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Characteristics of Personality in Hindi | व्यक्तित्व की विशेषताएँ

Characteristics of Personality in Hindi
Characteristics of Personality in Hindi

Characteristics of Personality in Hindi (व्यक्तित्व की विशेषताएँ)

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में अब तक जो विचार प्रकट किए गए हैं उनका विश्लेषण करने पर इसकी सामान्य विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

ये विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. स्व-चेतना

स्व की चेतना या आत्म चेतना व्यक्तित्व की सर्वप्रमुख विशेषता है। गार्डनर मर्फी ने लिखा है कि “व्यक्ति अपने को जिस रूप में जानता है वही उसका स्व है।” जन्म के समय शिशु को स्व की चेतना नहीं होती। विकास के साथ ही साथ आत्म-चेतना का भी विकास होता है। आत्म-चेतना के ही कारण मानव को सभी जीवधारियों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारतीय दार्शनिक विचार परम्परा स्व को आत्मा के रूप में मानती है। स्व का बोध ही आत्मा का बोध है। स्व की चेतना में तीन घटक अनिवार्य रूप से विद्यमान होते हैं – ( 1 ) स्मरण शक्ति, ( 2 ) अनुभवों की पृष्ठभूमि ( 3 ) भाषा का विकास।

2. समाजिकता

समाजिकता व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता है। आधुनिक शिक्षा का एक – मुख्य उद्देश्य बालक को योग्य सामाजिक बनाना है। कुछ विद्वानों के अनुसार बालक के स्व का विकास सामाजिक पर्यावरण में ही होता है। व्यक्तित्व को समाज से पृथक् नहीं किया जा सकता। व्यक्तित्व के सामाजिक चेतना का विकास दूसरे लोगों के सम्पर्क में आने पर ही होता है। सामाजिकता व्यक्ति के व्यक्तित्व की उपयोगिता और अनुपयोगिता की अच्छी कसौटी है।

3. समायोजनशीलता

समायोजनशीलता व्यक्तित्व की तीसरी विशेषता है। व्यक्तित्व यदि सुसमायोजित नहीं है तो व्यर्थ है। विभिन्न परिस्थितियों के बीच क्रिया और व्यवहार में परिवर्तन करके स्वयं को समायोजित कर लेना श्रेष्ठ व्यक्तित्व का ही लक्षण है।

समायोजनशीलता की विशेषता के कारण व्यक्ति आन्तरिक द्वन्द्व से मुक्त हो जाता है। अपनी बुद्धि का प्रयोग कुशलतापूर्वक करता है। वास्तविकता को सही ढंग से समझता है। उत्तरदायित्व की भावना का पोषण करता है। आत्मसंयमी हो जाता है। परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन की क्षमता उत्पन्न कर लेता है। अच्छे सामाजिक सम्बन्धों का विकास कर पाता है और अच्छे स्वास्थ्य के साथ अपने पर्यावरण में सुख का अनुभव करता है।

4. निर्देशित लक्ष्य प्राप्ति

अच्छे व्यक्तित्व की चौथी विशेषता है- निर्देशित लक्ष्य की प्राप्ति। सफल व्यक्तित्व का लक्षण है ध्येय निष्ठा और कठिनाइयों के बाद भी उसे प्राप्त कर लेना। ध्येय-निष्ठा अमरत्व का पथ है। ध्येय-निष्ठ व्यक्तित्व वाले अपने कर्म और चरित्र में सदैव ही सत्वर प्रगति करते हैं। इसी आधार पर उनका व्यक्तित्व जीवित रहता है, मरता नहीं। निर्देशित लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले व्यक्ति कर्त्तव्यपरायण और उद्यमी होते हैं और जब तक वे अपने कार्य को श्रेष्ठतम रूप से नहीं कर लेते तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता।

5. दृढ़ इच्छा शक्ति 

दृढ़ इच्छा शक्ति व्यक्तित्व की पाँचवीं विशेषता है। इस शक्ति के कारण ही व्यक्ति में दृढ़ता उत्पन्न होती है। जिसके पास दृढ़ संकल्प है वह कठिनाइयों को आश्चर्यजनक ढंग से जीत लेता है। सुनिश्चित सिद्धान्तों के प्रति अविचलित मान्यता रखना ही समस्त संकल्पों की आत्मा होती है। जो व्यक्ति दृढ़ संकल्पों के वशीभूत होकर अपने सिद्धान्तों का परित्याग नहीं करता, सिद्धान्त भी उसे कभी असहाय नहीं छोड़ते। वह व्यक्तित्व आसानी से विघटित हो जाता है जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति का लेशमात्र भी अभाव है।

6. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

अच्छा स्वास्थ्य अच्छे व्यक्तित्व की छठवीं विशेषता है। रूचिकर वेश-भूषा से युक्त संगठित और निरोग शरीर पहली भेंट में ही अपना प्रभाव डालता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का होना भी अनिवार्य है। इन दोनों का सम्मिलित प्रभाव सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों पर पड़ता है।

7. एकता और समाकलन

व्यक्तित्व की सातवीं विशेषता है – एकता और समाकलन। व्यक्तित्व की पूर्णता उसकी एकता एवं समाकलन में निहित है। व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि तत्वों में एकता का होना आवश्यक है। प्रो० आलपोर्ट ने व्यक्तित्व के समाकलन के लिए यह आवश्यक माना है कि व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्यों का ज्ञान होना, उद्देश्यों की प्राप्ति से अधिक आवश्यक है। भाटिया ने लिखा है “व्यक्तित्व मानव की सब शक्तियों और गुणों का संगठन – और समाकलन है।”

8. विकास की निरंतरता

विकास की निरंतरता व्यक्तित्व की आठवीं और अंतिम – विशेषता है। व्यक्तित्व का विकास जीवन पर्यन्त चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तित्व का स्वरूप बदलता रहता है। गैरिसन एवं अन्य के अनुसार, “व्यक्तित्व निरंतर निर्माण की प्रक्रिया में रहता है।”

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