पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है- परि + आवरण, जहाँ परि का अर्थ है- चारों तरफ से और आवरण का अर्थ है, ढँका हुआ यानि पर्यावरण शब्द से तात्पर्य है चारों तरफ से घिरा हुआ। यानि पर्यावरण में वे सारी परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं जो सभी जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों तथा हम मनुष्यों के वृद्धि एवं विकास, रहन-सहन तथा कार्य करने के तरीके को प्रभावित करती हैं।
पर्यावरण को अंग्रेजी भाषा में ‘Environment’ कहा जाता है जिसकी उत्पत्ति फ्रेंच शब्द ‘Environer’ से हुई है जिसका अर्थ ‘Neighbourhood’ यानि पास-पड़ोस अर्थात् पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है हमारे पास-पड़ोस यानि हमारे आस-पास जो कुछ भी उपस्थित है सभी हमारे पर्यावरण के अंतर्गत आता है, जैसे—जल, वायु, मृदा, समस्त प्राकृतिक दशायें, पर्वत, मैदान, खेत-खलिहान, पेड़-पौधे, जीव जंतु, हमारा घर, मौहल्ला, गाँव, शहर, नगर, विद्यालय, महाविद्यालय, पुस्तकालय एवं कार्यस्थल इत्यादि जो हमें किसी-न-किसी रूप में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमारे जीवन एवं उनके विकास को प्रभावित करने वाली सारी परिस्थितियाँ पर्यावरण में शामिल हैं। हम सभी इस बात से पूरी तरह से वाकिफ हैं कि हम पर्यावरण में ही अपना सर्वांगीण विकास करते हैं यही नहीं बल्कि हम पर्यावरण के अभिन्न घटक भी हैं और हमारी प्रत्येक गतिविधि का असर पर्यावरण पर होता है। अतः हमारे संतुलित विकास के लिये पर्यावरण का स्वच्छ और संतुलित रहना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। हम सभी जानते हैं कि हमारे व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिये एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण का होना निहायत ही जरूरी है क्योंकि इसके अभाव में हम सुखी और स्वस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। एक स्वस्थ और संतुलित यानि एक अच्छे पर्यावरण की संकल्पना का अर्थ है-वे सारी परिस्थितियाँ जिनमें हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और हम स्वस्थ तन एवं स्वस्थ मन के साथ आनंदमय जीवन बिता सकें तथा अपनी भावी पीढ़ी के लिये भी एक ऐसा पर्यावरण छोड़कर जायें जिसमें वे भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजार सकें और ये क्रम चलता रहे।
पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ और संकल्पना को समझने के बाद आइये अब हम पर्यावरण विभिन्न परिभाषाओं के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
पर्यावरण की परिभाषाएँ
पर्यावरण में उन सभी कारकों को सम्मिलित किया जाता है जो हमारी जीवनशैली तथा कार्यशैली को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण की कुछ प्रमुख परिभाषायें इस प्रकार हैं-
बोरिंग के अनुसार, “एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यन्त तक प्रभावित करता है।”
अन्सटैसी के अनुसार, “व्यक्ति के वंशानुक्रम में अतिरिक्त वह सब कुछ पर्यावरण माना जाता है जो उसे प्रभावित करता है।”
आर. एम. मैकाइवर के अनुसार, “भू-पृष्ठ तथा उसकी समस्त प्राकृतिक दशायें, प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज, पेड़, जीव-जन्तु आदि तथा प्राकृतिक शक्तियाँ, जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, पर्यावरण के अंतर्गत आती हैं।”
सी. सी. पार्क के अनुसार, “मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है उसे पर्यावरण कहा जाता है।”
पर्यावरण की उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर हम कह सकते हैं कि इसकी निम्नलिखित विशेषतायें होती हैं—
