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पर्यावरण के प्रकार | पर्यावरण के घटक

पर्यावरण के प्रकार
पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

पर्यावरण के प्रकार

पर्यावरण के प्रकार

1. प्राकृतिक पर्यावरण- प्राकृतिक पर्यावरण भी दो प्रकार के होते हैं-

(i) भौतिक पर्यावरण, एवं

(ii) जैविक पर्यावरण

प्रकृति के अमूर्त भौतिक एवं जैविक तत्त्व मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण करते हैं। इन्हें प्राथमिक, प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक पर्यावरण अपने आप प्रकृत होता है, इनके सृजन में हम मनुष्यों की कोई भूमिका नहीं होती है। न तो हम इनका निर्माण कर सकते हैं न ही इनका नियंत्रण। पर इधर विगत कुछ वर्षों से हमने प्राकृतिक पर्यावरण का जी भर नुकसान किया है परिणामस्वरूप हम विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय समस्याओं, जैसे—वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं प्राकृतिक आपदाओं से ग्रसित हो रहे हैं। इस संदर्भ में जरूरी है कि हम पर्यावरण से सम्बन्धित सभी पहलुओं एवं तथ्यों के बारे में गहराई से जानकारी प्राप्त करें ताकि प्राकृतिक पर्यावरण के अस्तित्व के साथ-साथ अपने अस्तित्व को भी सुरक्षित कर सकें।

2. मनुष्यकृत पर्यावरण – जब विज्ञान एवं तकनीकी सहायता से हम अपनी आवश्यकता एवं इच्छानुसार प्राकृतिक पर्यावरण को ढालते हैं तब इस प्रकार से बने पर्यावरण को मनुष्यकृत पर्यावरण कहते हैं, जैसे-पर्वत एवं जंगल को नष्ट कर सड़क, सुरंग, मकान, इमारत एवं पार्क का निर्माण करना नदी के मार्ग को प्रभावित कर नहर बनाना, रेल की पटरियाँ बिछाना, खेती करना, नवीन बस्तियाँ एवं नगर बसाना। खनन द्वारा खनिज संपदा प्राप्त करना, उनसे विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र एवं यंत्र इत्यादि बनाना। इस प्रकार से हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राकृतिक पर्यावरण में संशोधन कर एक नये पर्यावरण का निर्माण करते हैं जिसे मानवनिर्मित पर्यावरण या द्वितीयक पर्यावरण कहा जाता है।

पर्यावरण के विभिन्न प्रकार हैं किन्तु जीवन विस्तार के संदर्भ में कुर्ट लीविन ने पर्यावरण को मुख्यतः तीन प्रकार का बताया है जो हमारे व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

1. भौतिक पर्यावरण,

2. सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण,

3. मनोवैज्ञानिक पर्यावरण

1. भौतिक पर्यावरण- भौतिक पर्यावरण में जलवायु से सम्बन्धित कारक होते हैं। कुट लीविन ने जैविक तत्त्वों को भी इसी पर्यावरण में शामिल किया है। प्रत्येक व्यक्ति एक समय एवं एक स्थान पर उपर्युक्त तीनों पर्यावरण में रहता है तथा खुद के पर्यावरण में रहते हुए उससे समायोजन करते हुए अपना विकास करता है। हम सभी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य पर जलवायु का गहरा असर पड़ता है। हमारी शारीरिक रचना, कार्य क्षमता, रूप-रंग, हमारी कार्य करने की शैली इत्यादि जलवायु से प्रभावित होता है यही वजह है कि गर्म जलवायु में रहने वाले लोग काले तथा ठण्डी जलवायु में रहने वाले लोग गोरे होते हैं। ठण्डी जलवायु में रहने वाले लोग फुर्तीले तथा में गर्म जलवायु में रहने वाले लोग थोड़े आलसी प्रवृत्ति के होते हैं। भौगोलिक जलवायु वंशानुक्रम को भी प्रभावित करती है, इस बात से हम अंजान नहीं हैं। न सिर्फ मनुष्य बल्कि अन्य जीव-जंतु एवं वनस्पतियों पर भी जलवायु का असर होता है तभी उनमें विभिन्नतायें पाई जाती हैं।

2. सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण- इसके अंतर्गत कुर्ट लीविन ने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक परिस्थितियाँ इत्यादि को शामिल किया है, जिसमें प्रत्येक मनुष्य निवास करता है। हम इस बता से भली-भाँति परिचित हैं कि नैतिक, सांस्कृतिक, भावात्मक एवं सामाजिक शक्तियाँ, हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं। सामाजिक पर्यावरण की अगर हम बात करें, तो हम कह सकते हैं कि समाज मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—मुक्त समाज एवं नियंत्रित समाज मुक्त समाज में व्यक्ति के व्यक्तित्व का समग्र विकास होता है जबकि नियंत्रित समाज के पर्यावरण में व्यक्ति का समग्र विकास नहीं होता है। इस बात का ध्यान रखकर शिक्षक को अपनी कक्षा का पर्यावरण मुक्त रखना चाहिये ताकि बालक अपनी क्षमताओं के अनुरूप सीखने के लिए प्रेरित हो सके और व्यक्तित्व का समग्र विकास कर सके।

3. मनोवैज्ञानिक पर्यावरण- कर्ट लीविन ने बताया कि व्यक्तित्व के विकास में मनोवैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण एक विशिष्ट समय तथा स्थान पर एक समान होता है किन्तु मनोवैज्ञानिक पर्यावरण अलग-अलग होता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना खुद का मनोवैज्ञानिक, पर्यावरण होता है जिसमें वह रहता है जिसे जीवन विस्तार की संज्ञा दी गई है। प्रत्येक मनुष्य उसका खुद का मनोवैज्ञानिक पर्यावरण होता है जो उसकी कार्य प्रणाली तथा जीवन शैली को प्रभावित करता है। उसकी सफलतायें, असफलतायें एवं उसके जीवन से सम्बन्धित सारी बातें उसके मनोवैज्ञानिक पर्यावरण से प्रभावित होती हैं यही कारण है कि एक शिक्षक के पढ़ाये हुए प्रत्येक विद्यार्थी की उपलब्धि का स्तर अलग-अलग होता है। हम में से प्रत्येक व्यक्ति का अपना आकांक्षा स्तर होता है अपना लक्ष्य होता है जिसे प्राप्त करने का हम प्रयास करते हैं। लेकिन जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो हम पर्यावरण से समायोजन करने के लिये अपना लक्ष्य बदल लेते हैं और खुद को उस पर्यावरण से समायोजित करते हैं। पर्यावरण से समायोजन करना एक जटिल प्रक्रिया है जो हमारे विचार और व्यक्तित्व दोनों को प्रभावित करती है।

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि पर्यावरण प्रत्येक व्यक्ति के सभी प्रकार के विकास के लिये आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। अतः हमारे लिये जरूरी है कि हम पर्यावरण के प्रत्येक पहलू को जानें, समझें और उसका संरक्षण करें ताकि हमारा संरक्षण हो सके। पर्यावरणीय शिक्षा हमें इसी बात की शिक्षा देती है कि हम क्यों और कैसे अपने वातावरण को स्वस्थ संतुलित एवं टिकाऊ बनाये रखें ताकि हम और हमारी पीढ़ी अपने जीवन के प्रत्येक कार्यों को सुखपूर्वक संचालित कर सकें।

पर्यावरण के घटक

पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यह एक व्यापक और गतिशील संकल्पना है। आइये इसे संक्षिप्त रूप में समझने का प्रयास करें। सरल शब्दों में कहें कि पर्यावरण किसी वस्तु या जीव के आस-पड़ोस का क्षेत्र है तो ज्यादा बेहतर होगा। उदाहरण के लिए, हम कह सकते हैं कि किसी पौधे जीव या फिर हम मनुष्यों का पर्यावरण वे परिस्थितियाँ हैं जो हमारे वृद्धि और विकास में सहायक होती हैं। हर जगह चाहे गाँव हो, शहर हो, देश हो या फिर अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र हो सबकी पर्यावरणीय परिस्थितियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान में बदलती रहती हैं। कोई जगह धान की खेती के लिए उपयुक्त होती है तो कोई गेहूँ की खेती के लिए क्योंकि किसी स्थान या प्रदेश विशेष में पाये जाने वाले पेड़-पौधे और जीव-जन्तु उस स्थान या प्रदेश के भौतिक पर्यावरण पर निर्भर होते हैं।

