राजनीति विज्ञान / Political Science

प्रश्नावली के गुण एंव दोष | merits and demerits of questionnaire in Hindi

प्रश्नावली के गुण एंव दोष | merits and demerits of questionnaire in Hindi
प्रश्नावली के गुण एंव दोष | merits and demerits of questionnaire in Hindi

प्रश्नावली के गुण एंव दोष | merits and demerits of questionnaire in Hindi

प्रश्नावली विधि के गुण ( महत्त्व )

आधुनिक समय में सामाजिक अनुसंधानों में तथ्यों के संकलन हेतु प्रश्नावली विधि का प्रयोग दिनों-दिनों बढ़ता ही जा रहा है। इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए विल्सन गी ने लिखा है, “यह व्यक्तियों के एक बड़े समूह अथवा अधिक बिखरे हुए व्यक्तियों के एक छोटे से चुने हुए समूह से कुछ सीमित सूचनाएं प्राप्त करने की एक. सुगम विधि है।” कैथराइन गोर्डन कैप्ट ने भी लिखा है, “प्रश्नावली के द्वारा वस्तुपरक तथा परिमाणात्मक तथ्यों के साथ-साथ गुणात्मक प्रकृति की सूचनाओं के विकास की जानकारी को भी एकत्रित किया जा सकता है।” प्रश्नावली-विधि के गुण, लाभ, उपयोगिता अथवा महत्त्व को हम विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत इस प्रकार दर्शा सकते हैं-

(1) विशाल जनसंख्या का अध्ययन (Study of Large Population)- प्रश्नावली विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसके द्वारा हम दूर-दूर तक फैले हुए क्षेत्र एवं विशाल जनसंख्या का अध्ययन कम समय, धन एवं श्रम खर्च करके कर सकते हैं। अन्य विधियों द्वारा विशाल जनसंख्या के अध्ययन हेतु अधिक धन, समय और श्रम की आवश्यकता होती है। इसी उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए सिन पाओ येंग लिखते हैं, “प्रश्नावली एक विशाल एवं विस्तृत क्षेत्र में बिखरे हुए व्यक्तियों के समूह में से सूचनाएं संकलित करने की शीघ्रतम तथा सरलतम विधि प्रदान करती है।”

(2) निम्नतम व्यय (Minimum Expenses) – प्रश्नावली विधि अन्य विधियों की अपेक्षा अध्ययन की कम खर्चीली विधि है। कागज, छपाई तथा डाक व्यय पर होने वाले अल्प खर्च में ही विशाल क्षेत्र का अध्ययन हो जाता है। क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की इस विधि में आवश्यकता न होने से उनके वेतन एवं भत्तों तथा संगठन सम्बन्धी व्यय की आवश्यकता ही नहीं होती।

(3) न्यूनतम समय (Minimum Time ) – प्रश्नावलियों को छपवाकर एक साथ डाक द्वारा सभी सूचनादाताओं के पास भेज दिया जाता है जो शीघ्र ही भरकर पुनः लौटा दी जाती हैं। इसके विपरीत साक्षात्कार, अवलोकन तथा अनुसूची विधि में अध्ययनकर्ता को सूचनादाता से व्यक्तिगत सम्पर्क करना पड़ता है जिसके लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है, यदि क्षेत्र विस्तृत हो तो समय की और अधिक आवश्यकता होती है जबकि प्रश्नावलियां एक ही साथ भेजी जाती हैं और कुछ समय में अधिकांश उत्तर सहित लौटा दी जाती हैं।

(4) न्यूनतम श्रम (Minimum Labour)- प्रश्नावली द्वारा अध्ययन करने के लिए हमें अधिक अध्ययनकर्ताओं की आवश्यकता नहीं होती। एक केन्द्रीय कार्यालय से ही प्रश्नावलियों को भेजा व प्राप्त किया जाता है। उनके वर्गीकरण, सारणीयन, निर्वचन, निष्कर्ष एवं प्रतिवेदन तैयार करने में भी अधिक लोगों की आवश्यकता नहीं होती।

