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अभिभावक शिक्षक सहयोग की आवश्यकता एंव सम्पर्क स्थापित करने के उपाय

अभिभावक शिक्षक सहयोग की आवश्यकता एंव सम्पर्क स्थापित करने के उपाय
अभिभावक शिक्षक सहयोग की आवश्यकता एंव सम्पर्क स्थापित करने के उपाय

अभिभावक शिक्षक सहयोग की संक्षिप्त विवेचना कीजिये। इसकी आवश्यकता को स्पष्ट कीजिये। अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित करने के उपायों का वर्णन कीजिये।

अभिभावक शिक्षक सहयोग (Parents-Teachers Cooperation)

बालक की समुचित शिक्षा के लिए तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक और संरक्षक में सम्पर्क हो। छात्र के व्यक्तित्व का निर्माण ‘घर’ तथा विद्यालय दोनों स्थानों पर होता है। दोनों का एक ही लक्ष्य है। अतः दोनों का सहयोग आवश्यक है।

अध्यापक के सम्पर्क में बच्चे केवल पाँच-छ: घन्टे रहते हैं और वह भी वर्ष में पाँच-छ: महीने ही बच्चों का शेष समय घर पर ही व्यतीत होता है। अतः आवश्यक है कि शिक्षालय के जीवन और घर के जीवन को एक सम्मिलित इकाई के रूप में परिणित किया जाए। कोई भी विद्यालय उस समय तक उन्नति के मार्ग पर अपसर नहीं हो सकता तब तक छात्रों के संरक्षक विद्यालय के कार्यों में रुचि न रखें और छात्रों के विकास के लिए प्रयत्न न कर सकें। गृह-विद्यालय सहयोग माता-पिता और शिक्षकों की दृष्टि से अभिभावक शिक्षक में सहयोग की आवश्यकता को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

अभिभावक शिक्षक सहयोग की आवश्यकता

1. बच्चे को भली-भाँति समझने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक उसके सम्बन्ध में उसके अभिभावक से पूछताछ करे।

2. अध्यापक चाहता है कि बच्चा प्रतिदिन ठीक समय पर विद्यालय आये। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह अभिभावकों का सहयोग चाहता है।

3. अध्यापक चाहता है कि बच्चे के अभिभावक उसे समय पर पुस्तकें आदि ले दें।

4. अध्यापक चाहते हैं कि अभिभावक उनको इस बात में सहायता दें कि बच्चा विद्यालय के नियमों के कार्य करें।

5. विद्यालय के लिए दान आदि की सहायता की आवश्यकता कई बार पड़ती है, अतः शिक्षक अभिभावकों का सहयोग चाहते हैं।

6. घर में अभिभावक पढ़ाई का उचित वातावरण रखें।

7. अभिभावक बालक के शारीरिक और मानसिक विकास पर समुचित ध्यान दें।

8. अभिभावक घर का वातावरण शुद्ध बनाए रखें।

अभिभावकों की दृष्टि से शिक्षकों के सहयोग की आवश्यकता

  1. वे समय-समय पर अपने बच्चे की प्रगति के बारे में जानना चाहते हैं।
  2. वे चाहते हैं कि समस्या उत्पन्न होने से पहले ही उन्हें सूचना दी जाए जिनसे वे सुधार के उपाय सोच सकें।
  3. वे चाहते हैं कि ध्यानपूर्वक तथा पर्याप्त मात्रा में उनके बालकों को गृहकार्य दिया जाए।
  4. वे चाहते हैं कि विद्यालय उनके बच्चों की सर्वांग उन्नति के लिए कार्य करें।

विद्यालय के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिये आवश्यक तत्व

अभिभावक एवं विद्यालय के मध्य अच्छे सम्बन्धों का निर्माण करने के लिये निम्नलिखित तत्व होना आवश्यक है-

1. अभिभावक सहभागिता- आज के युग में माता-पिता अपने बालकों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। माता-पिता अपने बालकों की शिक्षा के बारे में चिन्तित रहते हैं। माता-पिता बालक की शिक्षा में जितना अधिक सक्रिय भूमिका निभायेंगे, विद्यालय व परिवार के मध्य अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो सकेंगे।

2. अभिभावक व शिक्षक का साथ कार्य करना- अभिभावक व अध्यापकों को एक साथ कार्य करना चाहिए। प्रायः अभिभावकों को विद्यालय में की जाने वाली क्रियाओं के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसी स्थिति में सदैव अभिभावकों के मध्य विद्यालयों की गतिविधियों को लेकर असन्तोष बना रहता है। ऐसी स्थिति में विद्यालय में होने वाली क्रियाओं में अभिभावकों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। विद्यालय व घर किसी एक योजना पर एक साथ कार्य करें तो विद्यालय व परिवार के मध्य संतोषजनक सम्बन्ध विकसित होंगे।

