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व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप | व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति | व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार

व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप
व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप

व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और स्वरूप

कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर एक समान दिखलाई पड़ते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। उसमें एक विशेष प्रकार की विशेषता होती है जो दूसरे में नहीं पायी जाती है। विलक्षणता प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशेषता है। वास्तव में व्यक्ति व्यक्ति के बीच शारीरिक, मानसिक और वैयक्तिक लक्षणों की अत्यधिक भिन्नता होती है। धरती में एक ही प्रकार के दिखलाई पड़ने वाले बीज बोये जाते हैं, परन्तु अंकुरित होने के बाद कोई भी दो पौधे एक समान नहीं होते। ठीक इसी प्रकार यदि हम विश्व समुदाय में थोड़ा अलग हटकर विचार करें तो दिखलाई पड़ता है कि एक ही परिवार में एक ही माता – पिता से उत्पन्न सन्तानों में भी पर्याप्त वैयक्तिक या व्यक्तिगत भेद विद्यमान होते हैं।

मनोवैज्ञानिकों ने दो प्रकार का अन्तर स्वीकार किया है- एक लक्षण के सम्बन्ध – में विभिन्न व्यक्तियों में भिन्नता जैसा कि ऊपर बतलाया गया है और दूसरा एक ही व्यक्ति में विभिन्न लक्षणों की भिन्नता। एक ही बालक की रूचि किसी विषय में अधिक होती है तो किसी में कम किसी मित्र को देखकर वह प्रसन्न होता है और किसी से चिढ़ता है, किसी खेल में वह रूचि पूर्वक लाभ लेता है और किसी के लिए कोई रूचि ही नहीं प्रकट करता तथा वह घर में जल्दी क्रुद्ध बहुत ही हो जाता है विद्यालय में कम क्रोध प्रकट करता है आदि। इसी प्रकार कोई परन्तु बालक शारीरिक दृष्टि से मजबूत होता है और कोई दुर्बल, कोई परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करता है तो कोई कम, कोई वाद – विवाद में खुल कर भाग लेता है तो कोई प्रसन्न चित्त रहने वाला। इस प्रकार व्यक्तियों के बीच भिन्नता और स्वयं व्यक्ति में भिन्नता सर्वत्र पायी जाती है। टायलर का

कथन ठीक ही है कि व्यक्तियों की अपूर्णता जीवन की एक अति मुख्य मूल विशेषता है। व्यक्तिगत विभिन्नता का मनोविज्ञान और शिक्षा में काफी महत्व है। इसी महत्व के कारण मनोविज्ञान में वैयक्तिक विभिन्नता का अध्ययन एक शाखा के रूप में किया जाता है। जिसे वैयक्तिक मनोविज्ञान कहते हैं। आधुनिक शिक्षा के स्वरूप में जो विविधता दिखलाई पड़ती है उसका एक मुख्य कारण यह भी है कि सभी छात्र एक दूसरे से भिन्न होते हैं। प्रो० ट्रैबू का कहना है कि किसी भी अध्यापक या. विद्यालय को यह आशा नहीं करना चाहिए कि वह इस प्रकार के अन्तर को कम कर सकता है या पूरी तरह मिटा सकता है।

लोकतान्त्रिक आदर्शों तथा आचरण वाले समाज में प्रत्येक व्यक्ति अन्य लोगों से अपनी इन्हीं विभिन्नताओं के कारण अपने विशेष बुद्धिवैभवों तथा रूचियों के अनुसार सभी लोगों के कल्याण, प्रगति तथा आनन्द में योग देता है। यदि हम सभी का अनुभव करने, सोचने की बात करने और काम का ढंग पूर्णतः एक जैसा हो जाय तो जीवन सम्भवतः बहुत नीरस हो जायेगा और बहुत से महत्वपूर्ण कार्य कभी हो ही नहीं पायेंगे। कलाकार, अध्यापक अपना अलग अलग छात्रों में जो भेद देखता है उनका वह स्वागत करता है और प्रत्येक छात्र को उसकी निहित क्षमताओं के विकास में सहायता देने का प्रयत्न करता है जिससे कि वह न केवल स्वयं एक आत्म सम्मान रखने वाला उत्पादनशील व्यक्ति बन सके बल्कि सभी के लिए अधिक समृद्ध तथा अधिक रोचक जीवन का विकास करने में अपना विशिष्ट योगदान दे सके।

