध्ययन करने के लिए अरस्तू ने जीवन को तीन भागों – पौष्टिक (Nutrative), संवेदनशील (Sensitive), और बौद्धिक (Rational) में बाँटकर सामान्य सिद्धान्त की खोज की है। इसी प्रकार अरस्तू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पॉलिटिक्स’ के तीसरे अध्याय में नागरिकों को निर्माणकारी तत्त्व मानकर राज्य का अध्ययन किया है। अपनी इसी पद्धति के आधार पर अरस्तू ने विभिन्न शासन प्रणालियों में क्रान्ति के कारणों का अध्ययन किया है। इस प्रकार विश्लेषण अरस्तू की अध्ययन पद्धति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
अरस्तू ने अपने समय के विविध विषयों के बारे में जानने के लिए ऐतिहासिक घटनाओं का भी सहारा लिया है। उसने यूनानी समाज में प्रचलित 158 देशों की राजव्यवस्थाओं के ऐतिहासिक और तत्कालीन कार्य-कारण का अध्ययन किया है। अरस्तू के इन विचारों के कारण उसे ऐतिहासिक विधि (Historical Method) का जनक भी कहा जाता है।
अरस्तू ने तत्कालीन यूनानी समाज में प्रचलित 158 देशों की शासन पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन है। इस कारण अरस्तू को तुलनात्मक पद्धति (Comparative Method) का जनक कहा जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत उसने प्रत्येक किस्म के संविधान के गुणों व दुर्बलताओं का अध्ययन करके तुलनात्मक निष्कर्ष निकाले हैं। अतः निष्कर्ष तौर पर यह कहा जा सकता है कि अरस्तू ने अनुभवमूलक तों पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया है। उसकी पद्धति आगमनात्मक, ऐतिहासिक तथा विश्लेषणात्मक है। वह तथ्यों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा है। उसने इतिहास और घटनाओं का व्यापक विश्लेषण किया है। उसने विभिन्न देशों के संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन करके तुलनात्मक पद्धति को जन्म दिया हैं उसने राजनीतिशास्त्र को एक स्वतन्त्र और सम्पूर्ण विज्ञान का रूप प्रदान किया है। उसने राजनीतिशास्त्र को नीतिशास्त्र से अलग करके एक सर्वोच्च विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसलिए अरस्तू को यथार्थवादियों, वैज्ञानिकों, व्यवहारवादियों एवं उपयोगितावादियों का जनक माना जाता है।
अरस्तू पर प्रभाव
(Influence on Aristotle)
प्रत्येक राजनीतिक चिन्तक अपने काल की परिस्थितियों की उपज होता है। वह अपने समय की परिस्थितियों, वातावरण तथा प्रचलित विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अरस्तू भी इसका अपवाद नहीं था। उस पर निम्न तों का प्रभाव पड़ा :-
मंटो के विचार (Plate’s Ideas) :
अरस्तू ने अपना अधिकांश समय प्लेटो के पास ही व्यतीत किया। प्लेटो की संगति ने ही अरस्तु के दर्शन का राजनीतिक और नैतिक निर्माण किया था। इनिंग व फॉस्टर जैसे लेखक अरस्तू के दर्शन पर प्लेटो का अधिक प्रभाव मानते हैं। स्वयं प्लेटो अरस्तू को अपनी ‘अकादमी का मस्तिष्क’ कहा करता था। अरस्तू प्लेटो का 20 वर्ष तक शिष्य रहा। फॉस्टर के अनुसार- “अरस्तु प्लेटो के शियों में महान् था।” अरस्तू प्लेटो के विचारों से इतने अभिभूत हुए जितने कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य नहीं हुभा अर्थात् अरस्तू के विचार दर्शन को जितना प्लेटो ने प्रभावित किया, उतना किसी ने नहीं। अरस्तू पर प्लेटो का प्रभाव निम्नलिखित है:-
(1) राज्य का सद्गुण व्यक्ति के सद्गुण से अभिन्न है।
(i) राज्य एक स्वाभाविक, नैतिक एवं आध्यात्मिक सता है जो व्यक्ति को नैतिक रूप से बलवान बनाती है।
(ii) मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है।
(iv) राजनीतिक समस्या नैतिक समस्या है क्योंकि राज्य का उद्देश्य व्यक्ति का नैतिक विकास करना है।
