भारत में वैश्वीकरण अपनाने के लिए किये गये प्रयास
भारत में वैश्वीकरण अपनाने के लिए किये गये प्रयास- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के दबाव में आकर भारत सरकार ने 1991 में जो स्थायित्व एवं संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम लागू किया, उसके निम्नलिखित तीन हिस्से थे- (i) ‘स्थायित्व’ जिसका मूलतः अर्थ यह था कि राजकोषीय घाटे को तथा मुद्रा पूर्ति में वृद्धि की दर को कम किया जाये, (ii) घरेलू क्षेत्र में अपनायी जाने वाली नीतियों का उदारीकरण (जिनका अर्थ है उत्पादन, निवेश, कीमतों इत्यादि पर लगाये जाने वाले नियंत्रणों को कम करना तथा साधनों के आवंटन को बाजार निर्देशों द्वारा निर्धारित करना), तथा (iii) विदेशी आर्थिक नीति में उदारीकरण करना अर्थात् वस्तुओं, सेवाओं, प्रौद्योगिकी और पूँजी के अन्तर्राष्ट्रीय प्र लगाये गये नियंत्रणों को कम करना और अंततः समाप्त कर देना। पर
वैश्वीकरण की ओर प्रयास
भारत सरकार ने 1991 के बाद वैश्वीकरण की ओर विभिन्न कदम उठाये हैं, उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
( 1 ) व्यापार नीति में उदारीकरण- भारत सरकार द्वारा एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए प्रयास किया गया जिसमें विदेशी व्यापार पर विनिमय और लाइसेन्स नियंत्रण (Exchange and Licensing Controls) की मात्रा को कम करने के साथ-साथ निर्यात को भी प्रोत्साहित किया जाये। व्यापार नीति में बहुत से नये आयाम भी किए गए हैं; जैसे- (i) रुपये के मूल्य में 18% का अवमूल्यन किया गया। (ii) निर्यातकों के लिए अग्रिम लाइसेन्सिंग प्रणाली को सरल बनाया गया। (iii) पूँजीगत माल के आयात की अनुमति दी गयी । (iv) व्यापारिक घरानों में 51% तक विदेशी पूँजी लगाने की अनुमति दी गयी । (v) खुले सामान्य लाइसेन्स (OGL) के अन्तर्गत पूँजीगत माल, कच्ची सामग्रियों और संघटकों के आयात के लिए उपयोगकर्ताओं की वास्तविक आवश्यकता की शर्त को हटा दिया गया। (vi) आयात-निर्यात 1997-2000 व आयात-निर्यात नीति 2000-2001 की घोषणा की गयी जिसका प्रमुख उद्देश्य निर्यात उत्पादन के लिए आयातों को उदारीकृत करना था।
( 2 ) उदारीकृत विनिमय दर प्रणाली- देशी व्यापार की दिशा में उदारीकरण का एक बहुत महत्त्वपूर्ण कदम यह था कि मार्च, 1992 में रुपये की आंशिक रूप से परिवर्तनीय और मार्च, 1994 में पूर्ण रूप से परिवर्तनीय बना दिया गया।
उदारीकरण नीति के अन्तर्गत सरकार ने चालू खाते के लिए स्वतंत्र विनिमय दर प्रणाली लागू कर रखी है। इस नीति के कारण आयातों में कमी होने की सम्भावना है क्योंकि आयात का मूल्य चुकाने के लिए आयातकर्त्ता को विदेशी मुद्रा खुले बाजार से क्रय करनी होती है जो सीमित मात्रा में है। इसका कारण यह है कि हमारे निर्यात, आयात की अपेक्षा कम हैं।
( 3 ) विदेशी विनिमय नीति में उदारीकरण- विदेशी विनिमय को आकर्षित करने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं-
(i) उच्च प्राथमिकता प्राप्त 34 उद्योगों में 51% तक विदेशी विनियोग की अनुमति बिना किसी रोक-टोक के प्रदान की जायेगी। यह सुविधा उन मामलों में ही उपलब्ध होगी जहाँ उत्पादन के लिए विदेशी पूँजी आवश्यक होगी।
(ii) यदि सम्पूर्ण उत्पादन निर्यात के लिए हो तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को 100% तक पूँजी विनियोग की अनुमति भी दी जा सकती है।
(iii) राष्ट्रपति द्वारा 8 जनवरी, 1993 को जारी किए गए एक अध्यादेश के द्वारा विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम (फेरा) 1973 को काफी उदार बना दिया गया। जून 2000 से फेरा (FERA) के स्थान पर विदेशी मुद्रा प्रबन्धन अधिनियम (FERA) लागू कर दिया गया।