व्यक्तिगत विभिन्नता अर्थ और प्रकृति

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “साइकॉलाजी आफ – ह्यूयूमन डिफरेन्सेज” मे टायलर ने लिखा है कि ‘एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से अन्तर एक सार्वभौमिक घटना जान पड़ती है।” अन्तर प्रकृति प्रदत्त है क्योंकि जन्म ही अन्तरों के साथ होता है और एक दूसरे के बीच व्यक्तित्व के विशेषज्ञों का अन्तर होना भी अनिवार्य है।

व्यक्तिगत भिन्नताओं से अभिप्राय एक व्यक्ति का दूसरे मूल्यों, अभिक्षमताओं, रूचियों, उपलब्धियों, स्वभाव, व्यक्तित्व के गुणों आदि में भिन्नता से है। आजकल वैयक्तिक भिन्नता के सम्बन्ध में जैसी लोगों की धारणा है उस सम्बन्ध में स्कीनर का कहना है कि आजकल हम व्यक्तिगत भिन्नताओं का सम्पूर्ण व्यक्तित्व के किसी भी मापे जाने योग्य पहलू को सम्मिलित करते हुए समझते हैं।

यह जानते हुए कि सभी व्यक्तियों का विकास एक समय ही प्रारम्भ नहीं होता न ही यह सभी के लिए एकरूपता से ही अग्रसर होता है, हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत विभिन्नता द्वारा व्यक्तियों के बीच पायी जाने वाली शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं तथा उपलब्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है और इसी के आधार पर व्यवहारों का निर्देशन अथवा प्रशिक्षण होता है।

व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और प्रकृति को अच्छी प्रकार से समझने के लिए उसकी कुछ मुख्य विशेषताओं की जान लेना भी आवश्यक है। परिवर्तनशीलता, सामान्यता, विकास तथा सीखने की गति में भिन्नता, विशेषकों का पारस्परिक सम्बन्ध तथा वंशानुक्रमीय और पर्यावरणीय तत्वों का प्रभाव आदि वैयक्तिक विभिन्नता की मुख्य विशेषताएं हैं। समूह और व्यक्ति के विशिष्ट लक्षणों में समुचित मात्रा में परिवर्तनशील पाई जाती है तथा साधारणतः परीक्षण के प्राप्तांक सामान्य प्राथमिकता वक्र का रूप धारण कर लेते हैं। अत्यधिक उच्च और अत्यधिक निम्न प्राप्तांक सापेक्षिक रूप से कम संख्या में उच्च और अत्यधिक निम्न प्राप्तांक सापेक्षिक रूप से कम संख्या में होते हैं। विकास और अभिवृद्धि की भिन्न गतियाँ परिवर्तनशीलता को ही व्यक्त करती हैं। इसके साथ ही एक विशेषक के क्षेत्र में उत्पन्न भिन्नता दूसरे तत्वों को भी प्रभावित करती हैं। एक परिवर्तन दूसरे परिवर्तनों के साथ क्रिया प्रतिक्रिया करता है। जो बालक घर में माता – पिता द्वारा अस्वीकृत होता है, विद्यालय में उसकी रूचि, उपलब्धि, व्यक्तित्व और बुद्धि आदि पर इस अस्वीकरण का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है। विशेषक के कुछ भेद वंशानुक्रम में एवं कुछ पर्यावरण में जन्म लेते हैं तथा कुछ दोनों से ही प्रभावित होते हैं।

व्यक्तिगत विभिन्नता का क्षेत्र और प्रकार

वैयक्तिक भिन्नता के क्षेत्र का निर्धारण मुख्य रूप से परिवर्तनशीलता और सामान्यता के आधार पर किया जाता हैं।

स्कीनर ने वैयक्तिक भिन्नता के क्षेत्र में निम्नलिखित तीन बातों को सम्मिलित किया है।

1. बुद्धि

2. शारीरिक तथा विकासात्मक भिन्नताएं

3. उपलब्धि

टायलर ने वैयक्तिक भिन्नता के क्षेत्र में थोड़ा और विस्तृत करते हुए इसके अन्तर्गत छह

