व्यक्तित्व की परिभाषाएँ (Definitions of Personality )
वाटसन के अनुसार- “विश्वसनीय सूचना प्राप्त करने के दृष्टिकोण से काफी लम्बे समय तक वास्तविक निरीक्षण या अवलोकन करने के पश्चात् व्यक्ति में जो भी क्रियाएँ अथवा व्यवहार का जो भी रूप पाया जाता है, उसे उसका व्यक्तित्व कहा जाता है।”
मन के अनुसार “व्यक्तित्व व्यक्ति की संरचना, व्यवहार के ढंगों, रुचियों, अभिवृत्तियों, क्षमताओं, योग्यताओं एवं अभियोग्यताओं के विलक्षण संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार- “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित एवं गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है। इसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपनी सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है।”
बीसेन्ज और बीसेन्ज के अनुसार- “व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोणों तथा विशेषताओं का संगठन है। यह प्राणिशास्त्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारणों से संयुक्त कार्य द्वारा उत्पन्न होता है।”
गिलफोर्ड के अनुसार- “व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।” वाटसन के अनुसार- “व्यक्तित्व वह सब है जो हम करते हैं।”
व्यक्तित्व के इस अध्ययन विधि में किसी एक व्यक्ति का विस्तृत विश्लेषण करके उन, विमाओं का, जो उस व्यक्ति को समझने के लिए आवश्यक होता है, विश्लेषण करके व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। इसके अन्तर्गत शोधकर्ता उन शीलगुणों के संयोगों (Combination) की पहचान करने का प्रयास करता है जो किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व की व्याख्या उचित ढंग से करता है। इस उपागम के प्रमुख समर्थक गोर्डन ऑलपोर्ट हैं। ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व के शीलगुणों को तीन भागों में विभाजित किया है- कार्डिनल शीलगुण (Cardinal traits), केन्द्रीय शीलगुण (Central traits) और गौण शीलगुण (Secondary traits) । इन शीलगुणों की पहचान करके ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व की व्याख्या अत्यन्त संतोषजनक ढंग से किया है।
नियमान्वेषी उपागम (Nomothatic Approach)- यह उपागम व्यक्तित्व के अध्ययन का एक दृष्टिकोण है। इस उपागम में अध्ययन किए जाने वाले सभी व्यक्तियों की तुलना व्यक्तित्व के चुने गये प्रमुख विमाओं पर की जाती है। प्रत्येक विमा पर व्यक्तियों द्वारा प्राप्त माध्यों की तुलना आपस में करके किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास किया जाता है। गोर्डन ऑलपोर्ट द्वारा इस उपागम पर बल दिया गया है परन्तु इसे उतना महत्त्वपूर्ण नहीं माना जाता जितना भावमूलक उपागम को माना जाता है।
व्यक्तित्व का प्रकार उपागम (Type Approach of Personality)
प्रकार सिद्धान्त व्यक्तित्व का अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति को अनेक प्रकार में बाँटा जाता है और उसके आधार पर उसके शीलगुणों का वर्णन किया जाता है। स्कोपलर, मार्गन, विस्ज और किंग आदि के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार से अभिप्राय, “व्यक्तियों के एक ऐसे वर्ग से होता है जिनके गुण एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं।” यदि व्यक्तित्व के अध्ययन के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाय तो यह स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 2500 वर्ष पहले भी इस सिद्धान्त के द्वारा व्यक्तित्व की व्याख्या की जाती थी। सर्वप्रथम प्रकार सिद्धान्त हिप्पोक्रेट्स ने 400 ई० पू० में प्रतिपादित किया था। उसने शरीर द्रवों के आधार पर व्यक्तित्व के चार प्रकार बताये हैं। उसके अनुसार मानव शरीर में चार प्रमुख द्रव्य पाये जाते हैं- पीला पित्त, काला पित्त, रक्त और कफ अथवा श्लेष्मा प्रत्येक व्यक्ति में इन चारों द्रवों में से कोई एक द्रव अधिक प्रधान होता है और व्यक्ति का स्वभाव इसी की प्रधानता से निर्धारित होता है। जिस व्यक्ति में पीले पित्त की प्रधानता होती है उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। इस “प्रकार” को हिप्पोक्रेट्स ने “गुस्सैल” (Chaleric) कहा है। जब व्यक्ति में काले पित्त की प्रधानता होती है तो वह प्रायः उदास एवं मन्दित दिखाई देता है। जिस व्यक्ति में अन्य द्रवों की अपेक्षा रक्त की प्रधानता होती है वह प्रसन्न एवं खुशमिजाज होता है। जिस व्यक्ति में कफ अथवा श्लेष्मा की प्रधानता होती है वह शान्त स्वभाव का होता है और उसमें निष्क्रियता अधिक पाई जाती है।
यद्यपि हिप्पोक्रेट्स का “प्रकार सिद्धान्त” अपने समय का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त था किन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा इसे पूर्णतः अस्वीकृत कर दिया गया। इसका प्रमुख कारण यह है कि व्यक्ति के शीलगुणों एवं उसके स्वभाव अथवा चित्त प्रकृति का सम्बन्ध शारीरिक द्रवों से होने का कोई सीधा एवं वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रकार सिद्धान्त को मुख्यतः दो भागों में बाँटकर व्यक्तित्व की व्याख्या की गयी है। प्रथम भाग में व्यक्ति के शारीरिक गुणों और उसके स्वभाव के सम्बन्धों पर बल दिया गया है और दूसरे भाग में व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर उसे भिन्न-भिन्न प्रकारों में विभाजित करके अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। “प्रकार सिद्धान्त” के दोनों भागों का वर्णन यहाँ किया जा रहा है-
(1) शारीरिक गुणों के आधार पर शारीरिक गुणों के आधार पर प्रतिपादित सिद्धान्तं को “शरीर गठन सिद्धान्त” कहा जाता है। इस आधार पर क्रेश्मर एवं शैल्डन द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण अधिक महत्त्वपूर्ण है। क्रेश्मर ने शारीरिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व के चार प्रकार बताये हैं जो निम्नवत् हैं-
(i) स्थूलकाय प्रकार (Pyknic type)- इस प्रकार के व्यक्ति का कद छोटा और शरीर भारी एवं गोलाकार होता है। ऐसे व्यक्तियों की गर्दन छोटी एवं मोटी होती है। ऐसे व्यक्ति सामाजिक होते हैं, खाने-पीने तथा सोने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं तथा खुशमिजाज होते हैं। इस तरह के स्वभाव को क्रेश्मर ने “साइक्लोआड” की संज्ञा दी है।
(ii) कृणकाय प्रकार ( Asthenic type)- इस प्रकार के व्यक्ति का कद लम्बा होता है किन्तु वे दुबने-पतले शरीर वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के शरीर की मांसपेशियाँ विकसित नहीं होतीं तथा शरीर का वजन आयु के अनुसार होने वाले सामान्य वजन से कम होता है। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है, ये सामाजिक उत्तरदायित्व से दूर रहते हैं। इस तरह के व्यक्ति में दिवास्वप्न अधिक होता है और काल्पनिक दुनिया में भ्रमण करने की आदत इनमें अधिक होती है।
(iii) पुष्टकाय प्रकार (Atheletic type)- इस प्रकार के व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियाँ काफी विकसित एवं गठीली होती हैं और कद न तो अधिक लम्बा और न अधिक मोटा होता है। इनका शरीर सुडौल एवं सन्तुलित दिखाई देता है। ऐसे व्यक्ति के स्वभाव में न तो अधिक चंचलता होती है और न अधिक मन्दता, ऐसे व्यक्ति परिवर्तित परिस्थितियों के साथ आसानी से समायोजित हो जाते हैं।
(iv) विशालकाय प्रकार (Dysplastic Type)- इस प्रकार में उन व्यक्तियों को रखा जाता है जिनमें उपर्युक्त तीनों प्रकारों में से किसी भी प्रकार का स्पष्ट गुण नहीं होता बल्कि तीनों का गुण सम्मिलित होता है।
कालान्तर में कुछ वैज्ञानिकों ने, जैसे शैल्डन ने अपने अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिक नहीं पाया और इसमें विधि-प्रणाली से सम्बन्धित अनेक दोष पायें। शैल्डन ने यह भी कहा कि कैश्मर का वर्गीकरण सामान्य व्यक्तियों की व्याख्या करने में असमर्थ है। परिणामस्वरूप उसने दूसरा सिद्धान्त प्रतिपादित किया नसे “सोमैटो टाइप सिद्धान्त” (Somatotype theory) कहा जाता है। शैल्डन ने 1940 ई० में शारी रक गठन के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण करने के लिए 4000 छात्रों की नग्न तस्वीरों का विश्लेषण कर यह बताया कि व्यक्तित्व को मूलत: तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण शीलगुण होते हैं जिनसे उनके स्वभाव का पता चलता है। शेल्डन द्वारा वर्गीकृत तीन प्रकार निम्नवत् हैं-
(अ) एण्डोमाफी (Endomorphy)- इस तरह के व्यक्ति मोटे एवं नाटे होते हैं एवं इनका शरीर गोलाकार होता है। शैल्डन ने यह बताया कि इस तरह के शारीरिक गठन वाले व्यक्ति आरामपसन्द, खुशमिजाज सामाजिक और खान-पान में अधिक रुचि लेने वाले होते हैं। इस स्वभाव को शैल्डन ने “विसरोटीनिया” (Visrotonia) कहा है।
(ब) मेसोमार्फी (Mesomorphy)- इस तरह के व्यक्ति की हड्डियाँ और मांसपेशियाँ अधिक विकसित होती हैं और शारीरिक गठन सुडौल होता है। ऐसे व्यक्ति के स्वभाव को सोमैटोटोनिया (Somatotonia) कहा जाता है। इनमें जोखिम एवं बहादुरी का कार्य करने की प्रवृत्ति, दृढ़ कथन, आक्रामकता आदि गुण पाये जाते हैं।
(स) एक्टोमार्फी (Ectomorphy)- इस तरह के व्यक्ति का कद लम्बा होता है परन्तु ऐसे व्यक्ति दुबले-पतले होते हैं। इनके शरीर की मांसपेशियाँ अविकसित होती हैं तथा इनका शारीरिक गठन इकहरा होता है। इस तरह के व्यक्ति के स्वभाव को सैरीब्रोटोनिया (Cerebrotonia) कहा जाता है। ऐसे लोग संकोची और लज्जाशील होते हैं।
यद्यपि शैल्डन ने शारीरिक गठन के आधार पर व्यक्तित्व को तीन भागों में विभाजित किया है परन्तु इसे उन्होंने एक सतत् प्रक्रिया माना है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इन तीनों प्रकार के शारीरिक गठन एवं उसे सम्बन्धित शीलगुण आपस में बिल्कुल अलग-अलग नहीं होते, फलस्वरूप उसने प्रत्येक शारीरिक गठन का मापन 1 से 7 तक की श्रेणियों में विभाजित किया। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि 4000 व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक गठन को तीनों प्रकारों में 1 से 7 तक में श्रेणीकृत किया।
(2) मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर- मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर किया है इसमें युंग, आइजेन्क और गिलफोर्ड का नाम अधिक प्रसिद्ध है। युंग ने व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं-
(i) बहिर्मुखी (Extrovert)- इस तरह के व्यक्ति की अभिरुचि विशेषकर सामाजिक कार्यों में अधिक होती है। वे लोगों से मिलना-जुलना पसन्द करते हैं और अधिकतर प्रसन्नचित्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति आशावादी होते हैं और अपना सम्बन्ध यथार्थता से अधिक और आदर्शवाद से कम रखते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज के हेतु उपयोगी होते हैं।
(ii) अन्तर्मुखी (Introvert)- इस तरह के व्यक्ति में बहिर्मुखी के विपरीत गुण पाये जाते हैं। इस तरह के व्यक्ति बहुत अधिक लोगों से मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते और उनकी दोस्ती कुछ ही लोगों तक सीमित होती है। ये आत्म-केन्द्रित होते हैं।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा युंग के वर्गीकरण की आलोचना की गयी और यह कहा गया कि सभी लोग इन दोनों में से किसी एक श्रेणी में आयें, यह आवश्यक नहीं है। अधिकतर व्यक्तियों में दोनों श्रेणियों के गुण पाये जाते हैं। ऐसी स्थिति में वे बहिर्मुखी व्यवहार करते हैं एवं दूसरी परिस्थिति में अन्तर्मुखी व्यवहार करते हैं। इस तरह के व्यक्तियों को आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने उभयमुखी (Ambivert) की संज्ञा दी है।
आइजेन्क ने भी मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताये हैं। उसने युंग के अन्तर्मुखी बहिर्मुखी सिद्धान्त की सत्यता को जाँचने के लिए 10000 सामान्य और तन्त्रिका रोगियों पर अध्ययन किया तथा विशेष सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर यह बताया कि व्यक्तित्व के तीन प्रकार होते हैं, जो निम्नवत् हैं
(i) अन्तर्मुखी- बहिर्मुखता (Introversion-extroversion)- आइजेन्क ने युंग के अन्तर्मुखता एवं बहिर्मुखता सिद्धान्त को स्वीकार तो किया किन्तु इसे व्यक्तित्व का दो अलग-अलग प्रकार नहीं माना। उसका कहना है कि ये दोनों प्रकार एक-दूसरे के विपरीत हैं और इन्हें एक साथ मिलाकर रखा जा सकता है और एक ही मापनी बनाकर अध्ययन किया जा सकता है। चूँकि ऐसा नहीं होता कि ये दोनों प्रकार के गुण एक ही व्यक्ति में एक साथ अधिक में अथवा कम हों, अतएव इसे आइजेन्क ने व्यक्ति का एक ही प्रकार माना जो स्पष्ट रूप से द्विध्रुवीय हैं, यथा- किसी व्यक्ति में सामाजिकता अधिक पाई जाती है और मिलना-जुलना अधिक पसन्द करता है तो यह कहा जाता है कि व्यक्ति बहिर्मुखता पक्ष में है। दूसरी ओर यदि व्यक्ति अकेले रहना पसन्द करता है, लज्जाशील है तो यह कहा जाता है कि ऐसा व्यक्ति अन्तर्मुखता पक्ष में अधिक है।
(ii) स्नायुविकृति स्थिरता (Neuroticism Stability)- आइजेन्क के मतानुसार व्यक्तित्व का यह दूसरा प्रकार है। व्यक्तित्व के इस प्रकार के पहले किनारे पर होने पर व्यक्ति में सांवेगिक नियन्त्रण कम होता है और उसकी इच्छा-शक्ति दुर्बल होती है। इसके विचारों और क्रियाओं में मन्दता पाई जाती है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा अधिकतर अपनी इच्छाओं का दमन किया जाता है। इस प्रकार के दूसरे किनारे पर व्यक्तित्व में स्थिरता होती है जिसकी ओर बढ़ने पर उक्त व्यवहारों की मात्रा घटती जाती है और व्यक्ति में स्थिरता की मात्रा बढ़ती जाती है।
(iii) मनोविकृतता पराहं की क्रियाएँ (Psychoticism superego function)- आइजेन्क ने व्यक्तित्व इस प्रकार को बाद में किए गए शोध के आधार पर जोड़ा है। उसने इस प्रकार की व्याख्या करते हुए कहा कि व्यक्तित्व का यह “प्रकार” मानसिक रोग की एक – विशेष श्रेणी जिसे मनोविकृति कहा जाता है, के तुल्य नहीं है। हाँ, यह अवश्य है कि मनोविकृति रोग से पीड़ित व्यक्ति में मनोविकृतता के गुण अधिक होते हैं। आइजेन्क अनुसार मनोविकृति व्यक्तित्व वाले प्रकार में क्षीण एकाग्रता, क्षीण स्मृति एवं क्रूरता का गुण अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति में असंवेदनशीलता, दूसरों के प्रति सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध की कमी, के खतरे के प्रति असतर्कता, सृजनात्मकता की कमी आदि गुण पाये जाते हैं। इस प्रकार के दूसरे किनारे पर पराहं की क्रियाएँ होती हैं और ज्यों-ज्यों इस किनारे की ओर हम बढ़ते हैं इन व्यवहारों की मात्रा घटती जाती है और व्यक्ति में आदर्शत्व एवं नैतिकता की मात्रा बढ़ती जाती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आइजेन्क के तीनों प्रकार द्विध्रुवीय है। अर्थात् यह कदापि नहीं है कि अधिकतर व्यक्ति को दो किनारों में से किसी एक किनारे पर रखा जा सकता है। सत्य तो यह है कि प्रत्येक “प्रकार” के बीच में ही अधिकतर व्यक्तियों को रखा जाता है।
गिलफोर्ड ने आइजेन्क के अन्तर्मुखता बहिर्मुखता “प्रकार” का विस्तृत रूप से विश्लेषण किया और पाया कि इन प्रकारों में व्यक्तित्व के कई तरह के शीलगुण पाये जाते हैं। उसने अपने अध्ययन के आधार पर आइजेन्क के विचारों की पुष्टि की।
इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तित्व के प्रकार सिद्धान्त में व्यक्तित्व के समान शीलगुणों को एक साथ मिलाकर एक विशेष प्रकार का निर्माण किया जाता है और उसी विशेष “प्रकार” के अनुसार व्यक्तित्व की व्याख्या की जाती है। इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें व्यक्तित्व को एक संगठित एवं समग्र रूप से अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। इस गुण के बावजूद भी इस सिद्धान्त की आलोचना की गयी। जो निम्न हैं-
(1) “प्रकार” सिद्धान्त में इस बात की पूर्वकल्पना की गयी है कि सभी व्यक्ति किसी न किसी “प्रकार” अथवा श्रेणी में निश्चित रूप से आते हैं, किन्तु सत्य यह है कि एक ही व्यक्ति में व्यक्तित्व के कई प्रकारों का गुण मिलता है जिसके कारण उन्हें किसी एक “प्रकार” में रखना सम्भव नहीं है।
(2) “प्रकार” सिद्धान्त के अनुसार जब किसी व्यक्ति को एक विशेष “प्रकार” में रखा जाता है यह पूर्वकल्पना भी कर ली जाती है कि उसमें उस “प्रकार” से सम्बन्धित सभी गुण होंगे, परन्तु सत्य यह है कि यदि किसी व्यक्ति को अन्तर्मुखी श्रेणी में स्थान दिया जाता है तो यह पूर्वकल्पना की जाती है कि उसमें अन्य गुणों के अतिरिक्त सांवेगिक संवेदनशीलता भी होगी एवं ऐसा व्यक्ति एकान्तप्रिय होगा किन्तु ये दोनों गुण एक अन्तर्मुखी व्यक्ति में भी हो सकते हैं अथवा नहीं भी हो सकते हैं।
(iii) “प्रकार” सिद्धान्त द्वारा व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या तो होती है किन्तु व्यक्तित्व विकास की व्याख्या नहीं हो पाती है।
(iv) कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि “प्रकार सिद्धान्त” में विशेष रूप से शारीरिक गठन है आधार पर किए गए वर्गीकरण में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक के महत्त्व को गौण रखा निश्चित सम्बन्ध होता है, वह व्यापक होता है और सभी परिस्थितियों में समान होता है, उचित गया है। शैल्डन का यह दावा है कि व्यक्ति के शारीरिक गठन और उसके शीलगुणों में जो नहीं है। विटेकर का मत है कि इस तरह का सम्बन्ध वास्तव में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों से अधिक प्रभावित होता है।
(v) शैल्डन ने अपने “प्रकार सिद्धान्त” में शारीरिक संगठन एवं स्वभाव से सम्बन्धित शीलगुणों के मध्य उच्च सह-सम्बन्ध पाया है। कुछ आलोचकों का विचार है कि यह सह-सम्बन्ध वास्तविक नहीं था। हॉल एवं लिण्डजे ने ठीक ही लिखा है, “सह-सम्बन्ध की मात्रा से
अन्वेषणकर्त्ता की पूर्व धारणा की शक्ति का पता चलता है न कि शारीरिक गठन एवं चित्त प्रकृति के मध्य वास्तविक सम्बन्ध का ।”
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी प्रकार सिद्धान्त की मान्यता आज तक बनी हुई जिसका प्रमाण इस बात से मिल जाता है कि इन विभिन्न प्रकारों के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों द्वारा विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है।
Important Links…
- ब्रूनर का खोज अधिगम सिद्धान्त
- गैने के सीखने के सिद्धान्त
- थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
- अधिगम का गेस्टाल्ट सिद्धान्त
- उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त या S-R अधिगम सिद्धान्त
- स्किनर का सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त
- पैवलोव का सम्बद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त
- थार्नडाइक द्वारा निर्मित अधिगम नियम
- सीखने की प्रक्रिया
- सीखने की प्रक्रिया में सहायक कारक
- अधिगम के क्षेत्र एवं व्यावहारिक परिणाम
- अधिगम के सिद्धांत
- अधिगम के प्रकार
- शिक्षण का अर्थ
- शिक्षण की परिभाषाएँ
- शिक्षण और अधिगम में सम्बन्ध