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निदर्शन की समस्याएं | Problems of Sampling in Hindi

निदर्शन की समस्याएं | Problems of Sampling in Hindi
निदर्शन की समस्याएं | Problems of Sampling in Hindi

निदर्शन की समस्याएं (Problems of Sampling)

निदर्शन के चयन में अनुसन्धानकर्ता को तीन प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है— (i) निदर्शन के आकार की समस्या, (ii) अभिनत निदर्शन की समस्या, तथा (iii) निदर्शन की विश्वसनीयता की समस्या। इन तीनों ही समस्याओं का उल्लेख निम्न हैं-

(I) निदर्शन के आकार की समस्या (Problem of the size of the Sampling) –

निदर्शन की सबसे बड़ी समस्या उसके उचित आकार की है। यदि निदर्शन बड़े आकार का है तो उसके अध्ययन में अधिक समय, धन और श्रम खर्च होगा और यदि निदर्शन बहुत छोटा है तो . उसके प्रतिनिधित्वपूर्ण एवं विश्वसनीय होने में सन्देह रहेगा। अतः निदर्शन का आकार समुचित प्रकार का होना चाहिए। सामान्यतः निदर्शन का आकार 3 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक होना चाहिए। निदर्शन के आकार को कई बातें प्रभावित करती हैं, वे निम्न प्रकार हैं-

(1) समग्र की प्रकृति- यदि समग्र की इकाइयां पर्याप्त सजातीय निदर्शन भी पर्याप्त, प्रतिनिधित्वपूर्ण एवं विश्वसनीय हो सकता है, किन्तु यदि समग्र में विषमताएं अधिक हैं तो निदर्शन बड़े आकार का होना चाहिए।

(2) वर्गों की संख्या– यदि समग्र में विभिन्न प्रकार के वर्गों में अधिक भिन्नताएं हों तो हमें प्रत्येक वर्ग में से निदर्शन का आकार बड़ा लेना होगा और यदि वर्गों में पर्याप्त समाता तो छाटा हो तो छोटा निदर्शन ही पर्याप्त होगा।

(3) अध्ययन की प्रकृति- यदि हमें गहन अध्ययन करना हो तो छोटा निदर्शन लेना होगा, लेकिन विस्तृत और सामान्य प्रकृति के अध्ययन के लिए बड़ा निदर्शन लिया जा सकता है।

(4) उपलब्ध साधन- यदि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में समय, धन, शक्ति और कार्यकर्ता हैं तो निदर्शन का आकार बड़ा लिया जा सकता है। यदि साधनों की कमी है तो निदर्शन का आकार छोटा लेना होगा।

(5) परिशुद्धता की मात्रा- सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि बड़ा निदर्शन अधिक परिशुद्ध और प्रतिनिधित्वपूर्ण होता है, किन्तु यदि सही तरीके से चुनाव किया जाता है तो छोटा निदर्शन भी विश्वसनीय एवं प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सकता है।

(6) अध्ययन प्रणाली – यदि हम प्रश्नावली द्वारा किसी क्षेत्र का अध्ययन करते हैं तो निदर्शन का आकार बड़ा भी हो सकता है, किन्तु इसके स्थान पर यदि हम अनुसूची, साक्षात्कार, अथवा वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करते हैं तो निदर्शन का आकार छोटा होना चाहिए क्योंकि इसमें समय, धन व श्रम अधिक खर्च होता है।

(7) निदर्शन के प्रकार- निदर्शन के प्रकार पर भी उसका आकार निर्भर करता है। दैव निदर्शन में निदर्शन का आकार बड़ा होना चाहिए, ताकि विभिन्न गुणों वाली अधिकाधिक इकाइयों का चुनाव हो सके, इसके विपरीत वर्गीय तथा उद्देश्यपूर्ण निदर्शन में छोटा आकार ही पर्याप्त होता है।

(8) इकाइयों का वितरण – यदि समग्र की इकाइयां विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में फैली हुई हैं तो समय, धन व श्रम की दृष्टि से छोटा निदर्शन उपयुक्त होगा और यदि समग्र भौगोलिक दृष्टि से छोटा है तो निदर्शन बड़ा लिया जा सकता है। वास्तव में निदर्शन के आकार के लिए कोई निश्चित नियम, प्रतिशत या कोई संख्या नहीं है। अनेक परिस्थितियां निदर्शन के आकार को प्रभावित करती हैं। इस सन्दर्भ में पार्टेन ने उचित ही लिखा है, “अनावश्यक खर्चे से बचने के लिए निदर्शन काफी छोटा और असहनीय अशुद्धि से बचने के लिए पर्याप्त बड़ा होना चाहिए।”

(II) अभिनत निदर्शन की समस्या (Problem of Biased Sample)-

एक श्रेष्ठ निदर्शन के लिए आवश्यक है कि वह प्रतिनिधित्वपूर्ण, निष्पक्ष और मिथ्या झुकाव से रहित हो, ऐसा न होने पर वह निदर्शन अभिनतिपूर्ण निदर्शन कहा जाता है। एक निदर्शन में अभिनति निम्नलिखित कारणों से आ सकती है-

(i) छोटा आकार- यदि निदर्शन का आकार छोटा है तो उसमें समग्र की कई महत्त्वपूर्ण इकाइयों के छूट जाने की सम्भावना रहती है, तब वह निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाता है।

