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नाइट्रोजन चक्र का वर्णन | Nitrogen cycle in Hindi

नाइट्रोजन चक्र का वर्णन | Nitrogen cycle in Hindi
नाइट्रोजन चक्र का वर्णन | Nitrogen cycle in Hindi

नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen cycle in Hindi)

नाइट्रोजन पौधों व जन्तुओं दोनों के लिए ही एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है। इसका उपयोग ऐमीनो अम्लों, प्रोटीन, एन्जाइम, नाइट्रोजनी क्षारों, हाइड्रोजन ग्राही (NAD, NADP, FAD) न्यूक्लीक अम्लों, ATP प्रकाश-संश्लेषी वर्णकों, साइटोक्रोम, फाइटोक्रोम, विटामिन, वृद्धि हॉर्मोन व एल्केलॉएड आदि के निर्माण में होता है।

पौधे नाइट्रोजन को सामान्यतः मृदा से ही नाइट्रेट के रूप में अपनी जड़ों द्वारा अवशोषित करते निर्माण होता है। पौधों की पत्तियों में नाइट्रोजन का प्रयोग प्रकाश-संश्लेषी वर्णकों (क्लोरोफिल) के हैं। इसे अमोनिया से अपचयित किया जाता है तथा इसके बाद जीवद्रव्य में प्रोटीन व एन्जाइम का निर्माण में भी होता है। नाइट्रोजन की कमी से पुरानी पत्तियों में हरिमहीनता, शीघ्र गिरना, अवरोधनी वृद्धि, पुष्पन में विलम्ब तथा जल्दी मृत्यु भी हो सकती है।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण

वायुमण्डल नाइट्रोजन का सबसे बड़ा लगभग (78%) स्रोत है। सामान्यतः पौधे वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करते हैं। इस नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की क्षमता केवल कुछ ही नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणुओं व नीले हरे शैवालों में होती हैं, जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अपने जीवद्रव्य में कार्बनिक नाइट्रोजन में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रमुख नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु निम्नलिखित हैं-

(a) क्लॉस्ट्रिडियम- अवायवीय, मुक्तजीवी व मृदोत्पन्न ।

(b) एजोटोबैक्टर- वायवीय, मुक्तजीवी, मृतोपजीवी व मृदोत्पन्न ।

(c) राइजोबियम- सहजीवी, मृतोपजीवी व मृदोत्पन्न।

(d) क्लेबसिएला- सहजीवी, मृतोपजीवी व वायोत्पन्न ।

(e) क्लोरोबियम- अवायवीय, आत्मपोषी व मुक्तजीवी।

(f) रोडोस्पाइरिलम- अवायवीय, आत्मपोषी व मुक्तजीवी।

नाइट्रोजन स्थिरिकारक नीले-हरे शैवाल निम्नलिखित हैं (i) नोस्टॉक, (ii) ऐनाबीना, (iii) ऑलोसिरा, (iii) ग्लीयोट्राइकिया, (iv) कैलोथ्रिक्स, (v) रिवुलेरिया।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण एक जटिल जैविक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को सर्वप्रथम अमोनिया तथा इसके बाद ऐमीनो अम्लों में परिवर्तित किया जाता है, जो कि प्रोटीन निर्माण के आधारभूत पदार्थ हैं। प्रोटीन, जीवद्रव्य में बहुत से रूपों (एन्जाइम्स, साइटोक्रोम, क्रोमैटिन पदार्थ, ” राइबोसोम व कला तन्त्र) में सम्मिलित होती है। कोशा की मृत्यु के पश्चात् प्रोटीन का सूक्ष्मजीवों द्वारा अमोनिया में अपघटन कर दिया जाता है, जो नाइट्रीकारक जीवाणुओं द्वारा नाइट्रेट व नाइट्राइट में ऑक्सीकृत हो जाती है-

नाइट्रीकरण

अमोनिया का नाइट्राइट (2NO₂ ) व इसके पाश्चात् नाइट्रेट (2NO₂ ) में ऑक्सीकरण, नाइट्रीकरण कहलाता है। यह प्रक्रिया दो विशिष्ट प्रकार के रसायन-संश्लेषी जीवाणुओं द्वारा दो चरणों में सम्पन्न होती है-