(iv) अनिवासी भारतीय (NRI) तथा उनके पूर्ण स्वामित्व वाले विदेशी निकायों को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों तथा अन्य उद्योगों में शत-प्रतिशत विदेशी विनिमय करने की अनुमति है तथा इस प्रकार किए गए पूँजी विनियोग तथा उस पर होने वाली आय को प्रत्यावर्तित करने के सम्पूर्ण लाभ दिये जायेंगे।
भारत में विश्वव्यापीकरण के प्रभाव
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने पैर स्थापित कर लिए हैं। इन्होंने विश्वव्यापीकरण को तीव्रता प्रदान करने में काफी मदद की है। भारत में ब्रिटेन, अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड, इटली, द. कोरिया, नीदरलैण्ड, जापान आदि की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न हैं।
आज अधिकांश आधारभूत परियोजनाओं में विश्व की मशहूर कम्पनियाँ भारतीय भागीदारों के साथ सरलतापूर्वक काम कर रही हैं। हाल ही में संसद द्वारा बीमा क्षेत्र के निजीकरण से सम्बन्धित विधेयक को पास कर देने के बाद विश्व के कई देश भारत के बाजार में अपनी भूमिका की तलाश में जुटे हैं।
यहाँ तक कि कर्नाटक में बिजली उत्पादन के लिए जब कोजेण्ट्रीक्स ने परियोजना के हाथ वापस खींचने की बात की जो सरकार ने काण्टर गारण्टी देकर उसे मनाने की कोशिश की ताकि विदेशी पूँजी निवेशकों में यहाँ निवेश माहौल का कोई गलत संदेश न जाये ।
आज एशिया में चीन के बाद विश्व के जितने भी पूँजी निवेशक हैं, भारत में उद्यम लगाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।
- भूमंडलीकरण का अर्थ या वैश्वीकरण का अर्थ | वैश्वीकरण की विशेषतायें | वैश्वीकरण का प्रभाव
- वैश्वीकरण के लाभ और हानि | Vaishvikaran Ke Labh Aur Hani
- वैश्वीकरण के विषय में तर्क तथा इसे मानवीय एवं ग्राह्य बनाने के लिए सुझाव
- वैश्वीकरण एवं साम्राज्यवाद के बीच सम्बन्ध | वैश्वीकरण और साम्राज्यवाद में समानतायें | वैश्वीकरण और साम्राज्यवाद में असमानतायें
- भूमण्डलीय विकासशील देशों पर पड़ रहे प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
इसे भी पढ़े…
- निःशस्त्रीकरण का अर्थ और परिभाषा | निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता | निःशस्त्रीकरण के विपक्ष में तर्क
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि | CTBT Full Form in Hindi
- परमाणु अप्रसार संधि- Non Proliferation Treaty (NPT) in Hindi
- एशिया के नव-जागरण के कारण (Resurgence of Asia: Causes)
- एशियाई नव-जागरण की प्रमुख प्रवृत्तियाँ- सकारात्मक प्रवृत्तियाँ तथा नकारात्मक प्रवृत्तियाँ
- भारत पर 1962 के चीनी आक्रमण के कारण क्या थे? भारतीय विदेश नीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
- गुटनिरपेक्षता की कमजोरियां | गुटनिरपेक्षता की विफलताएं | गुटनिरपेक्षता की आलोचना
- शीत युद्ध का अर्थ | शीत युद्ध की परिभाषा | शीत युद्ध के लिए उत्तरदायी कारण
- शीत युद्ध के बाद यूरोप की प्रकृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इस कथन की विवेचना करो ?
- शीतयुद्ध को समाप्त करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- शीत युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- नवीन शीत युद्ध के स्वरूप एवं परिणामों की विवेचना करो?
- शीत युद्ध के विकास के प्रमुख कारणों की विवेचना करो।
- दितान्त अथवा तनाव शैथिल्य का अर्थ एवं परिभाषा | दितान्त के कारण
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- शीत युद्धोत्तर काल के एक ध्रुवीय विश्व की प्रमुख विशेषतायें का वर्णन कीजिए।
- शीतयुद्धोत्तर काल में निःशस्त्रीकरण हेतु किये गये प्रयास का वर्णन कीजिए।
- द्वितीय शीत युद्ध के प्रमुख कारण | नवीन शीत युद्ध के प्रमुख कारण | उत्तर शीत युद्ध के शुरू होने के कारक