पूर्व प्राथमिक (नर्सरी) शिक्षा के पाठ्यक्रम, संगठन तथा नियोजन की संक्षिप्त विवेचना कीजिये। अथवा विभिन्न शिक्षा आयोगों के द्वारा नर्सरी विद्यालय के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
शिक्षा आयोग 1964-66 के नर्सरी स्कूल के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार :-
पूर्व प्राथमिक स्कूल के लिए पाठ्यक्रम की बात ही क्या की जा सकती है, पाठ्यक्रम को कार्यकलाप का क्रम हो समझा जाना ज्यादा उचित होगा। केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड द्वारा बच्चों की देखभाल सम्बन्धी समिति (1961-62) के इस सुझाव से शिक्षा आयोग 1964-66 सहमत है कि इस कार्यक्रम में नीचे लिखे कार्यकलाप शामिल किए जाएं।
1. खेल-कूद के कार्यकलाप
- उन्मुख खेल, जिनमें शैक्षणिक और रचनात्मक खिलौने, घरेलू खेल और बच्चों के साथ बाहर के कार्यकलाप शामिल हैं।
- पेशियों और अंगों के संचालन वाले शारीरिक कार्यकलाप ।
- शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का सम्पर्क, परिचय, अनुकरण और अनुभव कराने वाले खेल-कूद।
- संगठित खेल-कूद सामूहिक कार्यकलाप और खेल ।
- खेल के मैदान के कार्यकलाप, जिनमें खेल के मैदान के उपकरणों का उपयोग किया जाए।
2. प्राकृतिक पदार्थों और खासतौर पर बनाये गए उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए केन्द्रीय ज्ञान की शिक्षा।
3. सरल व्यायाम, नृत्य और लक्ष्ययुक्त खेलों को शामिल करते हुए शारिरिक प्रशिक्षण।
4. शारीरिक श्रम और खेल, जैसे बागवानी, सरल गृह कार्य और आसान सामुदायिक श्रम प्रयासों में भाग लेना।
5. स्कूल में अपना काम आप करना जिससे जहां तक हो सके नौकरों और वयस्क सहायकों की जरुरत न रहे।
6. उंगलियों की प्रवीणता और औजारों के उपयोग वाले हस्तकार्य और कार्यकलाप और ड्राइंग, चित्रकला, गीत, संगीद और नृत्य जैसे कार्यकलाप ।
7. भाषा-ज्ञान सहित अध्ययन के कार्यकलाप, वैयक्तिक स्वच्छता और स्वास्थ्य के नियम, पशु जगढ़ से सम्पर्क रखने वाले प्रारम्भिक प्राकृतिक अध्ययन, गिनती और गणित आदि ।
राष्ट्रीय शिक्षा 1986 नीति में पूर्व प्राथमिक शिक्षा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पूर्व प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप- ‘शिशु’ केन्द्रित है। इसमें खेलकूद और बच्चों की गतिविधियों की चर्चा की गई है। परम्परागत ढंग से पढ़ाए जाने वाले पुस्तकीय विषयों को समाप्त करने के लिए कहा गया है। शिक्षा नीति में दिए गए सुझाव निम्नलिखित है।
1. बच्चों से संबन्धित राष्ट्रीय नीति इस बात पर विशेष बल देती है कि बच्चों के विकास पर पर्याप्त विनियोग किया जाये, विशेषकर ऐसे वर्गों पर जिनके बच्चों की पहली पीढ़ी बड़ी संख्या में शिक्षा प्राप्त कर रही है।
2. शिशुओं की देखभाल और शिक्षा के केन्द्र पूरी तरह बाल-केन्द्रित होंगे। उनकी गतिविधियाँ खेल-कूद पर और बच्चों के व्यक्तित्व पर आधारित होंगी। इस अवस्था में औपचारिक रूप से पढ़ना-लिखना नहीं सिखाया जाएगा। इस कार्यक्रम में स्थानीय समुदाय का पूरा सहयोग लिया जाएगा।
3. शिशुओं की देखभाल और पूर्व प्राथमिक शिक्षा के कार्यक्रमों को पूरी तरह समेकित किया जायेगा ताकि इससे प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा मिले और मानव संसाधन विकास में सामान्य रूप से सहायता मिल सके। इसके साथ ही स्कूल स्वास्थ कार्यक्रमों को और सुदृढ़ किया जायेगा।
4. बच्चों के विकास के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य को और बच्चों को सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, नैतिक और भावनात्मक विकास को समेकित रूप में ही देखना होगा। इस दृष्टि से शिशुओं की देखभाल और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और इसे जहाँ भी संभव हो, समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम के साथ जोड़ा जाएगा। प्राथमिक शिक्षा के संदर्भ में शिशुओं की देखभाल के केन्द्र खोले जाएगें, जिससे अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने वाली लड़कियों को स्कूल जाने की सुविधा मिल सके। साथ ही निर्धन वर्गों की कार्यरत स्त्रियों को भी इन केन्द्रों से मदद मिल सकेगी।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का संगठन तथा नियोजन
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का संगठन तथा प्रवन्ध नगरपालिकाओं या सरकार द्वारा किया जा रहा है। इसकी व्यवस्था या तो ईसाई मिशनरियों द्वारा की जा रही है या कुछ ऐसे व्यक्तियों द्वारा जो इस साधन से धनोपार्जन करना चाहते हैं। भारत में विभिन्न प्रकार के पूर्व प्राथमिक विद्यालय पाये जाते हैं।
- किंडर गार्टन।
- नर्सरी विद्यालय।
- मान्टेसरी विद्यालय।
(1) किंडर गार्टन
किंडर गार्टन विद्यालय फ्रोबेल के शिक्षा सिद्धान्तों पर आधारित हैं। इन विद्यालयों के पाठ्यक्रम में बालकों को साक्षर तथा सदाचारी बनाने वाली क्रियाओं पर बल दिया जाता है।
(2) नर्सरी विद्यालय
नर्सरी विद्यालय श्रीमति मैकमिलन के शिक्षा सिद्धान्तों पर आधारित हैं तथा इनमें बालकों के शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास पर बल दिया जाता है।
(3) मान्टेसरी विद्यालय
मान्टेसरी विद्यालय डा० मेरिया मान्टेसरी द्वारा स्थापित किये गये। इन विद्यालयों में बालकों में उत्तम तथा स्वस्थ आदतों का विकास किया जाता है।
1964-66 में शिक्षा आयोग के अनुसार विद्यालय के पाठ्यक्रम में नैतिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों को आधार माना जाना चाहिये। प्रारम्भिक शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं जैसे नृत्य तथा संगीत, नाटक आदि को पूर्व प्राथमिक शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिये तथा ऐसे विषयों का चुनाव होना चाहिये जिनसे नेतृत्व की भावना तथा समूह भावना का विकास हो।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत पूर्व प्राथमिक स्तर पर विज्ञान की शिक्षा का भी पाठ्यक्रम में शामिल होना अत्यन्त आवश्यक है। विज्ञान के आधुनिक अनुसन्धान तथा प्रगति का परिचय खिलौनों तथा द्रव्य-श्रव्य सामग्री के आधार पर दिया जा सकता है।
शिक्षा में भ्रमण के द्वारा बालकों को प्रत्यक्ष शिक्षण कराया जा सकता है। देश-विदेश की घटनाओं से उन्हें अवगत कराया जा सकता है तथा देश की सांस्कृतिक सम्पत्ति ऐतिहासिक स्थान तथा बड़े-बड़े उद्योग आदि स्थानों का भ्रमण कराया जा सकता है।
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