प्रथम चरण में नाइट्रोसोमोनास- नाइट्रोसोकोकस नाइट्रोसोस्पाइरा व नाइट्रोसोसिस्ट्स (सभी नाइट्रोसोमोनास समूह के जीवाणु) अमोनिया को नाइट्राइट में बदलते हैं।

2NH, + 3O₂ → 2HNC₂O+2H₂O+ ऊर्जा (40 किलो कैलोरी)

द्वितीय चरण में नाइट्रोबैक्टर समूह के जीवाणु जैसे, स्ट्रेप्टोमाइसीज, नॉकार्डिया आदि नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदलते हैं।

2HNO3 +O₂ → 2HNO3O+ ऊर्जा (20 किलो कैलोरी) अमोनीकरण-मृदा में उपस्थित पौधे व जन्तुओं के मृत कार्बनिक पदार्थों में उपस्थित प्रोटीन

पदार्थों का बहुत-से जीवाणुओं, जैसे क्लॉस्ट्रिडिया व एक्टिनोमाइसिटीज द्वारा अपघटन के फलस्वरूप ऐमीनो अम्लों का निर्माण होता है तथा अन्ततः ऑक्सीकारी विनाइट्रीकरण द्वारा अमोनिया निर्मित होती है। यदि प्रोटीन अवायवीय वातावरण में अपघटित (सड़न) होती हैं तो ऐमाइड बनते हैं, जिसके

ऑक्सीकरण से अमोनिया निर्मित होती है। मुक्त अमोनिया विषैली होती है और इसका मृदा में एकत्रित होना हानिकारक होता है। अतः इसे नाइट्रीकरण द्वारा नाइट्रेट (NO3) में परिवर्तित कर दिया जाता है।

विनाइट्रीकरण

थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स व स्यूडोमोनास डिनाइट्रीफिकेन्स (कभी-कभी एक्रोमोबैक्टर व क्लॉस्ट्रियम भी) सभी प्रकार की (कार्बनिक या अकार्बनिक) बद्ध-नाइट्रोजन को पुनः चक्रीकरण के लिये गैसीय अवस्था में मुक्त करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार ये भूमि की उर्वरा शक्ति को कम करते हैं, परन्तु नाइट्रोजन चक्रीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विनाइट्रीकरण द्वारा भूमि से नाइट्रोजन का ह्रास मौसमी बाढ़ अथवा अधिक सिंचाई के कारण भी होता है।

पौधे तथा जन्तुओं की अनुपयोगित प्रोटीन, इनकी मृत्यु के पश्चात् वायवीय व अवायवीय जीवाणु द्वारा अमोनिया में अपघटित कर दी जाती है, यह अमोनिया नाइट्रीकारी जीवाणुओं द्वारा पहले नाइट्राइट (NO₂) व इसके बाद नाइट्रेट (NO3 ) में परिवर्तित कर दी जाती है, जो पौधों के उपयोग हेतु पुनः कच्चे माल के रूप में उपलब्ध हो जाती है। यदि मृदा में नाइट्रेट अथवा अमोनिया की अधिकता हो जाती है तो विनाइट्रीकरण जीवाणु इन्हें पुनः चक्रीकरण हेतु नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते हैं। जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण भूमि की उर्वरता बढ़ाने का एक अतिरिक्त स्रोत है।

यदा-कदा मानव भी, भूमि की सतह पर मृत कार्बनिक पदार्थों को जलाकर अथवा मृदा की उर्वरता बढ़ाने व अधिक उपज के लिए नाइट्रोजनी उर्वरक मिलाकर, प्राकृतिक नाइट्रोजन चक्र में हस्तक्षेप करता है।

पेयजल में नाइट्रेट की अधिक मात्रा से बच्चों में “ब्लू बेबी सिन्ड्रोम” या ‘मिथैनोग्लोबोनिमिया’ नामक रोग हो जाता है।

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