निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएँ अथवा कठिनाई
“विश्व को सम्भावित परमाणु विध्वंस तथा पूर्ण विनाश से बचाना” सभी देशों का मुख्य उद्देश्य है और होना भी चाहिए। यद्यपि इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक मुख्य साधन निश्चय ही निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण है, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में निःशस्त्रीकरण का विषय सदा से ही एक जटिल तथा विवादास्पद विषय रहा है। एक ओर, विश्व जनमत स्पष्टतः शस्त्र नियंत्रण के पक्ष में है तो दूसरी ओर इस उद्देश्य को प्राप्त करने के रास्ते में बड़ी-बड़ी कठिनाइयां विद्यमान् हैं। वी.वी. डाइक (V.V. Dyke) द्वारा दी गई निम्नलिखित कठिनाइयां मुख्य रूप से निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण में बाधक रही हैं-
1. शस्त्रास्त्रों में बना रहने वाला निरन्तर विश्वास (Continued Faith in Armaments) – निःशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे पहली कठिनाई यह विचार है कि शस्त्रस्त्रों के कई महत्त्वपूर्ण कार्य हैं तथा वे कई उद्देश्यों को पूरा करते हैं, जब तक राज्य इस विचार पर निर्भर करते हैं या जब तक वे इनका परित्याग नहीं करते या इन पर कोई गम्भीर प्रतिबन्ध लगाना स्वीकार नहीं करते अथवा जब तक इस कार्य को पूरा करने वाला कोई अन्य विकल्प उनके सामने नहीं आ जाता, तब तक निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के सम्बन्ध में किए जाने वाले सभी प्रयत्न तथा वार्ताएं व्यर्थ ही रहेंगी।
2. शक्ति के अनुपात पर समझौते की समस्या (Problem of Agreement on Ratio of Strenth) – पूर्व स्वीकृति द्वारा निःशींकरण के रास्ते की एक अन्य मूलभूत कठिनाई इस तथ्य से पैदा होती है कि निःशस्त्रीकरण के किसी भी समझौते से पहले विभिन्न राष्ट्रों के पास जो शस्त्रास्त्र तथा सशस्त्र संस्थान हैं, उनका अनुपात निश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग-अलग राष्ट्रों के अलग-अलग शस्त्रों की संख्या तथा प्रकारों का निर्धारण करने का निर्णय करने के लिए कोई एक मापदण्ड नहीं है।
3. निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण के अनुपात पर समझौता लागू करने की समस्या (The Problem of implementing Disaramament/Arms Control Agree ments on Ratios)- यदि निःशस्त्रीकरण की इच्छा रखने वाले राष्ट्रों के बीच शक्ति के अनुपात में कोई समझौता हो भी जाता है तो भी निःशस्त्रीकरण के लिए एक रुकावट पैदा होगी। शक्ति निर्धारण के निश्चित अनुपात के बावजूद अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में विभिन्न राष्ट्र कम या अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति का मुख्य के आधार आधार केवल सैन्य शक्ति नहीं, क्योंकि सैन्य शक्ति भी भूगोल, जनसंख्या, नैतिक मनोबल तथा अन्य ऐसे ही भौतिक तथा मानवीय तत्त्वों पर निर्भर करती है। वे राष्ट्र जिनमें अनुपात पर शस्त्रास्त्रों तथा सैन्य शक्ति का निर्धारण होगा वे युद्ध के पक्ष तथा विपक्ष में विभिन्न कारणों से वे प्रेरित होंगे, इसलिए शस्त्रास्त्रों की मात्रा का अनुपात-निर्धारण भी निःशस्त्रीकरण की समस्या को हल नहीं कर सकता।
4. अविश्वास की समस्या (The Problem of Distrust) – विभिन्न राष्ट्रों के बीच भारी अविश्वास के अस्तित्व ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के रास्ते में कठिनाई पैदा कर दी है। जब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण के प्रति प्रगति सीमित तथा धीमी बनी रहेगी। विभिन्न राष्ट्रों द्वारा समय-समय पर पेश की गई निःशस्त्रीकरण की योजनाएं हमेशा डर तथा अविश्वास पर आधारित रही हैं और इसलिए इनमें हमेशा कुछ-न-कुछ आरक्षण तथा व्यर्थ की धाराएं मौजूद रहती हैं, जिन्हें राष्ट्र कभी नहीं मानते।
