इजराइल संघर्ष के प्रमुख कारण
मध्यपूर्व में यहूदियों एवं अरबों के संघर्ष को स्थायी बनाये रखने के कई कारण और विवादास्पद मुद्दे हैं-
1. सीमा- विवाद- अरब-इजराइल संघर्ष का कारण सीमा विवाद है। इजराइल उत्तर में लेबनान, पूरब में सीरिया और जोर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र के अरब राज्यों से घिरा हुआ है। अरब राज्य इजराल के प्रबल विरोधी हैं और इनके साथ उसके सीमा विवादों के कारण प्रायः अशान्ति बनी रहती है। यद्यपि वे राज्य अब यह समझने लगे हैं कि इजराइल का समूलोन्मूलन नहीं हो सकता, फिर भी वे उसके पास 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्वीकृत विभाजन में निर्धारित प्रदेश को ही रहने देना चाहते हैं, किन्तु इजराइल के पास इस समय उससे अधिक प्रदेश हैं, अरब देश इसे वापस लेना चाहते हैं। इस कारण पड़ोसी अरब राज्यों से इजराइल के साथ प्रायः झगड़े होते रहते हैं।
2. शरणार्थियों की समस्या – इस समय पेलेस्टाइन से निकाले गये दस लाख से अधिक अरब शरणार्थी के रूप में पड़ोसी राज्यों में अत्यन्त दयनीय असह्य कष्ट भोग रहे हैं और इजराइल तथा अरब राज्यों में तनातनी का कारण बने हुए हैं। इन्हें न तो इजराइल वापस लेना चाहता है और न ही अरब राज्य इन्हें अपने राज्यों में बसाने के इच्छुक हैं।
जिस तर्क से यहूदियों के लिए पृथक् राज्य की आवश्यकता थी, आज वही तर्क फिलिस्तीनियों के पक्ष में है। फिलिस्तीनियों को भी एक सम्प्रभुतासम्पन्न राज्य की आवश्यकता है। पिछले 49 वर्षों में सोवियत संघ, अमरीकी, इजराइल व अरब देशों ने जितना खर्च युद्ध पर किया, उसका दसवां हिस्सा भी यदि इन शरणार्थी फिलिस्तीनियों को कहीं स्थायी रूप से बसाने में खर्च होता तो यह समस्या न के समान हो जाती और मानवता का बड़ा उपकार होता।
3. जोर्डन नदी के पानी का विवाद- जोर्डन नदी केवल 150 मील लम्बी है. फिर भी इजराइल तथा अरब राष्ट्रों के बीच में तीव्र कलह का कारण बनी हुई है क्योंकि यह सीरिया, लेबनान, इजराइल तथा जोर्डन के चार राज्यों में से होकर गुजरती है। इसके पानी के उपयोग के बारे में झगड़ा बढ़ जाने पर एरिक जानस्टन की योजना के अनुसार यह तय किया गया कि इसके जल का 67% भाग अरब राष्ट्र तथा 33% भाग इजराल अपने उपयोग करने में ताके। इजराइल ने अपने जल का उपयोग करने के लिए योजना आरम्भ कर दी। इससे अरब राष्ट्रों को यह भय हुआ कि इजराइल नगेव के मरुस्थल को हरा-भरा बनाकर अपने को समृद्ध बना लेगा। इजराइल जोर्डन नदी के अधिकांश जल को अपनी ओर ले जाने को प्रयत्नशील है, फलस्वरूप यह एक प्रधान समस्या हो गयी।
4. इजराइल की मान्यता का सवाल- अरब राज्य फिलिस्तीन में यहूदी राज्य की स्थापना को स्वीकार नहीं करते। वे इजराइल राज्य को मान्यता नहीं देते। इजराइल के जन्म काल से ही अरब राष्ट्र उसके अस्तित्व को मिटाने का प्रयास करते रहे हैं। जब तक इजराइल को मान्यता एवं सुरक्षा न मिल जाये तब तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सकता।
5. अधिकृत अरब क्षेत्रों को खाली करना- इजराइल ने विभिन्न युद्धों में कई अरब क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था, जैसे पश्चिम में गाजापट्टी एवं सिनाय, पूरब में पश्चिम किनारा (जोर्डन नदी का तट), उत्तर में गोलन पहाड़ियों, यरूशलम का अरब हिस्सा लेबनान का दक्षिणी क्षेत्र आदि। मिस्र तथा अन्य सभी अरब राष्ट्र इजराइल द्वारा अधिकृत किये गये सभी क्षेत्रों को वापस लेना चाहते हैं। दूसरी तरफ इजराइल इन क्षेत्रों को हड़पने की इच्छा रखता है। यरूशलम को उसने अपनी राजधानी बना लिया तथा गोलन पहाड़ी क्षेत्र को उसने अभी हाल में अपने देश में शामिल कर लिया। इजराइल की धारणा है कि इन पहाड़ियों से अरब सेनाएं गोलाबारी करती हैं, अतः उनकी वापसी का प्रश्न ही नहीं उठता।
6. फिलिस्तीनियों को आत्म निर्णय का मुद्दा- फिलिस्तीनी शरणार्थी लम्बे समय से आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग कर रहे हैं। मिस्र तथा अन्य अरब राज्य इजराइल के अस्तित्व को मान्यता देने लिए तेयार हैं, परन्तु वे जोर्डन नदी के तट (पश्चिम किनारा) और गाजापट्टी को मिलाकर स्वाधीन फिलिस्तीन राज्य का निर्माण करना चाहते हैं, परन्तु इजराइल न तो स्वाधीन फिलिस्तीन राज्य के निर्माण का इच्छुक है और न ही वह फिलिस्तीनियों को आत्म निर्णय के अधिकार देने के पक्ष में है। इजराइल गाजापट्टी तथा जोर्डन नदी के तट पर अपनी प्रभुता को बनाये रखना चाहता है।
7. इजराइली बस्तियों को हटाने की समस्या- इजराइल द्वारा अधिकृत अरब क्षेत्रों में इस समय अनेक यहूदी बस्तियां हैं। ये बस्तियां गाजापट्टी में रफिया नामक क्षेत्र में, शर्म अल-शेख के मार्ग पर, जोर्डन नदी की घाटी में, इज्जियोन खण्ड में, यरूशलम के पास तथा गोलन पहाड़ियों पर स्थित हैं। ये बस्तियां अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रतिकूल हैं। यहूदी बस्तियों को बसाकर इजराइल ‘वास्तविकता’ के तर्क को जन्म देना चाहता है। इन अधिकृत क्षेत्रों में अरबों की स्थिति दयनीय है, अपनी ही धरती पर वे परदेशी की तरह जीवन बिता रहे हैं।
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