(5) पुनरावृत्ति सम्भव ( Repetition Possible)- कुछ अनुसन्धान इस प्रकार के होते हैं कि उनके लिए हमें थोड़े-थोड़े समय बाद बार-बार सूचनाएं एकत्रित करनी होती हैं, तब यही विधि अधिक उपयोगी होती है। प्रश्नावली की अनेक प्रतियां छपवाकर रख ली जाती हैं जो समय-समय पर सूचनादाओं के पास भेज दी जाती हैं।

(6) सुविधाजनक (Convenient)- प्रश्नावली-विधि सूचना संकलित करने की एक सरल एवं सुविधाजनक विधि है क्योंकि इसे सूचनादाता अपनी सुविधा एवं रुचि के अनुसार समय मिलने पर भर सकता है। अनुसन्धानकर्ता को भी सूचनादाता से साक्षात्कार का समय निर्धारण करने की आवश्यकता नहीं होती।

(7) स्वतन्त्र तथा प्रामाणिक सूचनाएं (Free and Valid Informations) – चूंकि प्रश्नावली भरते समय अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता के समक्ष उपस्थित नहीं होता है, अतः वह खुलकर स्वतन्त्र रूप से अपने विचार व्यक्त करता है। फलस्वरूप प्रामाणिक सूचनाएं प्राप्त होती हैं। सूचनादाता पर अनुसन्धानकर्ता के उपस्थित होने पर जो प्रभाव पड़ता है तथा सूचना में पक्षपात आने की सम्भावना रहती है, उससे भी इस विधि में बचाव हो जाता है। इस प्रकार प्रश्नावली द्वारा प्राप्त सूचनाएं विश्वसनीय, प्रामाणिक एवं पक्षपात रहित होती हैं।

(8) स्वयं-प्रशासित (Self Administered)— प्रश्नावली द्वारा सूचनाएं प्राप्त करने के लिए अनुसन्धानकर्ता को स्वयं क्षेत्र में उपस्थित नहीं होना पड़ता और न ही किसी प्रकार के संगठन तथा व्यवस्था की समस्या में उलझना पड़ता है। उसे अध्ययनकर्ताओं के चुनाव, प्रशिक्षण, संगठन एवं प्रशासन से मुक्ति मिल जाती है। डाक द्वारा भेजने के बाद प्रश्नावलियां भरकर स्वयं ही आ जाती हैं। इसलिए ही यह विधि स्वयं-प्रशसित एवं संगठित होती है।

(9) सांख्यिकीय प्रयोग सम्भव (Statistical Treatment Possible ) — बोगार्डस ने लिखा है, “इस (प्रश्नावली) से प्रमापीकृत परिणाम प्राप्त होते हैं जिन्हें सारणीबद्ध तथा सांख्यिकीय रूप से प्रयोग में लाया जा सकता है।” इस कथन से स्पष्ट है कि प्रश्नावली द्वारा प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण, सारणीयन एवं श्रेणीबद्ध करना सरल है तथा परिणामों को प्राप्त करने के लिए उन पर सांख्यिकीय सूत्रों का प्रयोग किया जा सकता है।

(10) तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study) प्रश्नावली विधि द्वारा विभिन्न अध्ययनकर्ताओं के परिणामों की परस्पर तुलना सरलता से की जा सकती है क्योंकि प्रश्नावली विधि में अनुसन्धान के समय अध्ययनकर्ता उपस्थित न होने से सूचनाएं सामान्यतः निष्पक्ष, स्वरूप एवं प्रामाणिक होती हैं जिनकी तुलना करना सम्भव है।

प्रश्नावली-विधि के दोष (सीमाएं)

