स्तरित / वर्गीकृत निदर्शन विधि क्या है? इसके गुण दोषों का वर्णन कीजिये।
स्तरित या वर्गीकृत निदर्शन विधि (Stratified Sampling Method)
यह विधि दैव निदर्शन और सविचार निदर्शन का मिश्रित रूप है, अतः इसे मिश्रित निदर्शन भी कहते हैं। इस विधि का प्रयोग दैव निदर्शन और सविचार निदर्शन दोनों के लाभों को एक साथ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसमें सर्वप्रथम समग्र को विचारपूर्वक कई सजातीय वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है और उसके बाद प्रत्येक वर्ग में से निश्चित संख्या में दैव • निदर्शन विधि से इकाइयों का चुनाव किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें अजमेर या जयपुर नगर में जाति व्यवस्था का अध्ययन करना है तो पहले हम सम्पूर्ण नगर को विभिन्न जातियों में बांट देंगे और उसके पश्चात् प्रत्येक जाति या समूह में से दैव निदर्शन विधि से निश्चित मात्रा में इकाइयों का चयन करेंगे।
इस विधि का प्रयोग उसी समय किया जाता है जब समग्र की सभी इकाइयां सजातीय न हों। जिन इकाइयों के समान लक्षण हों, उन्हें एक वर्ग के अन्तर्गत रख लिया जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक वर्ग में से निश्चित मात्रा में निदर्शन चुन लिया जाता है। स्तरित निदर्शन विधि का प्रयोग करते समय हमें निम्नांकित सावधानियां बरतनी चाहिए-
(i) समग्र की सभी विशेषताओं को ज्ञात करके उसे उनके आधार पर विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत कर लिया जाय।
(ii) प्रत्येक स्तर का आकार इतना बड़ा अवश्य हो जिसमें से निदर्शन हेतु इकाइयों का चयन किया जा सके।
(iii) विभिन्न स्तरों (वर्गों) में पूर्णरूपेण सजातीयता हो अर्थात् प्रत्येक वर्ग में आने वाली इकाइयों में एकरूपता हो तथा एक वर्ग समग्र के एक ही गुण का प्रतिनिधित्व करे।
(iv) विभिन्न स्तरों या वर्गों में से इकाइयों का चुनाव उसी अनुपात में किया जाय जिस अनुपात में उनकी संख्या समग्र में है।
(v) वर्ग स्पष्ट तथा सुनिश्चित होने चाहिए ताकि प्रत्येक इकाई किसी न किसी वर्ग में आ जाय और कोई भी इकाई एक से अधिक वर्गों में न आए।
(vi) वर्गों का निर्माण अध्ययन विषय की प्रकृति के अनुरूप हो।
स्तरित निदर्शन के प्रकार (Types of Stratified Sampling)
स्तरित निदर्शन के प्रमुख तीन प्रकार हैं-
(1) आनुपातिक स्तरित निदर्शन (Proportionate Stratified Sampling)– इस विधि के अनुसार प्रत्येक वर्ग में से निदर्शन हेतु उतनी ही इकाइयों का चयन किया जाता है जिस अनुपात में वर्ग की कुल इकाइयां समग्र में हैं।
(2) असमानुपातिक स्तरित निदर्शन (Disproportionate Stratified Sampling) – इस विधि में प्रत्येक वर्ग में से समान संख्या में इकाइयां चुनी जाती हैं। इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि उनका समग्र में क्या अनुपात है।
(3) भारयुक्त स्तरित निदर्शन (Stratified Weighted Sampling) – इस विधि में उपर्युक्त दोनों विधियों का मिश्रण पाया जाता है। इस विधि में पहले प्रत्येक वर्ग में से समान संख्याओं का चुनाव किया जाता है, उसके बाद अधिक संख्या वाले वर्गों की इकाइयों को अधिक भार प्रदान करके उनका प्रभाव बढ़ा दिया जाता है। यह भार उसी अनुपात में प्रदान किया जाता है, जिस अनुपात में वर्ग की इकाइयां समग्र में होती हैं।
स्तरित निदर्शन के गुण (Merits of Stratified Sampling)
स्तरित निदर्शन विधि के निम्नांकित गुण हैं-
(i) इस विधि के द्वारा निदर्शन निकालने वाले को निदर्शन के चुनाव में अधिक नियन्त्रण प्राप्त हो जाता है। इसमें समग्र के प्रत्येक वर्ग की इकाइयों को निदर्शन में स्थान प्राप्त हो जाता है और किसी वर्ग के छूटने की सम्भावना नहीं रहती। दैव निदर्शन में यद्यपि प्रत्येक इकाई के चुने जाने की सम्भावना रहती है, किन्तु फिर भी कई बार, महत्त्वपूर्ण वर्ग छूट भी जाते हैं, जबकि स्तरित निदर्शन में ऐसा नहीं होता है।
(ii) यदि वर्गीकरण उचित प्रकार से किया गया है तो थोड़ी इकाइयों से ही प्रतिनिधि इकाइयों का चुनाव हो सकता है, जबकि दैव निदर्शन में प्रतिनिधित्व के लिए इकाइयों का पर्याप्त मात्रा में चुना जाना आवश्यक है।
(iii) इस विधि में इकाइयों का प्रतिस्थापन बहुत ही सरल है। यदि प्रारम्भिक निदर्शन में चुनी हुई किसी इकाई से सम्पर्क स्थापित नहीं किया जा सकता हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग में से दूसरी इकाई चुन ली जाती है। इस परिवर्तन से निदर्शन के प्रतिनिधित्वपूर्ण होने या न होने पर कोई असर नहीं पड़ता।
(iv) वर्गीकरण द्वारा निदर्शन का चुनाव इस प्रकार से किया जा सकता है कि निदर्शन की अधिकांश इकाइयां भौगोलिक दृष्टि से केन्द्रित हों। ऐसे अध्ययन में धन व समय की बचत हो सकती है। दैव निदर्शन में इकाइयां बिखरी होने के कारण इकाइयों के चुनाव में इस प्रकार का नियन्त्रण नहीं रहता।
स्तरित निदर्शन के दोष (Demerits of Stratified Sampling)
इस विधि के दोष निम्नांकित हैं-
(i) यदि वर्गों का निर्माण उचित प्रकार से नहीं किया गया है तो निदर्शन के चुनने में पक्षपात आने की सम्भावना रहती है। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ वर्गों में से अधिक इकाइयों का चुनाव कर लिया जाय और कुछ में से कम का। ऐसी स्थिति में निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह पाता है।
(ii) प्रतिनिधित्वपूर्ण होने के लिए निदर्शन का समानुपातिक होना आवश्यक है, किन्तु भिन्न-भिन्न वर्गों के आकार में यदि बहुत अधिक भिन्नता है तो उनमें समानुपात का गुण लाना कठिन होता है। साथ ही चुनाव करने वाले व्यक्ति की व्यक्तिगत रुचि का भी निदर्शन के चुनाव पर प्रभाव पड़ता है।
(iii) यदि वर्गों से इकाइयों का चुनाव असमानुपातिक आधार पर किया गया है तो बाद में भार का प्रयोग करना पड़ता है। भार प्रदान करते समय व्यक्ति का पक्षपात भी आ सकता तथा अनुचित भार प्रदान करने पर इकाइयां प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाती हैं।
(iv) स्तरित निदर्शन में एक गुण रखने वाली इकाइयों का एक वर्ग बनाया जाता है, किन्तु किसी इकाई में एकाधिक गुण होने पर कठिनाई आती है कि उसे किस वर्ग में रखा जाय।
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