बुद्धि के स्पीयरमैन का सिद्धान्त
सन् 1904 ई0 में ‘स्पीयरमैन’ ने बुद्धि के दो तत्वों के रूप में माना। इनका मानना है कि बुद्धि में सामान्य रूप से दो तत्त्व होते हैं- (1) सामान्य (2) विशिष्ट। इन तत्त्वों को संक्षेप में स्पियरमैन ने ‘g, factor’ (g तत्त्व) और ‘s, factor’ (s तत्त्व) कहा-
(1) ‘g, factor’ यह तत्त्व व्यक्ति के हर प्रकार के कार्यों एवं व्यवहारों में सम्मिलित रहता है जो चित्र में स्पष्ट है।
(2) ‘s, factor’ – यह तत्त्व ‘g’ के साथ मिल करके मनुष्य के विभिन्न क्रियाकलापों का निर्धारण करता है।
स्पीयरमैन ने छात्रों एवं वयस्कों को कुछ परीक्षण दिये तथा आपस में इनके सहसम्बन्ध निकाले गये। यह पाया गया कि सभी परीक्षण धनात्मक रूप से सहसम्बन्धित हैं। इसका अर्थ है कि कोई ऐसा तत्त्व है जो सभी परीक्षणों में समाविष्ट है, सम्भवतः यही (सामान्य तत्त्व) है लेकिन ये परीक्षण आपस में पूर्णतया सहसम्बन्धित नहीं हैं, इससे स्पष्ट है कि परीक्षणों में कुछ भिन्नता या विशिष्टता है, सम्भवतः यही (विशिष्ट तत्त्व) है।
इस तथ्य का स्पष्टीकरण निम्नलिखित चित्र से स्पष्ट है-
स्पीयरमैन द्वारा दी गयी सहसम्बन्ध तालिका
Sub. | Eng. | Arithmatic | Geography | Art |
Eng. Arithmatic Geography |
X
.85 .75 |
.85
X .56 |
.75
.56 X |
.53
.58 .68 |
Art | .53 | .58 | .68 | X |
इसी सह सम्बन्ध के आधार पर इन्होंने सामान्यीकरण करके समानुपातिक समीकरणों का भी निर्माण किया। ये समीकरण थे –
r3.1 r4.2-r3.2 r4.1 = 0
r2.1 r4.3-r2.3 r4.1 = 0
r2.1 r3.4-r2.4 r3.1 = 0
गणितीय गणना के आधार पर स्पीयरमैन ने सहसम्बन्ध तालिका बनायी। इन सहसम्बन्धों में अन्तर है वे एक कारक न होकर दो कारकों के सम्मिश्रण के कारण, हैं, इस बात को उसने गणित के समानुपाती समीकरणों की कसौटी पर सिद्ध किया। यह सिद्धान्त तो देखने में बहुत सरल है लेकिन इसमें आलोचना के निम्नलिखित बिन्दु हैं-
1. सह सम्बन्धों तालिका के आधार पर प्राप्त श्रेणीबद्धता या समानुपात केवल एक सामान तत्त्व को प्रदर्शित करती है और विशिष्ट तत्त्व के बारे में मौन हैं।
2. सामान्य तत्त्व के बारे में केवल इतना ही पता है कि सामान्य तत्त्व है किन्तु इसका स्वरूप क्या है? इसके बारे में मौन है।
स्पीयरमैन का त्रिखण्ड सिद्धान्त
स्पीयरमैन ने ‘जी’ और ‘एस’ तत्त्वों के साथ-साथ आगे चलकर सामूहिक तत्त्वों जैसे- ‘यान्त्रिक योग्यता’ तथा ‘मानसिक गति’ इत्यादि का पता लगाया जो ‘सामान्य’ और ‘विशिष्ट’ दोनों योग्यताओं के बीच की खाई को पाट सके। इन्होंने 1927 ई० में यह संकेत किया कि ‘जी’ के अतिरिक्त अन्य सामान्य तत्त्व जैसे ‘सी’ का सम्बन्ध विचार प्रक्रिया में गति तथा निष्क्रियता से मुक्ति इत्यादि से तथा ‘डब्ल्यू’ का आत्म नियन्त्रण, संकल्प शक्ति एवं संलग्नता की शक्ति इत्यादि से है। कुछ परीक्षणों में अधिक सामान्य योग्यता की आवश्यकता पड़ती है तथा कुछ में कम। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है –
स्पीयरमैन के सिद्धान्त की कड़ी आलोचना हुई – उसके अनुसार प्रत्येक कार्य में कुछ सामान्य योग्यता तथा अलग-अलग विशिष्ट योग्यता होनी चाहिए। परन्तु फोरमैन, मेकेनिक एवं इंजीनियर के कार्य में साधारणतया एक ही प्रकार के योग्यता की आवश्यकता पड़ती है। थार्नडाइक ने सांख्यिकीय आधार पर आलोचना की जिसके अनुसार हममें ‘बुद्धि’ नहीं वरन् अनेक प्रकार की बुद्धियाँ हैं जो ऐसे अनेक तत्त्वों से बनी हैं, तथा एक-दूसरे को अतिच्छादित करती है। अतः इसे सामान्य, विशिष्ट और समूह खण्ड का संयोग मानना उपयुक्त नहीं।
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