प्रश्नावली विधि की अनेक उपयोगिताएं एवं लाभ होते हुए भी यह दोषों से पूरी तरह मुक्त नहीं है। इसकी कमियों को बताते हुए एफ.एल. बिटनी ने लिखा है, प्रश्नावली शायद सबसे दूषित प्रविधि है, क्योंकि इसमें आन्तरिक कमजोरियां मौजूद हैं।” प्रश्नावली के प्रमुख दोष या सीमाएं निम्नांकित हैं-

(1) अशिक्षितों के लिए अनुपयुक्त (inappropriate for Uneducated) – प्रश्नावली का प्रयोग केवल शिक्षित लोगों के लिए ही हो सकता है क्योंकि सूचनादाता को स्वयं उन्हें पढ़कर भरना होता है। हमारे देश में जहां अशिक्षा का प्रतिशत अधिक है, वहां इसका प्रयोग सीमित मात्रा में ही हो सकता है।

(2) प्रत्युत्तर की समस्या (Problem of Response) – प्रश्नावलियां बहुत कम संख्या में लौटकर आती हैं अथवा सूचनादाता उन्हें भरकर लौटाने में तत्परता नहीं बरतते हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांश सूचनादाता लापरवाह, अनिच्छुक एवं आलसी होते हैं, कुछ सर्वेक्षण के उद्देश्य को नहीं समझ पाते, उनके पास समयाभाव होता है अथवा प्रश्नों का उत्तर देना नहीं जानते या व्यक्तिगत तथ्यों को स्वयं लिखना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में बहुत कम प्रश्नावलियां ही पुनः प्राप्त होती हैं।

(3) अपूर्ण सूचनाएं (Incomplete Informations)- कई बार प्रश्नावलियों में मुख्य प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता है। जब सूचनादाता प्रश्नों को नहीं समझ पाते हैं या गुप्त सूचनाएं नहीं देना चाहते हैं तो जान-बूझकर वे ऐसे प्रश्नों के उत्तरों को टाल जाते हैं अथवा लापरवाही एवं शीघ्रता से भरने पर प्रश्नों के छूट जाने की सम्भावना भी बनी रहती है। इस प्रकार प्रश्नावली-विधि द्वारा संकलित सूचनाएं अपर्याप्त एवं अपूर्ण होती हैं।

(4) अस्वच्छ एवं अस्पष्ट लेख (Dirty and Illegible Writing)- प्रश्नावलियों को सूचनादाता स्वयं भरते हैं और सभी लोगों का लेख सुन्दर नहीं होता। ऐसी स्थिति में प्राप्त उत्तरों को पढ़ना एवं समझना एक समस्या को जाती है। उत्तरों में काट-छांट एवं पुनर्लेखन (Over-writing), गन्दे एवं घसीटमा लिखे अक्षर पढ़े नहीं जा सकते, अतः कई प्राप्त सूचनाएं उपयोगी नहीं हो पातीं।

(5) प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन असम्भव (Representative Sampling Impossible)- प्रश्नावली विधि द्वारा अध्ययन के लिए चयनित निदर्शन क्षेत्र का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं करता है क्योंकि क्षेत्र में शिक्षित एवं अशिक्षित सभी प्रकार के लोग होते हैं, किन्तु प्रश्नावली का प्रयोग केवल शिक्षितों के लिए ही किया जा सकता है। अतः समग्र के सम्बन्ध में वैषयिक ढंग से सामान्यीकरण करना सम्भव नहीं हो पाता है।

(6) भावात्मक प्रेरणा का अभाव (Lack of Emotional Stimulation) प्रश्नावली विधि में सूचनादाता एवं अनुसन्धानकर्ता में व्यक्तिगत एवं आमने-सामने का सम्पर्क नहीं हो पाता। अतः वे एक-दूसरे के विचारों को अच्छी तरह नहीं समझ सकते और न ही अनुसन्धानकर्ता सूचनादाता को प्रश्नावली भरने के लिए भावात्मक प्रेरणा ही दे सकता है। अतः यह एक औपचारिक विधि मात्र रह जाती है जिसके परिणामस्वरूप अपूर्ण एवं अपर्याप्त सूचनाएं प्राप्त होती हैं।

