प्लेटो प्रथम फासीवादी के रूप में
प्लेटो प्रथम फासीवादी के रूप में
(Plato as the First Fascist)
राजनीतिक दर्शन में प्लेटो के सिद्धान्तों के आधार पर उन्हें प्रथम फासीवादी मानने पर विचार किया जाता है। प्लेटो के कुछ आलोचक उसे फासीवाद का अग्रदूत और मुसोलिनी का पूर्वज कहते हैं। पॉपर, क्रासमेन, रसेल, अलफ्रेड हार्नल जैसे विद्वान् उसे विश्व का प्रथम फासिस्ट और सर्वसत्ताधिकारवादी मानते हैं। प्लेटो के फासीवाद को जानने से पहले फासीवादी विचारधारा का अर्थ जानना आवश्यक है। फासीवाद का जनक मुसोलिनी था जो इटली का तानाशाह था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सर्वाधिकारवादी विचारधारा का जन्म हुआ, फासीवाद एक ऐसी विचारधारा है जो व्यक्ति के स्थान पर समूह को व्यक्तिगत हित के स्थान पर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर चलती है। यह विचारधारा सर्वसत्ताधिकारवादी राष्ट्र की जान होती है। इसमें उन-राष्ट्रवाद वैयक्तिक स्वतन्त्रता का विरोध, लोकतन्त्र व उदारवाद का विरोध, बुद्धिवाद का विरोध, हिंसा व शक्ति में विश्वास आदि प्रवृत्तियों पाई जाती है। प्लेटो को इन फासीवादी विचारों का प्रेरणा-स्रोत मानकर उन पर प्रथम फासीवादी होने का लेबल लगा दिया गया। प्लेटो ने भी अपने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक की निरंकुशता, राज्य का महत्व, विवेक पर आधारित कुलीनवर्ग का प्रभुत्व, यूनानी जाति की श्रेष्ठता का गुणगान, लोकतन्त्र की भर्त्सना करके अपने ऊपर फासीवादी होने का आरोप लगवा लिया। प्लेटो के फासीवादी होने के तर्क को स्पष्ट करने के लिए प्लेटो के विचारों की फासीवादी विचारधारा से तुलना करना आवश्यक हो जाता है। दोनों में कुछ समानताएँ हैं, जिनके आधार पर उसे प्रथम फासीवादी माना जाता है।
प्लेटो फासीवादी के रूप में
(Plato as the Fascist)
अनेक विद्वान् प्लेटो को प्रथम फासीवादी कहते हैं। इसके निम्नलिखित कारण हैं :-
1. सर्वाधिकारवादी राज्य में विश्वास (Relief in Totalitarian Sate) : प्लेटो का सर्वसत्तावाद उसके साम्यवादी सिद्धान्त में स्पष्ट हो जाता है। वह विवाह जैसे व्यक्तिगत मामलों में भी व्यक्ति को राज्य के अधीन कर देता है। प्लेटो का विश्वास है कि जो कुछ है राज्य के अन्दर है, बाहर नहीं। वह व्यक्ति को पूर्णतया राज्य के अधीन कर देता है। फासीवादी नेता मुसोलिनी का भी यही तर्क था कि- “सब कुछ राज्य के अन्दर है, राज्य के विरुद्ध या राज्य के बाहर कुछ नहीं।”
2. निरंकुश शासन (Dictatorial Rule) : दोनों का विश्वास है कि आम जनता में शासन करने की क्षमता नहीं होती। शासन करने की योग्यता तो कुछ ही व्यक्तियों में होती है। अतः श्रेष्ठ व्यक्ति ही शासन करने के योग्य हो सकते हैं। प्लेटो ने दार्शनिक राजा के निरंकुश नेतृत्व में विश्वास किया है। उसने दार्शनिक राजा को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ तथा बुद्धिमान मानकर उसकी आज्ञाओं का पालन जनता द्वारा करना अनिवार्य बना दिया है। उसने स्पष्ट कर दिया है कि दार्शनिक शासक स्वयं कानूनों, जनमत व परम्पराओं से परे है। इसी प्रकार फासीवादी भी एक नेता के शासन में विश्वास करते हैं जो सर्वसत्तावादी होता है।
3. लोकतन्त्र व उदारवाद का विरोध (Opposition to Democracry and Liberalism) : दोनों विचारधाराएँ लोकतन्त्र । उदारवाद की घोर विरोधी हैं। प्लेटो ने अपने ग्रन्थ ‘रिपब्लिक’ में लोकतन्त्र की आलोचना करते हुए कहा है- “लोकतन्त्र के कानून म तक शब्द रहते हैं, उसकी स्वतन्त्रता निरंकुशता है, उसकी समानता असमानों की समानता है।” फासीवादियों के लिए प्रजातन्त्र मूर्खतापूर्ण, भ्रष्ट, धीमी, काल्पनिक तथा अव्यावहारिक प्रणाली है। प्लेटो प्रजातन्त्र को अज्ञानी लोगों का शासन कहता है। इसी प्रकार दोनों उदारवादी विचारधारा का भी विरोध करते हैं।