(ii) सविचार निदर्शन- इस प्रकार के निदर्शन में अध्ययनकर्ता अपनी इच्छानुसार इकाइयों का चयन करता है। इसमें वह ऐसी ही इकाइयों का चुनाव कर सकता है जिनसे सम्पर्क करना सरल हो। वह असुविधाजनक और कठिनाई से मिलने वाली इकाइयों को छोड़ देता है। ऐसी स्थिति में निदर्शन अभिनतिपूर्ण होता है।

(iii) दोषपूर्ण वर्गीकरण— यदि वर्गीय निदर्शन में ऐसे वर्गों का चुनाव कर लिया जाता है जो अस्पष्ट, असमान और अनुपयुक्त हों तब भी अभिनति आ सकती है। इसी तरह से यदि वर्ग में असमान संख्या वाली इकाइयों में से समान संख्या में इकाइयां चुन ली जाई हैं तब भी वह असन्तुलित और दोषपूर्ण हो जाता है।

(iv) अपूर्ण स्त्रोत सूची- यदि स्रोत सूची जिसमें समग्र की इकाइयां लिखी होती हैं, अपूर्ण, पुरानी, अनुपयुक्त अथवा अधूरी हैं, तब भी निदर्शन का चुनाव प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं होगा। यह स्थिति भी निदर्शन को अभिनतिपूर्ण बनाती है।

(v) इकाइयों का अनुचित त्याग या प्रतिस्थापन- कई बार निदर्शन में चुने गए व्यक्तियों से सम्पर्क करना कठिन होता है या वे सहयोग देने से इनकार करते हैं, तब उन्हें छोड़ दिया जाता है या उनके स्थान पर दूसरी इकाइयों को चुन लिया जाता है। दोनों ही स्थितियों में निदर्शन में पक्षपात की सम्भावना रहती है।

(vi) कार्यकर्ताओं द्वारा चुनाव- कई बार कार्यकर्ताओं को यह अनुमति दे दी जाती है कि वे निदर्शन की इकाइयों का चुनाव अपनी इच्छानुसार करें। ऐसी स्थिति में भी चयन में पक्षपात आ सकता है।

(vii) सुविधापूर्ण निदर्शन विधि- जब अध्ययनकर्ता को यह स्वतन्त्रता दे दी जाती है कि वह अपनी सुविधानुसार निदर्शन का चुनाव कर ले तब वह अन्य बातों की अपेक्षा अपनी सुविधा को अधिक महत्त्व देता है। ऐसी स्थिति में निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाता है।

(viii) त्रुटिपूर्ण दैव निदर्शन– दैव निदर्शन विधि द्वारा इकाइयों के चयन में भी पक्षपात की सम्भावना रहती है, उदाहरण के लिए, यदि चिटें या गोलियां जिनका उपयोग दैव निदर्शन के लिए किया जाता है, छोटी-बड़ी अथवा विभिन्न रंगों की हैं अथवा उन्हें पूरी तरह से हिलाया या मिलाया नहीं गया है तब भी बड़ी चिटों और ऊपर पड़ी चिटों के चुने जाने की सम्भावना अधिक रहेगी। इस स्थिति में भी निदर्शन पक्षपातपूर्ण हो जाता है।

(ix) अध्ययन विषय की प्रकृति- कई बार अध्ययन विषय जटिल, असमान, विविधतापूर्ण, परिवर्तनशील, एकदम नया अथवा बिखरा हुआ हो तो ऐसी स्थिति में निदर्शन के चुनाव में हम उन्हीं इकाइयों को चुनते हैं जो सुविधापूर्ण हों। यह स्थिति भी निदर्शन को पक्षपातपूर्ण बना देती है।

विभिन्न प्रकार से आने वाली अभिनति (Bias) को दूर करने के लिए निम्नांकित उपाय अपनाए जा सकते हैं— (1) अनुसन्धानकर्ता को अनुभव, कुशलता और योग्यता प्राप्त होनी चाहिए। (2) उसे अध्ययन समस्या का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। (3) निदर्शन विधि विषय एवं उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिए। (4) निदर्शन का आकार पर्याप्त होना चाहिए। (5) अध्ययन वैज्ञानिक और पक्षपातरहित होना चाहिए।

(III) निदर्शन की विश्वसनीयता की समस्या (Problem of Reliability of Sample)

निदर्शन का चुनाव कर लेने के बाद यह प्रश्न उठता है कि जिन इकाइयों का चुनाव किया गया है, वे विश्वसनीय हैं अथवा नहीं। विश्वसनीयता से तात्पर्य है कि वे समग्र का कितना प्रतिनिधित्व करती हैं और क्या उनके लक्षण समग्र के लक्षण माने जा सकते हैं तथा निदर्शन इकाइयों के अध्ययन के निष्कर्षों को किस सीमा तक समग्र पर लागू किया जा सकता है। एक विश्वसनीय निदर्शन में निम्नांकित गुण होने चाहिए— (i) उसका आकार पर्याप्त हो, (ii) उसका चुनाव उपयुक्त विधि से हो, (iii) समग्र का वर्ग विभाजन इकाइयों की समानता एवं सजातीयता के आधार पर किया जाय, (iv) त्रुटि माप योग्य हो ।

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