5. असुरक्षा (Insecurity)- अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के सामने निःशस्त्रीकरण से सम्बन्धित जो कठिनाई पेश आ रही हैं, वे असुरक्षा की भावना के कारण भी हैं। शस्त्रास्त्रों को सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है तथा निःशस्त्रीकरण को एक ऐसी स्थिति समझा जाता है जिसमें राष्ट्रों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा हो जायेगी। इसके अतिरिक्त टैंक, हवाई जहाज, राकेट, बम आदि के प्रदर्शन से किसी भी राज्य की शक्ति तथा उपलब्धि का प्रदर्शन करना सरल हो जाता है।
6. राजनीतिक शत्रुता तथा विरोध (Political Rivalry and Disputes ) – अपनी-अपनी सैन्य शक्ति तथा दूसरे राष्ट्रों पर अपना प्रभाव बढ़ाकर विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली बनने के प्रयत्नों के कारण उत्पन्न राजनीतिक शत्रुता निःशस्त्रीकरण की राह में कांटे बिछा देती है। विभिन्न राजनीतिक संकटों ने भी निःशस्त्रीकरण की ओर हो रही प्रगति की प्रक्रिया को कुंठित कर दिया है। राज्यों के बीच राजनीतिक शत्रुता, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शस्त्रों की होड़ का बहुत बड़ा कारण है। इस तरह यह निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण के रास्ते में हमेशा रुकावट बन कर खड़ी रही है।
इन छः मुख्य तत्त्वों के अतिरिक्त सैन्य तकनीकी की भारी गतिशीलता तथा आर्थिक व्यवस्था में शस्त्रास्त्र उद्योग का महत्त्व वर्तमान समय की दो मुख्य कठिनाइयां रही हैं। इनके साथ साथ प्रत्येक राष्ट्र का अपनी प्रभुसत्ता के साथ संकीर्ण प्रकार का प्रेम निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के रास्ते की कठिनाई है।
निष्कर्ष (Conclusion)- इस तरह निःशस्त्रीकरण के रास्ते में विभिन्न कठिनाइयां विद्यमान हैं तथा इस अवधारणा के साथ कितनी ही समस्याएं जुड़ी हैं। निःशस्त्रीकरण समझौते की सम्भावनाओं का विश्लेषण करते हुए श्लीचर (Schliecher) ने बड़ी अच्छी तरह सारे विषय का सार प्रस्तुत किया है- निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण पर अन्तर्राष्ट्रीय समझौते की सम्भावनाएं, इसका स्वरूप तथा प्रभाव कई मुख्य तत्त्वों पर आधारित हैं। इनमें से दो अनुकूल विशेषताएँ हैं (i) परमाणु युद्ध का डर, तथा (ii) शान्ति की इच्छा और यह विश्वास कि शस्त्रों के तनाव से युद्ध कठिनाइयां हैं- (i) राष्ट्रवाद तथा सप्रभुता की तत्त्व (ii) अनुपात की समस्या तथा (iii) राष्ट्रों के बढ़ते हैं तथा अनियंत्रित शस्त्र-दौड़ से अस्थिरताएं और जोखिम। दूसरी तरफ तीन गम्भीर बीच अविश्वास। दो अतिरिक्त तत्त्व- (i) निःशस्त्रीकरण को या फिर शस्त्र नियंत्रण को प्राथमिकता तथा (ii) राजनीतिक समस्याओं का निपटारा या फिर आर्थिक मुद्दों पर ध्यान समझौते के पक्ष तथा विपक्ष दोनों में शामिल किए जा सकते हैं। इन तत्त्वों में से रुकावट डालने वाले तत्त्व इस समय तक अनुकूल तत्त्वों से अधिक शक्तिशाली रहे हैं। लेकिन आज परमाणु निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियंत्रण के पक्ष में विश्व जनमत दृढ़ हो रहा है। नवम्बर 2001 में अमरीका तथा रूस ने अपने-अपने परमाणु शस्त्र भण्डारों में काफी कटौती करने का सैद्धांतिक रूप में निर्णय लिया। इसी प्रकार की एक नई संधि स्टार्ट-18 अप्रैल 2010 को अमेरिका व रूस ने शस्त्र नियंत्रण हेतु की। यह सन्धि 10 वर्षों के लिये की गयी है।
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