4. उग्र-राष्ट्रवाद का समर्थन (Favour of Radical Nationalism) : प्लेटो के लिए नगर राज्य पूर्ण और सर्वश्रेष्ठ है। फासीवाद भी अपने इटली राष्ट्र को सर्वेसर्वा मानकर उसके लिए त्याग तथा बलिदान की माँग करता है। दोनों ही राष्ट्र के हित में सब कुछ बलिदान करने पर जोर देते हैं।
5. जातीय श्रेष्ठता (Racial Supremacy) : प्लेटो यूनानियों को सभ्य व सुसंस्कृत मानकर उन्हें दास बनाने का विरोधी है। उसका मानना है कि यूनानी जाति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। इसी प्रकार फासीवादी नेता मुसोलिनी जातीय श्रेष्ठता में विश्वास रखते हैं। इस प्रकार दोनों में काफी समानता है।
6. राज्य की सर्वोच्चता (Supremacy of State) : प्लेटो व फासीवादी दोनों ही राज्य को सर्वोपरि मानते हैं। दोनों का रूप अधिनायकवादी है। दोनों राज्य-हित को सर्वोपरि मानते हैं। दोनों राज्य को साध्य व व्यक्ति को साधन मानते हैं। व्यक्ति राज्य हित में वृद्धि का साधन मात्र होता है। इसलिए राज्य को साध्य मानकर दोनों राज्य के हित में व्यक्ति के हितों की बलि दे देते हैं
7. अन्तरराष्ट्रीयवाव का विरोध (Against Internationalism) : प्लेटो को चिन्तन का केन्द्र यूनानी नगर राज्य एथेन्स था। वह अपने चिन्तन में एथेन्स की राजनीतिक समस्याओं का वर्णन करता है। फासीवाद का जनक इटली नगर था। मुसोलिनी ने इटली की राजनीतिक स्थिरता के लिए ही फासीवाद का नारा दिया। दोनों विचारधाराएँ अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों व समझौते की कट्टर विरोधी हैं।
8. कर्तव्यों की प्रधानता (Emphasis an Duties) : दोनों विचारधाराओं में कर्तव्यों पर ही बल दिया गया है। फासीवाद का यह मानना है कि नागरिकों को अपने नेता की बात आँख बन्द करके माननी चाहिए। इस तरह दोनों व्यक्ति के अधिकारों की मांग की उपेक्षा करके कर्तव्यों पर ही बल देते हैं। प्लेटो ने तो राज्य की आज्ञा का पालन करने के लिए नागरिकों से प्राण तक त्यागने की बात की है।
9. शिक्षा पर नियन्त्रण (Control on Education) : फासीवादी राष्ट्र की आवश्यकतानुसार ही पाठ्यक्रम निर्धारित करते है।। फासीवाद में फासीवादी सिद्धान्तों की ही शिक्षा दी जाती है। राज्य का शिक्षा पर पूरा नियन्त्रण रहता है। इसी प्रकार प्लेटो ने भी राज्य की आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम निर्धारित किया हैं शिक्षा द्वारा सैनिक और शासक तैयार किए जाते हैं। राज्य का शिक्षा पर पूरा नियन्त्रण रहता है। इस प्रकार दोनों में बहुत अधिक समानता है।
10. अभिजन-वर्ग का शासन (Rule of Elites) : प्लेटो का मानना है कि शासन करने की क्षमता थोड़े ही व्यक्तियों में होती है। यह अल्पसंख्यक वर्ग ही शासन कर सकता है। इसी प्रकार फासीवादी भी थोड़े से व्यक्तियों के शासन में विश्वास करते है।। उनका मानना है कि बहुमत का शासन भ्रष्ट व अयोग्य होता है। अतः दोनों कुलीनतन्त्र में विश्वास करते हैं, जो बुद्धिजीवियों का समूह है।
11. समानता के सिद्धान्त का विरोध (Against Principle of Human Equality) : दोनों असमानता में विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि प्रकृति ने सबको समान नहीं बनाया। इसलिए कुछ तो शासक बनने के लिए पैदा होते हैं और कुछ शासित होने के लिए। सभी व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता व कार्य करने की क्षमता समान नहीं होती। अतः दोनों समानता के सिद्धान्त के घोर विरोधी हैं।
