सामाजिक अध्ययन के मूल सिद्धान्त
सामाजिक अध्ययन के कुछ सिद्धान्त इस प्रकार है-
(1) सामाजिक अध्ययन एक अन्त: अनुशासित कोर्स है और इसकी सामग्री मानव अनुभवो व ज्ञान की अनेक अन्य शाखाओं से चुनकर ली जाती है।
(2) यह सामाजिक विज्ञानो की प्रयोगात्मक शाखा है, जिसे स्कूलो के पाठ्यक्रम में आगामी नागरिको में उचित अभिवृतियो, भावनाएँ तथा कौशल उत्पन्न करने के लिए रखा गया
(3) सामाजिक परिस्थितियों और समस्याएँ समय-समय पर बदलती रहती है, अतः सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र ऐसा है जो लगातार बढ़ता एंव परिवर्तनशील रहता है।
(4) सामाजिक अध्ययन की शिक्षण-पद्धति प्रयोगवादी दार्शनिकता पर आधारित है जो मानवता या किसी विशेष समाज की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करती है। तथा बालको को अपने देश, विश्व तथा भावी जीवन में सुन्दर जीवन व्यतीत करने की लिए सहायता प्रदान करती है।
(5) सामाजिक अध्ययन मानव तथा उसके सामाजिक जीवन का केन्द्र माना जाता है। और इसमें स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी प्रकार की बाते सम्मिलित है।
(6) सामाजिक अध्ययन मनुष्य के पिछले इतिहास की अपेक्षा उसके आधुनिक जीवन तथा समस्याओं पर अधिक बल देता है।
(7) इसकी सामग्री कॉलेज के विशिष्ठ अध्ययन से पूर्ण स्कूल स्तर की सामान्य शिक्षा के लिए उपयोगी है ताकि बालक उसे पर्याप्त रूचि व सरलता से पढ़ सके।
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