पबज्जा संस्कार का वर्णन कीजिये ।
पबज्जा का शाब्दिक अर्थ ‘बाहर जाना’ होता है अर्थात् इस संस्कार के उपरान्त बौद्ध भिक्षु बनकर मठों में विद्याध्ययन करता था। पबज्जा संस्कार 8 वर्ष की आयु में होता था 8 वर्ष से पहले नहीं। विनय पिटक के अनुसार पवज्जा संस्कार में बालक सिर मुँडवाकर पीले वस्त्र धारण कर मठ के भिक्षुओं के समक्ष जाता था, चरण स्पर्श कर भूमि पर बैठ जाता था। तदुपरान्त सर्वश्रेष्ठ भिक्षु बालक से- बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि की शपथ दिलाता था और उसे 10 आदेश देता था।
(1) चोरी मत करना। (2) असत्य भाषण मत करना। (3) जीव हत्या मत करना। (4) अशुद्ध आचरण मत करना। (5) वर्जित समय पर आहार मत करना। (6) बिना दिये वस्तु ग्रहण न करना। (7) मादक वस्तुओं का प्रयोग मत करना। (8) श्रृंगार की वस्तुओं का प्रयोग मत करना। (9) सोना, चाँदी एवं बहुमूल्य वस्तुओं का दान मत लेना। (10) नृत्य, संगीत, तमाशे के पास मत जाना।
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