(v) एक मिश्रित संविधान वाला राज्य अव्यावहारिक नहीं होता है।
(vi) अरस्तू ने अपने विचारों में अनिवार्य शिक्षा के सिद्धान्त को मान्यता दी है।
पिता का प्रभाव (Influence of His Father) :
अरस्तू का पिता एक राजवैद्य था। अरस्तू की भी इस पेशे के प्रति रुचि जाग न होना उसके पिता के पेशे का ही प्रभाव है। उसने अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपने पिता से ग्रहण किया है। उसने जीव विज्ञान सम्बन्धी बातें अपने पिता से सीखी जो उसके ग्रन्थों में स्पष्ट दिखाई देती है। राज्य की बार-बार किसी प्राणी से तुलना करना उसके इस प्रभाव को स्पष्ट करता है। बार्कर के अनुसार- “चूंकि चिकित्सक का पेशा अरस्तू के परिवार में पीढ़ियों से चला आ रहा था। अतएव अपने चिन्तन में अरस्तू ने जीव विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति में जो दिलचस्पी दिखाई है, उसका कारण उस पर पारिवारिक वातावरण का ही प्रभाव है।”
पारिवारिक जीवन (Family Life) :
अरस्तू का दाम्पत्य जीवन अत्यधिक सुखी था। उसने इसी अनुभव के कारण परिवार की संस्था का समर्थन तथा प्लेटो के पत्नियों के साम्यवाद का विरोध किया है। अरस्तू सम्पत्ति को व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक मानते हैं। उसने अपने सफल वैवाहिक जीवन के कारण अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। उसके राज्य, व्यक्ति, दास-प्रथा, सम्पत्ति, परिवार आदि पर विचार उसके पारिवारिक वातावरण से प्राप्त विचारधारा के ही परिणाम हैं।
राजदरवारों का वातावरण (Conditions of Royal Courts) :
चूँकि अरस्तू का पिता राजवैद्य था, जिसके कारण बचपन में ही उसे राजदरबारों में जाने का मौका मिलने लगा। वह स्वयं भी हरमियास तथा मैसिडोनिया के राजा फिलिप के राज दरबार में उच्च पदों पर रहा। उसने राजा फिलिप के दरबार में रहने के कारण अपनी पुस्तक ‘पोलिटिक्स’ में राजतन्त्र तथा निरंकुशतन्त्र पर टीका-टिप्पणी की है। उसने संवैधानिक राजतन्त्र का समर्थन राजदरबारों के वातावरण से प्रभावित होकर ही किया है।
तत्कालीन परिस्थितियों (Contemporary Conditions) :
कोई भी विचारक तत्कालीन सामाजिक व राजनीतिक वातावरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अरस्तू पर भी तत्कालीन परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ा। उस समय यूनान की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल हो रही थी। नगर-राज्यों में परिवर्तन हो रहे थे। मकदूनिया के सम्राट ने नगर-राज्यों की स्वतन्त्रता समाप्त कर दी थी। यह यूनानी नगर राज्यों के जीवन में हास का युग थां इस काल में स्पार्टा का पतन हुआ था। इन परिस्थितियों ने अरस्तू को सोचने के लिए बाध्य किया कि यूनानी नगर राज्यों के पतन के क्या कारण थे। अरस्तू ने इसका कारण यूनानियों में एकता का अभाव बताया। समकालीन परिस्थितियों में राजनीतिक चिन्तन का आदर्श नगर-राज्य थे। यद्यपि अरस्तू ने मेसोडोनिया के साम्राज्यवाद के दर्शन कर लिए थे, लेकिन फिर भी वह यूनानियों के हृदय से नगर-राज्यों का अथाह प्रेम व लगाव की भावना को नहीं निकाल सका। उसने नगर-राज्य को ही अपने अनुशीलन का केन्द्र बनाया। इस प्रकार तत्कालीन राजनीतिक व सामाजिक वातावरण ने भी अरस्तू के मानस-पटल पर गहरा प्रभाव डाला। अतः हम कह सकते हैं कि अरस्तू का चिन्तन किसी एक तत्त्व से प्रभावित न होकर अनेक तत्त्वों से प्रभावित हुआ। उस पर सबसे अधिक प्रभाव अपने गुरु प्लेटो व पारिवारिक पृष्ठभूमि का पड़ा। इनके अतिरिक्त यूनानी सभ्यता, राजदरबारों के वातावरण वृतत्कालीन परिस्थितियों ने भी उसे प्रभावित किया। अतः अनेक तत्त्वों ने उसके मौलिक चिन्तन पर प्रभाव डाला है।
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