मुख्य भिन्नताओं का उल्लेख किया है –

1. बुद्धि में वैयक्तिक भिन्नता

2. विद्यालय उपलब्धि में वैयक्तिक भिन्नता

3. विशेष अभिक्षमताओं और अभियोग्यताओं में वैयक्तिक भिन्नता

4. व्यक्तित्व में वैयक्तिक भिन्नता

5. संज्ञात्मक शैली में वैयक्तिक भिन्नता

दोनो विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्रों के आधार पर यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्रों का संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है

1. शारीरिक तथा विकासात्मक वैयक्तिक भिन्नता- शारीरिक तथा विकासात्मक वैयक्तिक भिन्नताएं अत्यधिक सरलतापूर्वक दिखलाई पड़ने वाली भिन्नताएं हैं। कक्षा पर दृष्टि पड़ते ही अध्यापक को सर्वप्रथम लम्बे, छोटे, पतले, मोटे, सुगठित और अविकसित छात्र दृष्टिगत होते हैं। उनके भार और शारीरिक रचना में अन्तर होता है। यदि कक्षा में सम्पूर्ण छात्रों की लम्बाई के आधार पर खड़ा किया जाय तो अधिकांश छात्र प्रतिशत मध्यमान के आस पास होगे और थोड़े से चरम सीमाओं पर होगें। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ कक्षाओं में लम्बें छात्रों की संख्या अधिक हो और कुछ कक्षाओं में नाटे या ठिगने छात्रों की परन्तु अधिकांश कक्षाओं में पहली स्थिति होगी।

सभी बालकों में विकास की गति भिन्न होने के कारण शारीरिक रचना में भी भिन्नता पायी जाती है। बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में शारीरिक बुद्धि एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विकासात्मक कार्य है।

2. बुद्धि में वैयक्तिक भिन्नता – शारीरिक भिन्नता के ही समान कक्षा के छात्रों की बुद्धि में भी भिन्नता पाई जाती है। कुछ छात्र प्रतिभाशाली होते हैं और कुछ उदासीन तथा मन्द बुद्धि होते हैं लेकिन सामान्य बुद्धि वाले छात्रों की संख्या अधिक होती है। छात्रों की बुद्धिलब्धि और बौद्धिक योग्यता का ज्ञान बुद्धि परीक्षणों के आधार पर प्राप्त करके बुद्धि में वैयक्तिक भिन्नता को समझा जा सकता है।

3. उपलब्धि में वैयक्तिक भिन्नता – उपलब्धि परीक्षणों की सहायता से विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों और सिखलाई जाने वाली कुशलताओं में छात्रों की सफलता या उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। परीक्षणों से प्राप्त उपलब्धि परिणाम स्वरूप न होकर भिन्नता वाले होते हैं क्योकि छात्रों की बुद्धि समान नहीं होती है। लगभग समान बुद्धि के छात्र उपलब्धि में लगभग समान होते हैं। यहा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उपलब्धि परीक्षणों के प्राप्ताकों से बुद्धि परीक्षणों का उच्च सह सम्बन्ध होता है। सामान्यतः पठन और अंकगणित में उपलब्धि की विभिन्नता अधिक देखी जाती है। किसी छात्र की उपलब्धि किसी विषय में अच्छी होती है, तो किसी छात्र की उपलब्धि किसी विषय में अच्छी होती है तो किसी छात्र को किसी अन्य विषय मे। सभी विषय में एक समान उपलब्धि प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या विद्यालय में कम होती है। प्रत्येक विषय में एक ही छात्र की उपलब्धि में अन्तर होता है।

4. व्यक्तित्व में वैयक्तिक भिन्नता – सिद्धान्त और व्यवहार दोनों ही रूपों में वैयक्तिक भिन्नता काफी महत्वपूर्ण है। विद्वान जहाँ व्यक्तित्व की परिभाषा के सम्बन्ध में एकमत नहीं है। वहाँ उनमें व्यक्तित्व के विशेषकों के सम्बन्ध में भी मतैक्य नहीं हैं। व्यक्तिव के गुणों या विशेषकों को ज्ञान करने के लिए अनेक प्रविधियां प्रयुक्त की जाती हैं जिनमें निर्धारण मापनी प्रश्नावली और प्रक्षेपी प्रविधि तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षण मुख्य हैं। इन प्रविधियों द्वारा व्यक्तित्व के लक्षणों और गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है जो प्रत्येक व्यक्ति में असमान रूप से वितरित होते हैं। प्रायः देखने में आता है कि कोई व्यक्ति साहसी और चिन्तामुक्त है तो दूसरा उत्साहवर्धन और सतर्क है, कोई मैत्रीपूर्ण, दूसरा अशिष्ट है, कोई सामाजिक है तो कोई एकान्तप्रिय, कोई शान्त और सामाजिक तो अन्य उद्धिग्न और एकान्तप्रिय हैं, तो कोई भावुक और कोमल हृदय है तो दूसरा भावनाशून्य और कठोर हृदय है इत्यादि।