पर्यावरण के मुख्यतः दो अंग या घटक हैं-

1. भौतिक/अजैविक घटक और

2. जैविक घटक।

भौतिक घटक में पर्यावरण के भौतिक तत्त्व, जैसे स्थल, जल और वायु सम्मिलित हैं तथा जैविक घटक में पेड़-पौधे और सभी छोटे-बड़े जीव-जन्तु सम्मिलित हैं। पर्यावरण के भौतिक घटक तथा जैविक घंटे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। भौतिक पर्यावरण के बदलने से जैविक पर्यावरण की संरचना में भी अंतर आ जाता है। हमारे लिए पर्यावरण का महत्त्व सभी वस्तुओं से ज्यादा है क्योंकि हम पर्यावरण में रहते हैं। हमारी पृथ्वी यानि हमारा स्थलमण्डल ही हमारा निवास है जो कि पर्यावरण के अजैविक तत्त्व के अन्तर्गत आते हैं। वो भी हमारे पर्यावरण का ही हिस्सा है और हम मनुष्य जो कि जैविक तत्त्व के अन्तर्गत आते हैं वो भी पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। पर्यावरण के इस जैविक तथा अजैविक तत्त्वों से परस्पर सम्बन्धों को जानने के बाद हमारी जिम्मेदारी ये होनी चाहिए कि हम जैसे अपने परिवार वालों और अपनी सम्पत्ति की सुरक्षा की चिंता करते हैं वैसे ही हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा की चिन्ता होनी चाहिए क्योंकि पर्यावरण नहीं, तो हम नहीं। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिये। आइये पर्यावरण के उपर्युक्त घटकों को संक्षिप्त रूप में समझने का प्रयास करें।

पर्यावरण का भौतिक/अजैविक घटक

पर्यावरण के भौतिक/अजैविक तत्त्वों की विशेषताओं के आधार पर पर्यावरण के भौतिक घटकों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1. ठोस — ठोस पदार्थ के अंतर्गत भूमि तथा धरती को सम्मिलित किया गया है। स्थल मंडल इसी के अंतर्गत आता है।

2. तरल – तरल पदार्थ के अंतर्गत जल एवं जलमंडल को शामिल किया गया है।

3. गैस- इसके अंतर्गत वायु तथा वायुमंडल शामिल है।

धरती- धरती सौरमण्डल का अनोखा ग्रह कहलाती है क्योंकि इस पर जीव-जन्तुओं एवं पेड़ पौधों के विकास तथा जीवन के लिये उपयुक्त परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं इन परिस्थितियों के लिये कई कारक जिम्मेदार हैं जिनमें से कुछ मुख्य परिस्थितियाँ हैं—

(i) एक मुख्य कारक है – सूर्य से धरती की दूरी। इस दूरी की वजह से पृथ्वी न तो बुध ग्रह की तरह गर्म है न ही बृहस्पति जैसे ग्रह की तरह ठण्डी। शुक्र और

(ii) वायुमंडल की उपस्थिति – पृथ्वी के चारों तरफ वायु का आवरण है जिसमें ऑक्सीजन गैस पाई जाती है जो सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का काम करती है, इस गैस के बिना जीवन संभव नहीं।

(iii) तापमान का नियंत्रण – वायुमंडल तापमान नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फलतः पृथ्वी पर दिन और रात, सर्दियों एवं गर्मियों के तापमान में बहुत अधिक अंतर नहीं होता। तापमान की विशेषताओं के कारण ही धरती पर जल का विशाल भंडार पाया जाता है। तापमान में परिवर्तन के कारण ही जल का संचरण जलमंडल, स्थलमंडल और वायुमंडल के बीच होता रहता है। जल के कारण ही धरती पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की विभिन्न जातियों का उद्भव और विकास संभव हो सका।

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