(i) जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करने वाली सम्पूर्ण परिस्थितियाँ पर्यावरण में शामिल हैं।
(ii) पर्यावरण के अंतर्गत भौतिक एवं जैविक घटक यहाँ तक कि हम मनुष्य भी शामिल हैं।
(iii) हमारे जीवन तथा व्यवहार को प्रभावित करने वाली सारी शक्तियाँ जैसे- भौतिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, भावात्मक, आर्थिक, राजनैतिक इत्यादि को पर्यावरण का अंग माना जाता है।
(iv) वंशानुक्रम को छोड़कर सभी बाह्य परिस्थितियों को प्रभावित करने वाले कारक को पर्यावरण कहा जाता है।
(v) पर्यावरण के अंतर्गत हमारी व्यवस्था, प्रणाली, प्रबंधन, प्रत्येक कार्य इत्यादि सभी सम्मिलित हैं।
(vi) हमारे विकास एवं उत्थान, वनस्पतियों एवं सूक्ष्म जीव-जन्तुओं के वृद्धि एवं विकास से संबंधित सारी बाह्य शक्तियाँ पर्यावरण में शामिल हैं।
पर्यावरण की परिभाषा और विशेषताओं के बाद आइये अब हम पर्यावरण के स्वरूप के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
पर्यावरण का स्वरूप एवं विमायें
पर्यावरण के मुख्यतः दो तत्त्व होते हैं जिन्हें जैविक तथा भौतिक/अजैविक तत्त्व कहा जाता है। इन्हें जैविक तथा अजैविक घटक के नाम से भी जाना जाता है। तत्त्वों की इसी प्रकृति के आधार पर पर्यावरण का विभाजन दो घटकों में किया जाता है जो कि अग्रलिखित हैं-
1. अजैविक / भौतिक पर्यावरण
2. जीव/ जैविक पर्यावरण
पर्यावरण का उपर्युक्त वर्गीकरण पर्यावरण का स्वरूप भी कहलाता है। हम जानते हैं कि भौतिक तत्त्वों को मुख्यतः तीन वर्गों में उसकी अवस्था के आधार पर विभाजित किया जाता है।
(i) ठोस पदार्थ- इसमें स्थलमंडल को शामिल किया गया है। इसे आगे पहाड़-पठार एवं मैदानी पर्यावरण में विभाजित किया गया है।
(ii) तरल पदार्थ – इसमें जल मंडल को शामिल किया गया।
(iii) गैसीय पदार्थ- इसमें वायुमंडल को शामिल किया गया है।
जैविक तत्त्वों के आधार पर पर्यावरण को पुनः दो प्रकारों में विभाजित किया गया है
(i) वनस्पतियों का पर्यावरण एवं (ii) जीव-जन्तुओं एवं हम मनुष्यों का पर्यावरण।
पर्यावरण के स्वरूप और विमाओं की जानकारी के बाद आइये अब हम ये समझने का प्रयास करें कि पर्यावरण के भौतिक तत्त्वों, वनस्पतियों, सूक्ष्म जीवों एवं जीव-जंतुओं के साथ हम मनुष्यों के क्या सम्बन्ध हैं?
वनस्पति जगत्, सूक्ष्म जीव जगत् एवं जीव-जन्तुओं के साथ-साथ हम मनुष्यों को जीवन निर्वाह के लिये जिन अजैविक तत्त्वों की जरूरत होती है वे पर्यावरण के अजैविक तत्त्वों से प्राप्त होते हैं। हम मनुष्य जब इस प्रकार का लेन-देन करते हैं तो यह प्रक्रिया आर्थिक पर्यावरण का निर्माण करती है।
हम सभी जानते हैं कि सभी प्राणियों में हम मनुष्य ही सभ्य एवं सुसंस्कृत प्राणी हैं जिसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्था बहुत ही सुसंगठित एवं व्यवस्थित है। व्यवस्था एवं संगठन के इस क्रम में हमारे और पर्यावरण के बीच अंतःक्रिया होती है जिससे विभिन्न प्रकार के पदार्थों एवं ऊर्जा का संचालन होता रहता है। फलतः पर्यावरण में संतुलन बना रहता है। भौतिक पर्यावरण को जलवायु का पर्याय समझ जाता है जो व्यक्ति की कार्यक्षमताओं, आदतों, उसके रहन सहन इत्यादि को प्रभावित करती है। हम मनुष्य पर्यावरण के साथ किस प्रकार के अंतःक्रिया करें ताकि पर्यावरण संतुलित रहे और हमें किसी प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं से जूझना नहीं पड़े। इसकी जानकारी हमें पर्यावरण शिक्षा से प्राप्त होती है और यही पर्यावरण शिक्षा का क्षेत्र है।
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