B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

प्रक्षेपण विधियाँ | Projective Techniques in Hindi

प्रक्षेपण विधियाँ
प्रक्षेपण विधियाँ

प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Techniques )

व्यक्तित्व मापन की प्रक्षेपण विधियों का जन्म फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद से हुआ।

फ्रायड ने प्रक्षेपण शब्द की व्याख्या करते हुए कहा- “प्रक्षेपण का अर्थ उस प्रक्रिया से है, जिसमें व्यक्ति अपने भावों, विचारों, भावनाओं, इच्छाओं, संवेगों, स्थायी भावों एवं आन्तरिक संघर्षों को अन्य बाह्य जगत के माध्यम से सुरक्षात्मक रूप प्रदान करता है।”

प्रक्षेपण एक ‘मनोरचना’ (Defence Mechanism) है जो व्यक्ति के आत्म की रक्षा करता है। यह एक अचेतन प्रक्रिया है। इस प्रकार जब व्यक्ति के समक्ष कोई अस्पष्ट उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तो वह अपने अचेतन के भावों, विचारों, संवेगों, अभिवृत्तियों एवं दमित इच्छाओं को उस पर आरोपित अथवा प्रक्षेपित कर देता है। इसके फलस्वरूप व्यक्ति के अचेतन के विभिन्न पक्षों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। ये सभी पक्ष व्यक्तित्व के अभिन्न अंग माने जाते हैं।

इन विधियों के अन्तर्गत परीक्षण सामग्री के रूप में स्याही के धब्बों, अपूर्ण वाक्यों और अस्पष्ट तस्वीरों अथवा कुछ विशेष प्रकार के चित्रों का प्रयोग किया जाता है। जिस परीक्षण सामग्री में चित्र अथवा विषयवस्तु स्पष्ट होती है उसे संरचित सामग्री (Structured Material) कहा जाता है। अस्पष्ट परीक्षण सामग्री को “असंरचित सामग्री” (Unstructured Material) कहा जाता है। इन्हीं सामग्रियों के सन्दर्भ में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, भावनाओं, द्वन्द्वों, आकांक्षाओं और संवेगों को व्यक्त करता है जिनके आधार पर व्यक्तित्व का मापन किया जाता है। इन विधियों में प्रमुख हैं- (i) रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण (Rorschach’s Ink-Blot Test), (ii) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (Thematic Apperception Test), (iii) बाल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण (Children Apperception Test), (iv) वाक्य-पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test)।

(i) रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण

इस विधि का आविष्कार स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हरमैन रोर्शाक ने 1921 ई० में किया। इस परीक्षण के अन्तर्गत 10 प्रामाणिक स्याही के धब्बों के कार्डों को प्रयुक्त किया जाता है। इन कार्डों में 5 बिल्कुल काले, 2 काले और लाल तथा 3 में कई रंग मिले होते हैं।

रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण

रोर्शाक स्याही के धब्बों का परीक्षण

परीक्षण विधि-इस विधि का प्रयोग करने हेतु परीक्षक को विशेष रूप से प्रशिक्षित होना आवश्यक है। परीक्षण का प्रयोग करने से पूर्व परीक्षार्थी को ये आदेश दिए जाते हैं पत्र भिन्न व्यक्तियों को इन धब्बों में भिन्न-भिन्न वस्तुएं दिखाई देती हैं। आपको ये चन् एक- एक करके दिखाये जायेंगे। प्रत्येक कार्ड को ध्यान से देखिए और बताइए कि आप इसमें क्या देखते हैं? आप जितनी देर तक कोई देखना चाहें, देख सकते हैं किन्तु जो वस्तुएँ इस चित्र में आपको नजर आती हों उन सबको बताते जाइए। जब आप उसे पूरी तरह देख लें तो उसे मुझे लौटा दें। एक धब्बा (चित्र) दिखाते हुए, यह क्या हो सकता है?

उपर्युक्त आदेशों के पश्चात् एक-एक करके कार्ड विद्यार्थी अथवा परीक्षार्थी को दिखायें जाते हैं। परीक्षार्थी इन धब्बों को देखकर जो प्रतिक्रिया व्यक्त करता है उसे लिखते जाते हैं।

विश्लेषण-परीक्षार्थी के उत्तरों का विश्लेषण निम्न चार बातों के आधार पर किया जाता है-

(1) स्थान- इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने धब्बे के किसी विशिष्ट भाग के प्रति प्रतिक्रिया की है अथवा पूरे धब्बे के प्रति ।

(2) गुण-इसमें यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी की प्रतिक्रिया धब्बे की बनावट के फलस्वरूप है अथवा विभिन्न रंगों के कारण अथवा गति के कारण।

(3) विषय- इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी धब्बे में मनुष्य की आकृति देखता है, पशु की आकृति देखता है अथवा किसी वस्तु की आकृति या प्राकृतिक दृश्यों की आकृति देखता है।

(4) समय- इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी ने प्रत्येक धब्बे को दिखाने के हेतु कितना समय लिया है।

मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर व्यक्ति की चेतन और अचेतन विशेषताओं की जाँच की जा सकती है। इस परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की सामाजिकता, संवेगात्मक प्रतिक्रिया, रचनात्मक और कल्पनात्मक शक्तियों का विकास, समायोजन क्षमता और अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का पता लगाया जाता है।

(ii) प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण

इस विधि को टी. ए. टी. टेस्ट (T. A. T. Test) भी कहा जाता है। इस विधि के निर्माण का श्रेय मार्गन एवं मरे को है। इसका प्रकाशन 1935 ई0 में हुआ। इस विधि में 30 चित्र होते हैं, जिनमें 10 पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए और 10 पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए होते हैं, परन्तु सामान्यतः केवल 20 चित्रों का ही प्रयोग किया जाता है। इनमें से एक चित्र खाली होता है। इस विधि में व्यक्ति को एक-एक चित्र दिखाया जाता है और उससे उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है। कहानी बनाने के लिए समय का कोई बन्धन नहीं होता।

व्यक्ति को कहानी बनाने के लिए कहने से पूर्व उससे कहा जाता है कि चित्र देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी और अब क्या घटना घटित हो रही है। चित्र ध्यान से देखिए और यह बताइए कि चित्र में जो व्यक्ति है उसके क्या-क्या भाव हैं और क्या-क्या विचार हैं तथा इस कहानी का अन्त किस प्रकार होगा।

व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(iii) बाल सम्प्रत्यक्षण विधि

सी. ए. टी. (C.A. T.) टेस्ट अथवा बालकों का बोध परीक्षण भी कहा जाता है। यह परीक्षण बालक-बालिकाओं के लिए है। इसमें 10 चित्र होते हैं जो किसी न किसी जानवर से सम्बन्धित होते हैं। इनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं; जैसे-पारस्परिक अथवा भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त की जाती है और प्राप्त सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(iv) वाक्यपूर्ति अथवा कहानी पूर्ति परीक्षण

इस विधि के अन्तर्गत बालकों के सामने अधूरी कहानियाँ तथा अधूरे वाक्य रखे जाते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए कहा जाता है। वाक्य की पूर्ति करने में बालक अपनी इच्छाओं, भय और अभिवृत्तियों को अभिव्यक्त करता है।

Important Links…

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment