अनियंत्रित एवं नियंत्रित अवलोकन की विवेचना कीजिये।
अवलोकन अथवा निरीक्षण की दो प्रमुख विधियाँ अनियंत्रित एवं नियंत्रित अवलोकन का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-
(1) अनियन्त्रित अवलोकन- अनियन्त्रित अवलोकन अथवा निरीक्षण से अभिप्राय उस निरीक्षण से है जिसके दौरान निरीक्षणकर्ता निरीक्षण की जाने वाली घटना, वस्तु, या व्यक्ति पर कोई भी नियंत्रण नहीं रखता है। श्रीमती पीं. वी. यंग अनियंत्रित निरीक्षण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखती हैं, “अनियंत्रित निरीक्षणों में हमें वास्तविक जीवन की परिस्थितियों की सूक्ष्म परीक्षा करनी होती है, जिनमें यथार्थता के यन्त्रों के प्रयोग अथवा निरीक्षण की हुई घटना की शुद्धता की जांच का कोई प्रयत्न नहीं किया जाता है।”
सहभागी अवलोकन, असहभागी अवलोकन तथा अर्द्ध-सहभागी अवलोकन अनियन्त्रित अवलोकन के ही विभिन्न स्वरूप हैं। सामाजिक अनुसंधान में अनियंत्रित निरीक्षण के प्रयोग को स्पष्ट करते हुए सर्वश्री गुडे व हाट ने लिखा है, “मनुष्य के पास सामाजिक सम्बन्धों के बारे में जो कुछ ज्ञान है, उसका अधिकांश अनियन्त्रित निरीक्षण के द्वारा ही प्राप्त हुआ है, चाहे वह निरीक्षण सहभागी हो या असहभागी ।”
अनियन्त्रित अवलोकन की उपयोगिता – सामाजिक घटनाओं की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि उनका वास्तविक अध्ययन अनियन्त्रित दशाओं में ही किया जा सकता है। प्रत्येक सामाजिक घटना पर नियंत्रण संभव नहीं है और जिन पर संभव है नियंत्रित दशा में उनकी प्रकृति व व्यवहार में कृत्रिमता आ जाती है। स्पष्ट सामाजिक घटनाओं के अध्ययन व अवलोकन में अनियन्त्रित निरीक्षण अत्यन्त उपयोगी प्रविधि है।
अनियन्त्रित अवलोकन के दोष- इस प्रविधि का एक प्रुमख दोष यह है कि इसमें अध्ययन वस्तु अनुसंधानकर्ता के नियंत्रण से पूर्णतया परे होता है, अनुसंधानकर्ता से नियंत्रणहीन होता है। नियंत्रण के अभाव में अध्ययनकर्ता भावना का प्रयोग कर सकता है। प्रो. जे. बर्नार्ड ने पक्षपात की संभावना को स्वीकार करते हुए लिखा है, “आंकड़े इतने वास्तविक एवं सजीव होते हैं और उनके बारे में हमारी भावनाएँ इतनी दृढ़ होती है कि कभी-कभी हम अपनी भावनाओं की शक्ति को ही ज्ञान का विस्तार समझने की गलती कर बैठते हैं।”
( 2 ) नियन्त्रित अवलोकन – नियन्त्रित अवलोकन या पूर्व नियोजित निरीक्षण कहे जा सकते हैं क्योंकि निरीक्षण के पूर्व ही घटनास्थिति को नियंत्रित कर लिया जाता है। नियंत्रण के माध्यम से अनियंत्रित निरीक्षण की अनेक कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया है। इस प्रविधि में निरीक्षणकर्ता तथा निरीक्षण की जाने वाली सामाजिक दशा दोनों पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाता है। लुण्डबर्ग ने नियंत्रित अवलोकन के चार प्रमुख तत्व बतलायें हैं- अवलोकन की जाने वाली इकाइयों तथा सम्बद्ध पक्षों का पूर्ण निर्धारण व परिभाषित करना, निरीक्षण हेतु सामग्री विशेष का चयन करना, सामाजिक घटना, स्थान, व्यक्ति व समय का निर्धारण करना तथा मशीनों व यंत्रों का अनुप्रयोग।
इस प्रविधि में नियंत्रण दो प्रकार से कार्यान्वित किये जाते हैं-
- (क) सामाजिक घटना पर नियंत्रण
- (ख) निरीक्षणकर्ता पर नियंत्रण
प्रथम प्रविधि के अन्तर्गत सामाजिक घटनाओं पर नियंत्रण रखा जाता है, नियन्त्रण के कारण ही इसे सामाजिक प्रयोग की संज्ञा दी जाती है। इसमें सामाजिक शोधकर्ता सामाजिक घटनाओं को सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत ही नियन्त्रित करने तथा अध्ययन कार्य को संचालित करने का प्रयत्न करता है।
इसके अतिरिक्त निरीक्षणकर्ता स्वयं अपने ऊपर नियन्त्रण रखता है, सामाजिक घटनाओं को नियन्त्रित करने के बजाय निरीक्षणकर्ता को ही कुछ साधनों व औपचारिकताओं द्वारा नियत्रण में रखा जाता है। अनुसन्धानकर्ता के व्यक्तिगत प्रभाव को कम या समाप्त करने के लिए उसको नियन्त्रित किया जाता है। इसके लिए निरीक्षण की विस्तृत योजना पहले से ही बना लेना, अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग, विस्तृत क्षेत्रीय टिप्पणी, फोटोग्राफ्स, कैमरा, सिनेमा- फिल्म आदि का प्रयोग किया जाता है।
नियन्त्रित और अनियन्त्रित अवलोकन में भेद
1. नियंत्रित अवलोकन में घटनाओं एवं उनकी परिस्थितियों तथा स्वयं अध्ययनकर्ता पर नियंत्रण रखकर अध्ययन किया जाता है। अनियंत्रित अवलोकन में घटनाओं या उनकी परिस्थितियों पर कोई नियंत्रण नहीं रखा जाता। उन्हें उनके स्वाभाविक एवं स्वतंत्र रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार नियंत्रित विधि में अध्ययनकर्ता पर भी नियंत्रण रखा जाता है व उसे अपने व्यवहार को पूर्ण निश्चित निर्देशों के अनुसार नियंत्रित एवं सीमित रखना पड़ता है। अनियंत्रित अवलोकन विधि में अध्ययनकर्ता पर इस प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं होता।
2. नियंत्रित अवलोकन में एक पूर्व निर्धारित योजना एवं कार्यक्रम के अनुसार अध्ययन किया जाता है। अनियंत्रित अवलोकन में ऐसी कोई योजना या निर्धारित कार्यक्रम नहीं होता।
3. नियंत्रित अवलोकन में अवलोकन अनुसूची, फोटोग्राफ्स, टेपरिकार्डर, फिल्म, मूवमेंट रिकार्डर, क्षेत्रीय नोट्स, मानचित्र आदि का प्रयोग नितांक आवश्यक होता है। अनियंत्रित अवलोकन में साधनों का प्रयोग किया जा सकता है परंतु इनके प्रयोग के बिना भी अवलोकन किया जा सकता है।
4. नियंत्रित अवलोकन में अध्ययनकर्ता का समूह के साथ किसी प्रकार का वैयक्तिक या भावनात्मक एकीकरण नहीं होता अतः अध्ययन की वैषयिकता बनी रहती है। इसके विपरीत अनियंत्रित अवलोकन में चाहे वह सहभागी हो या असहभागी, समूह के साथ कुछ न कुछ भावनात्मक एकीकरण स्थापित हो जाता है। जिससे अध्ययन की वैषयिकता नष्ट होने की संभावना को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता।
5. नियंत्रित अवलोकन एक निश्चित सीमा में रहकर करना पड़ता है अतः ऐसा अध्ययन गहन एवं सूक्ष्म न होकर सीमित होता है। इसके विपरीत अनियंत्रित अवलोकन में किसी प्रका की सीमा निर्धारण या व्यवहार नियंत्रण नहीं होता अतः ऐसा अध्ययन अधिक विस्तृत उपक एवं गहन होता है।
6. नियंत्रित अवलोकन में समूह के व्यवहारों व क्रियाओं की गोपनीयता को प्रकाश में लाने में कठिनाई आती है, जबकि अनियंत्रित अवलोकन में समूह की क्रियाओं का गहराई से अध्ययन कर उनकी गोपनीयता को भी प्रकाश में लाने की संभावनाएँ अधिकद रहती हैं।
7. नियंत्रित अवलोकन व्यवस्थित, सुनियोजित एवं स्पष्ट रहता है। उसमें अध्ययनकर्ता के व्यक्तिगत झुकाव, विश्वासों या विचारधाराओं का प्रभाव नहीं पड़ता तथा उससे प्राप्त ज्ञान अधिक वस्तुनिष्ठ एवं प्रमाणित रहता है। जबकि अनियंत्रित अवलोकन में व्यक्तिगत झुकाव, विश्वासों एवं विचारधाराओं का प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है अतः प्राप्त ज्ञान अपेक्षाकृत कम वस्तुनिष्ठ एवं कम प्रमाणित हो सकता है।
8. नियंत्रित अवलोकन का कार्यक्षेत्र सीमित होता है, अनियंत्रित अवलोकन का कार्यक्रम विस्तृत होता है। नियंत्रित अवलोकन में समूह के कुछ विशिष्ट व्यवहारों का गहनता से अध्ययन किया जाता है जबकि अनियंत्रित अवलोकन में समूह के किसी विशिष्ट व्यवहार का ही अध्ययन करने संबंधी कोई नियंत्रण नहीं रहता अतः संपूर्ण समूह के सभी व्यवहारों का अध्ययन किया जा सकता है।
इस प्रकार नियंत्रित एवं अनियंत्रित अवलोकन में घटनाओं एवं परिस्थितियों तथा अध्ययनकर्ता पर नियंत्रण के आधार पर अध्ययन एवं अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता एवं गहनता के आधार पर अध्ययन में लगने वाले समय, श्रम एवं व्यय के आधार पर अध्ययन में प्राप्त होने वाली सामग्री के आधार पर तथा अध्ययन में प्राप्त होने वाली वस्तुनिष्ठता एवं प्रामाणिकता के आधार पर अंतर किया जा सकता है। दोनों प्रकार के अवलोकनों के गुण-दोषों के आधार पर भी दोनों में अंतर किया जा सकता है। परंतु दोनों प्रकार के अवलोकनों की उपयोगिता का निर्धारण अध्ययन विषय, अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन समूह की प्रकृति एवं अध्ययन की आवश्यकता के अनुरूप किया जा सकता है।
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