पर्यावरण शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा
शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्ति और समाज दोनों के कल्याण से सम्बन्धित है। एक शिक्षित व्यक्ति खुद को और अपने पर्यावरण को भली-भाँति समझता है। पर्यावरणीय शिक्षा को निम्न परिभाषाओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
“पर्यावरण शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मनुष्य तथा उसके पर्यावरण (सांस्कृतिक तथा भौतिक-जैविक) के पारस्परिक सम्बन्ध तथा निर्भरता को समझने का प्रयास किया जाता है और उसको स्पष्ट करने हेतु कौशल, अभिवृत्ति एवं मूल्यों का विकास किया जाता है और यह निर्णय लिया जाता है कि क्या किया जाए? जिससे वातावरण की समस्याओं का समाधान किया जा सके और पर्यावरण में ” गुणवत्ता लाई जा सके।”
डॉ. निशा महाराणा— “पर्यावरण शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य खुद के अस्तित्व को कायम रखने में पर्यावरण की महत्ता को समझे और खुद में ऐसे कौशल, अभिवृत्तियों और मूल्यों का विकास करें जिससे पर्यावरण के घटकों का विघटन न हो, पर्यावरण संतुलित रहे ताकि हमारे साथ हमारी भावी पीढ़ी को भी विरासत के रूप में एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण में जीने का में मौका मिले।”
यूनेस्को जम्मी में सेमीनार के अनुसार, “पर्यावरण शिक्षा एक ढंग है जिससे पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को प्राप्त किया जाये। विज्ञान तथा अध्ययन क्षेत्र की पृथक् शाखा नहीं है अपितु जीवनपर्यन्त चलने वाली शिक्षा की एकीकृत प्रक्रिया है।”
मिश्र के अनुसार, “पर्यावरण शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की पर्यावरण के प्रति जागरूकता, ज्ञान, कौशलों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों को विकसित किया जाता है, जिससे पर्यावरण का सुधार किया जा सके।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के माध्यम से कहा जा सकता है कि पर्यावरण शिक्षा की निम्न विशेषताएँ होती हैं-
(i) पर्यावरणीय शिक्षा एक प्रक्रिया है जो हम मनुष्यों को पर्यावरण के जैविक तथा अजैविक घटकों के पारस्परिक सम्बन्धों का बोध कराता है।
(ii) इसके माध्यम से हम मनुष्यों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता, ज्ञान, कौशल, अभिवृत्तियों एवं मूल्यों का विकास किया जाता है ताकि पर्यावरण की महत्ता को समझकर इसके घटकों को विघटन से बचाया जा सके।
(iii) पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पर्यावरण के बारे में जानकारी दी जाती है ताकि वास्तविक जीवन में पर्यावरण के विभिन्न प्रकारों जैसे—भौतिक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण एवं मनोवैज्ञानिक पर्यावरण इत्यादि का महत्त्व समझ हम इनकी गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहें।
(iv) पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से बालक को प्राकृतिक पर्यावरण की समस्याओं को समझने के लायक बनाया जाता है ताकि वो उस समस्या का समाधान कर सके।
(v) पर्यावरण शिक्षा बालक में कौशल एवं रचनात्मकता का विकास करती है जिससे वो अपने जीवन का संतुलित विकास कर सके।
(vi) पर्यावरण शिक्षा समस्या केन्द्रित, अंतःअनुशासनिक एवं बहुआयामी, मूल्य तथा समुदाय केन्द्रित एवं भविष्य की ओर उन्मुख होती है।
(vii) इसके माध्यम के पर्यावरण की मुख्य समस्याओं, उसके कारण एवं प्रभाव के बारे में जनसामान्य में जागरूकता फैलायी जाती है।
(viii) शिक्षा के विभिन्न आयामों, विधियों एवं प्रविधियों का उपयोग कर समस्या के वास्तविक कारणों तथा प्रभाव को जाँचा और परखा जाता है तथा औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा द्वारा समस्याओं का समाधान किया जाता है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता में वृद्धि हो और हम मनुष्य एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकें।
पर्यावरण शिक्षा जनसामान्य को दी जाने वाली वो शिक्षा है जिसके माध्यम से हरेक व्यक्ति’ अपनी उन गतिविधियों को समझ सके जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं जिससे वे अपनी उन गतिविधियों को नियंत्रित कर सके और पर्यावरण के विभिन्न घटकों को विघटन से बचा सके। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि पर्यावरण शिक्षा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें इसके संरक्षण, रख रखाव तथा सुधार के बारे में सोचने, समझने और अपनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए प्रेरित करती है।
पर्यावरण के अर्थ और परिभाषा से पता चलता है कि पर्यावरण एक गतिविधि संकल्पना है जो स्थान एवं समय और व्यक्ति के अनुसार बदलता रहता है। पर्यावरण की तरह पर्यावरणीय शिक्षा भी एक गतिशील संकल्पना है क्योंकि समय एवं स्थान के अनुसार प्रत्येक पर्यावरण की विशेषताएँ बदल जाती हैं। शिकारी युग, कृषि युग एवं वर्तमान औद्योगिक युग के पर्यावरण की तुलना अगर हम करें तो पता चलता है कि आवश्यकताओं और उसकी पूर्ति के अनुसार हमारी सोच बदलती है और अपनी सोच के अनुसार हम पर्यावरण में संशोधन करते हैं। अतः पर्यावरणीय शिक्षा एवं उसकी प्रकृति को एक निश्चित सीमा में बाँधना मुश्किल है। चूँकि पर्यावरणीय शिक्षा में प्राकृतिक एवं मनुष्य निर्मित सभी प्रकार के पर्यावरण का समावेश किया जाता है जो कि अंतःअनुशासनिक प्रकृति को दर्शाता है। पर्यावरणीय शिक्षा केवल कला या विज्ञान नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत सभी विषय जैसे जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, तकनीकी, दर्शनशास्त्र एवं सौंदर्यशास्त्र इत्यादि शाखाओं को भी सम्मिलित किया जाता है जो इसके बहुआयामी प्रकृति को भी दर्शाता है।
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