3. अभिभावक शिक्षक सम्प्रेषण- विद्यालय में बालकों की उपलब्धि अच्छी बनी रहे इसके लिये आवश्यक है कि है विद्यालय व परिवार में सम्प्रेषण बना रहे। विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में अभिभावकों की अधिक से अधिक सहभागिता हो। अभिभावक व अध्यापक के बीच लगातार सम्पर्क होना आवश्यक है। दोनों के मध्य प्रभावी सम्प्रेषण होते रहना चाहिए। यह सम्प्रेषण डायरी, दूरभाष, व्यक्तिगत मेल-मिलाप द्वारा विकसित किया जा सकता है।

4. आकस्मिक भ्रमण- अध्यापक को घर पर कभी-कभी भ्रमण करना चाहिए। उन्हें यह देखना चाहिए कि जब बालक विद्यालय में नहीं होता है तो वह घर में किस तरह अपना समय व्यतीत करता है। प्रायः अध्यापक बच्चों को स्कूल के लिये बुलाने या कुछ सूचना देने के लिये घर आते हैं। अध्यापकों के लिये आवश्यक है कि वह माता द्वारा दी जाने वाली जानकारियों को अपने पास नोट करें। यही जानकारियाँ विद्यालय में बालक कैसे व्यवहार करेगा की जानकारी देंगी जैसे-माँ ने कहा कि कल हम देर रात से सोये क्योंकि घर में मेहमान आ गये थे। यह वाक्य इस बात का संकेत देता है कि बालक विद्यालय में किस प्रकार का व्यवहार करेगा।

5. आयोजित सम्मेलन- आकस्मिक भ्रमण व व्यक्तिगत बात-चीत के द्वारा अभिभावक व अध्यापकों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। विद्यालय प्रशासन को चाहिए कि वह समय-समय पर गोष्ठी की योजना तैयार करे। गोष्ठी का एक लाभ यह भी है कि इसमें बालकों की विभिन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता है। अभिभावक अन्य व्यक्तियों के विचार भी ग्रहण कर सकते हैं।

6. निरीक्षण प्रपत्र- अभिभावकों को विद्यालय में भ्रमण के दौरान निरीक्षण प्रपत्र का प्रयोग करना चाहिए। यह प्रपत्र कांफ्रेन्स के समय में भी प्रयोग किये जा सकते हैं। निरीक्षण प्रपत्र के प्रयोग से अभिभावक यह जान सकते हैं कि अपने बच्चे की समान आयु के बच्चे क्या पसंद करते हैं? उनका बच्चा व अन्य बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करता है ? अध्यापिका बच्चों को कैसे निर्देशित करती हैं ?

सम्पर्क स्थापित करने के उपाय

अपने देश में अधिकांश जनसंख्या शिक्षा से अनभिज्ञ है, अतः विद्यालय के शिक्षकों पर ही यह उत्तरदायित्व आ जाता है कि वे जनता का दृष्टिकोण बदलें और उनकी उदासीन-प्रवृत्ति को रोकें। अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जा सकते हैं-

1. छात्र के प्रवेश के अवसर पर अभिभावक से भेंट- विद्यालय में जब छात्र भर्ती हो तो उस समय प्रधानाध्यापक को चाहिए कि वह इस बात पर बल दे कि अभिभावक छात्र की भर्ती के समय शिक्षालय में स्वयं आये। इस प्रकार का नियम बना देने से प्रधानाध्यापक को संरक्षक के सम्पर्क में आने का अवसर मिल जाता है। इस समय उसे संरक्षकों में अवश्य कहना चाहिए कि केवल बालक का नाम शिक्षालय में लिखा देने से ही उनका कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। अभी से ही उन्हें बालक की शिक्षा की ओर पूरा ध्यान देना होगा और उचित होगा, यदि वे समय-समय पर शिक्षकों से मिलते रहें और छात्र के बारे में पूछताछ करते रहें।

2. छात्र प्रगति-पत्र- संरक्षकों से सम्पर्क स्थापित करने में बच्चे का प्रगति-पत्र भी सहायक होता है। प्रत्येक छात्र का प्रगति-पत्र प्रतिमास उसके अभिभावक के पास भेजना चाहिए और उस पर संरक्षक के हस्ताक्षर होने चाहियें। प्रगति-पत्र द्वारा संरक्षक बच्चों की प्रगति के बारे में जान सकेंगे। इसी प्रगति पत्र पर संरक्षक को मिलने के लिए भी लिखा जा सकता है। इस प्रगति-पत्र में बच्चे के मानसिक, सामाजिक, शारीरिक तथा नैतिक विकास का विवरण भी होना चाहिए।

3. विद्यालय उत्सव– विद्यालय में समय-समय पर होने वाले उत्सवों पर बच्चों के संरक्षकों को आमन्त्रित किया जाना चाहिए।

4. विद्यालय पत्रिका- विद्यालय की अपनी पत्रिका होनी चाहिए। पत्रिका में विद्यालय में किए रहे कार्यों का चाहिए। उल्लेख होना चाहिए। इस पत्रिका द्वारा संरक्षकों का विद्यालय सम्बन्धी ज्ञान बढ़ेगा और वे विद्यालय के समीप आयेंगे।