(7) सार्वभौमिक प्रश्नों का निर्माण असम्भव (Impossibility of Uniform Questions)– सूचनादाताओं के स्वभाव, विचारधारा, आदर्श, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एवं शिक्षा के स्तर में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। अतः ऐसी प्रश्नावली का निर्माण करना कठिन है जो सभी लोगों के लिए सार्थक एवं व्यावहारिक हो तथा जिसे समान रूप से सभी पर लागू किया जा सके। ऐसी स्थिति में निष्कर्षों का भिन्न-भिन्न आना स्वाभाविक है।

(8) गहन अध्ययन असम्भव (Deeper Study Impossible) प्रश्नावली द्वारा विषय का गहन अध्ययन नहीं किया जा सकता क्योंकि एक तो समय का अभाव होता है, दूसरा अनुसन्धानकर्ता की अनुपस्थिति के कारण खोद खोजकर सूचनाएं नहीं पूछी जा सकतीं और न ही भावात्मक प्रेरणा दी जा सकती है। अतः इसके द्वारा केवल मोटी-मोटी बातें एवं सतही सूचनाएं ही एकत्रित की जा सकती हैं, गहन नहीं।

(9) विश्वसनीयता का अभाव (Lack of Reliability)— प्रश्नावली द्वारा प्राप्त सूचनाएं पूर्ण विश्वसनीय नहीं मानी जा सकतीं क्योंकि अनुसन्धानकर्ता की अनुपस्थिति के कारण कई बार सूचनादाता प्रश्नों को समझ ही नहीं पाते या उनका गलत अर्थ लगाते हैं, ऐसी स्थिति में प्राप्त उत्तर प्रामाणिक एवं विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते।

(10) उत्तर लिखने में अनुसन्धानकर्त्ता की सहायता का अभाव (Lack of assistance of the investigator in answering the Questions)— प्रश्नावली विधि में सूचनादाता कई बार कुछ प्रश्नों को समझने में असमर्थ रहता है जिसे समझाने के लिए वहां अनुसन्धानकर्ता नहीं होता है। ऐसी स्थिति में उन प्रश्नों के उत्तर या तो छोड़ दिये जाते हैं या गलत लिख दिये जाते हैं।

प्रश्नावली की कमियों का उल्लेख करते हुए सीजर ने लिखा है, “प्रश्नावली द्वारा प्राप्त उत्तरों से यह पता लगना असम्भव है कि कौन सा उत्तर सूचनादाता का लापरवाहीपूर्ण अनुमान है और कौन सा जान-बूझकर दी गई गलत सूचना।” पार्टेन ने लिखा है, “इसमें सन्देह नहीं कि सर्वोत्तम प्रश्नावली की अपेक्षा उत्तम साक्षात्कार के द्वारा अधिक गहन अध्ययन किया जा सकता है।” प्रश्नावली विधि की कुछ कमियां होने पर भी सीमित साधनों में विशाल क्षेत्र के अध्ययन हेतु इसका प्रयोग काफी किया जाता है। एल्बर्ट एलिस का मत है कि प्रेम तथा वैवाहिक सम्बन्धों के बारे में अध्ययनों में प्रश्नावली विधि साक्षात्कार की भाँति ही सन्तोषप्रद रही है। गुडे एवं हाट ने भी लिखा है, “अनेक कमियों के होते हुए भी, स्वयं प्रशासित डाक प्रेषित प्रश्नावली अनुसन्धान में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है।” यदि प्रश्नावली में प्रश्नों का निर्माण तथा निदर्शन का चुनाव उपयुक्त एवं समुचित रूप से किया जाय तो इसके द्वारा प्राप्त सूचनाएं निश्चय ही प्रामाणिक एवं विश्वसनीय होंगी।

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