लड़के और लड़कियों के गुणों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। बाल्यावस्था, किशोरावस्था और प्रौढ़ावस्था में पाये जाने वाले गुणों में भी अन्तर होता है क्योंकि कुछ निश्चित गुण अवस्था विशेष में पाये जाते हैं।

व्यक्ति में जो भेद गुणों में दिखलाई पड़ता है वही अन्तर व्यक्तित्व के प्रकार में भी होता है। कोई अन्तर्मुखी है तो कोई बर्हिमुखी, कोई धार्मिक है तो कोई राजनीतिक, कोई सैद्धान्तिक है तो कोई कथात्मक तथा कोई शक्तिहीन है तो कोई खिलाड़ी। अध्यापक के लिए विद्यालय में बालकों की व्यक्तित्व सम्बन्धी भिन्नताओं का काफी महत्व होता है।

5. विशेष अभिक्षमताओं और अभियोग्यताओं में वैयक्तिक भिन्नता – कक्षा के छात्र न केवल सामान्य बुद्धि में ही एक दूसरे से भिन्नता रखते हैं बल्कि विशेष अभिक्षमताओं और अभियोग्यताओं में भी उनमें काफी भिन्नता होती है। विशेष अभिक्षमता से बालक की उस शक्ति की ओर संकेत होता है जिनके द्वारा वह किसी व्यवसाय या विद्यालय के किसी विशिष्ट विषय में विशेष सफलता अर्जित कर सकता है। बुद्धि के वितरण में अन्तर होने के कारण अभिक्षमताओं में पर्याप्त मात्रा में वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है। इस प्रकार का अन्तर अभियोग्यताओं में भी देखा जाता है। सभी व्यक्तियों में विशिष्ट अभियोग्यताएं नहीं पायी जाती हैं और जिनमें ये होती हैं, उनमें इनकी मात्रा में भिन्नता अवश्य होती है।

6. विशेष अभिक्षमताओं और अभियोग्यताओं में वैयक्तिक भिन्नता – कक्षा के छात्र न केवल सामान्य वृद्धि में ही एक दूसरे से भिन्नता रखते हैं बल्कि अभिक्षमताओं और अभियोग्यताओं में भी उनमें काफी भिन्नता होती है, विशेष अभिक्षमता से बालक का उस शक्ति की ओर संकेत होता है जिसके द्वारा वह किसी व्यवसाय या विद्यालय के किसी विशिष्ट विषय में विशेष सफलता अर्जित कर सकता है। बुद्धि के वितरण में अन्तर होने के कारण अभिक्षमताओं में पर्याप्त मात्रा में वैयक्तिक में अन्तर होने के कारण अभिक्षमताओं में पर्याप्त मात्रा में वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है। इसी प्रकार का अन्तर अभियोग्यताओं में भी देखा जाता है। सभी व्यक्तियों में विशिष्ट अभियोग्यतायें नहीं पायी जाती हैं। जिनमें ये होती है उनमें इनकी मात्रा में भिन्नता अवश्य होती है में है।

इन वर्णित भिन्नताओं के अतिरिक्त जिन अन्य वैयक्तिक भिन्नताओं को वैयक्तिक भिन्नता के क्षेत्र में सम्मिलित करते हैं, वे हैं- रूचियों में वैयक्तिक भिन्नता, अभिवृत्ति और अभिक्षमता में वैयक्तिक भिन्नता, स्वभाव में वैयक्तिक भिन्नता, संवेगों में वैयक्तिक भिन्नता, चरित्र में वैयक्तिक भिन्नता सामाजिकता में वैयक्तिक भिन्नता, गतिवाही योग्यता में वैयक्तिक भिन्नता, सीखने में वैयक्तिक भिन्नता और दुर्बलताओं में वैयक्तिक भिन्नता।

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