5. समय-समय पर सूचना देना- जो बच्चे कक्षा में देर से आते हैं अथवा कक्षा में अनुपस्थित रहते हैं या विद्यालय का कार्य ठीक ढंग से नहीं करते हैं या विद्यालय के नियमों का भली-भाँति पालन नहीं करते हैं, उनके बारे में उनके अभिभावकों को अवश्य सूचना दी जाए। अभिभावकों से अनुरोध किया जाए कि वे विद्यालय की इस कार्य में सहायता करें।

6. अभिभावकों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- जब कभी अभिभावक शिक्षालय में आयें तो उनके साथ सहानुभूति तथा स्नेह का व्यवहार किया जाए। उनके साथ अत्यन्त नम्रता तथा उदारता का व्यवहार करना चाहिए।

7. अभिभावक अध्यापक परिषद्- प्रगतिशील विद्यालय में अभिभावक-अध्यापक परिषदें बनाई जाती हैं। परिषद् के सदस्य, विद्यालय के सभी अध्यापक और वहाँ के बच्चों के समस्त अभिभावक होते हैं। सदस्य बनने के लिए कोई शुल्क न हो तो अच्छा ही है। समय-समय पर परिषद् की बैठकें अवश्य होनी चाहियें। इन बैठकों में गृह कार्य, स्वास्थ्य कार्यक्रम आदि पर वार्तालाप किया जाना चाहिये।

इस अवसर पर शिक्षक विद्यालय की उन्नति से सम्बन्धित विचार अभिभावकों के समक्ष रखें। प्रधानाध्यापक विद्यालय द्वारा की गई प्रगति तथा आवश्यकताओं पर अपने विचार स्पष्ट करें।

यदि हो सके तो प्रत्येक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक तथा उस कक्षा को पढ़ाने वाले शिक्षकों के संघ स्थापित करके उनकी बैठक बुलाई जायें। ऐसी बैठकों में केवल सम्बन्धित सदस्यों की उपस्थिति होने से काम ठोस होगा।

8. सामाजिक केन्द्र- विद्यालय को सामाजिक केन्द्र बनाना चाहिये। उपयोगी विषयों पर विद्वानों के भाषण भी कराये जा सकते हैं। प्रौढ़ शिक्षा का आयोजन रात्रि-पाठशाला के रूप में किया जा सकता है। शिक्षालय के पुस्तकालय तथा वाचनालय भी जनता के प्रयोग के लिए खोले जा सकते हैं।

9. अभिभावक दिवस- वर्ष में एक दिन संरक्षक अथवा अभिभावक दिवस’ मनाया जाये जिसमें सभी छात्रों के संरक्षक उपस्थित हों।

10. प्रबन्ध समिति – शिक्षालय की प्रबन्ध समिति में एक या दो अभिभावक लिए जायें तो अच्छा होगा। इससे अभिभावक शिक्षालय में अधिक रुचि लेने लगेंगे।

11. शैक्षिक कान्फ्रेंस-कभी-कभी शिक्षा सम्बन्धी कान्फ्रेंस का आयोजन करना बहुत लाभदायक होता है। ऐसी सभाओं में अभिभावक, शिक्षक तथा शिक्षाशास्त्री भाग लेते हैं और शिक्षा सम्बन्धी विचार प्रकट करते हैं। भविष्य की योजनायें भी बनाई जाती हैं।

अभिभावक दिवस – विद्यालय और अभिभावकों के सहयोग के लिये आवश्यक है कि विद्यालय में अभिभावक दिवस का आयोजन किया जाए। इस के आयोजन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

  1. इस दिन की पूर्व सूचना बच्चों, अभिभावकों एवं अध्यापकों को होनी आवश्यक है।
  2. अभिभावकों को खेल-कूद दिखलायें जायें।
  3. अभिभावकों को बच्चों की कलाकृतियाँ तथा अन्य वस्तुयें दिखलाई जायें।
  4. विद्यालय की कठिनाइयां भी अभिभावकों के सामने रखी जानी चाहिये
  5. अभिभावकों को पारितोषक वितरण में सम्मिलित होने के लिये आमन्त्रित किया जाये।
  6. विद्यालय की सामर्थ्यानुसार अभिभावक शिक्षक कोष से जलपान की व्यवस्था की जाये।
  7. यह दिवस मनाने के लिए कई कमेटियों का गठन किया जाना चाहिये, ताकि विभिन्न पहलुओं अर्थात् पानी का प्रबन्ध, साइकिल आदि रखने का प्रबन्ध अभिभावकों को कक्ष आदि तक ले जाने आदि की व्यवस्था का उचित प्रबन्ध किया जा सके।
  8. सम्भव हो तो शैक्षिक चित्र का आयोजन किया जाये।
  9. इस अवसर पर विद्यालय पत्रिका प्रकाशित की जाये तथा विद्यालय की उपलब्धियाँ अभिभावकों के सम्मुख प्रस्तुत की जायें ।
  10. अभिभवकों के साथ उचित शिष्टाचार का बर्ताव किया जाये।
  11. अभिभावक शिक्षा दिवस पर विद्यालय की स्वच्छता पर भी विशेष बल दिया जाये ताकि अभिभावक विद्यालय के बारे में अच्छी धारणा बना सकें।

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