उपर्युक्त तर्कों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्लेटो एक फासीवादी चिन्तक थे। वार्कर ने प्लेटो के शासन को योग्य व्यक्तियों की निरंकुशता माना है। रसेल ने भी प्लेटो के शासक को तानाशाह कहा है। लेकिन कुछ विद्वानों ने प्लेटो को फासीवादी मानने से इन्कार किया है। उनका मानना है कि दोनों में मौलिक अन्तर है। एच. बी. एक्टन, ई. अंगर, जी. सी. फील्ड, आदि विद्वानों का कहना है कि प्लेटो को फासिस्ट मानना एक मिथ्या धारणा है। सी. ई. एम. जोड ने अपने प्रसिद्ध ‘गाइडटु फिलासफी ऑफ मोरलस एण्ड पॉलिटिक्स’ (Guide to Philosophy of Morals and Politics) में दिखाया है कि फासीवाद और प्लेटोवाद में मौलिक अन्तर है। इसलिए फासीवादी सिद्धान्तवादियों का यह दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है कि प्लेटो फासीवादी थे। प्लेटो के प्रथम फासीवादी न होने के पक्ष में निम्न तर्क हैं :-
1. दोनों सिद्धान्तों के उद्भव काल में 2300 वर्ष का अन्तर है। दोनों जिन परिस्थितियों से जन्मे उनमें बिलकुल अन्तर है।
2. प्लेटो का दर्शन एक पूर्ण व व्यवस्थित दर्शन है, जबकि फासीवाद एक सम्पूर्ण दर्शन न होकर नीत्रो, प्रेटो, हेगल, मुसोलिनी आदि फासीवादियों के सिद्धान्तों का समूह है जो इधर-उधर बिखरे हुए हैं।
3. फासीवाद में तर्क के विरुद्ध विद्रोह है, जबकि प्लेटो आदर्श राज्य में मुक्ति को एक गौरवपूर्ण स्थान देते हैं।
4. प्लेटो साम्राज्यवाद का विरोधी था जबकि फासीवादी साम्राज्यवाद का समर्थन करते हैं।
5. प्लेटो का राज्य हमेशा एक विचार ही रहा जबकि फासीवादी विचार एक तथ्य है। प्लेटोवाद राजनीतिक आदर्शवाद का जबकि फासीवाद राजनीतिक यथार्थवाद का प्रतीक है।
6. प्लेटो ने राजनीति विज्ञान को नीतिविज्ञान के अधीन किया है, जबकि फासीवादी नीति-विज्ञान को ही राजनीति-विज्ञान के अधीन कर देते हैं।
7. प्लेटो साम्यवाद की बात करता है, जबकि फासीवादी साम्यवाद व समाजवाद के घोर शत्रु हैं।
8. प्लेटोवाद एक शान्तिवादी विचारधारा है, जबकि फासीवाद हिंसा व युद्ध में विश्वास रखता है।
9. प्लेटोवाद संयम व विवेक पर आधारित है। वह किसी भी प्रकार से विरोधियों के दमन की अनुमति नहीं देता, परन्तु फासीवादी विचारधारा विरोधियों के दमन चारी शोषण का समर्थन करती है।
10. प्लेटोवाद नैतिकता में विश्वास करता है, जबकि फासीवादी किसी प्रकार की नैतिकता में विश्वास नहीं करते। उनका लक्ष्य तो सदैव अवसरवादिता के आधार पर हित-साधना है।
11. प्लेटो शासक में सद्गुणों का होना आवश्यक बताता है, जबकि फासीवादी शासक के लिए शारीरिक और धूर्ततापूर्ण वल पर जोर देते हैं।
12. फासीवाद ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस की उक्ति में विश्वास करते हैं, जबकि प्लेटो शक्ति के किसी भी रूप का घोर विरोधी है।
13. प्लेटो के शासक का उद्देश्य जनकल्याण करना है, जबकि फासीवादी शासक का उद्देश्य स्वार्थ-सिद्धि करना है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्लेटो न तो फासिस्ट था और न फासीवाद का अग्रगामी। यद्यपि उसक कुछ बातें फासीवाद से मिलती है, लेकिन दोनों के चिन्तन में असमझौतानादी अन्तर है। उसे हिटलर व मुसोलिनी की तरह सर्वसत्ताधिकारवादी नहीं माना जा सकता। दोनों सिद्धान्तों का उद्भव भिन्न-भिन्न कालों व परिस्थितियों में हुआ है। दोनों श्को एक साथ मिलाना सर्वथा अनुपयुक्त है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्लेटो न तो फासीवादी थे और न ही फासीवाद के अग्रदूत। उन्हें फासिस्ट कहना केवल अनैतिहासिक ही नहीं, बल्कि असत्य व अनुचित भी है।
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