राजनीति विज्ञान / Political Science

सार्क का भविष्य या दक्षेस का भविष्य पर संक्षिप्त लेख लिखिए।

सार्क का भविष्य या दक्षेस का भविष्य
सार्क का भविष्य या दक्षेस का भविष्य

अनुक्रम (Contents)

सार्क का भविष्य या दक्षेस का भविष्य

दक्षिण एशिया के बहुमुखी विकास क्षेत्रीय स्थिरता व सद्भावनापूर्ण वातावरण के सृजन के लक्ष्य से सन् 1985 में गठित दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) क्षेत्रीय देशों की एक ऐसी प्रमुख कोशिश है जिसके माध्यम से वे सार्क के चार्टर में उल्लिखित व्यवस्थाओं का अनुपालन करके पारस्परिक वैमनस्यता को तिलांजलि देकर सहयोग- पथ को निष्कंटक बना सकते हैं। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व परस्परावलम्बी स्वरूप उपलब्ध कराती हैं। यद्यपि सभी सदस्यों की विभिन्न प्रणालियों में साम्यता नहीं है तथापि कुछ ऐसे धार्मिक, सामाजिक व आर्थिक उभय कारक हैं जो उन्हें एक इकाई के रूप में विकसित होने की सम्भावनाओं में सेतु का कार्य कर सकते हैं। जहाँ एक ओर दक्षिण एशिया में राजनैतिक व सामरिक विभेद काफी प्रखर दिखाई देता है वहीं इस तथ्य से इन्कार नहीं कर सकते कि अन्य क्षेत्रीय संगठनों के मुकाबले सार्क अपने सम्पूर्ण इलाके का प्रतिनिधित्व करता है। दक्षिण एशियाई देशों की शासन पद्धतियों में भी पर्याप्त अन्तर है किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सम्पूर्ण क्षेत्र सदियों से एक सांस्कृतिक सूत्र में बंधा रहा है। नेपाल के अतिरिक्त सार्क के अन्य सभी राष्ट्र इस शताब्दी के प्रारम्भ तक एक ही शासन व्यवस्था (ब्रिटिश) के अन्तर्गत थे। समान सांस्कृतिक चेतना इस क्षेत्र के सभी राष्ट्रों को पारस्परिक मैत्री सूत्र में बाँधने का एक प्रमुख सूत्र तो रही हैं साथ ही विभिन्न देशों में फैले एक धर्म व भाषा के नागरिकों के मध्य मैत्री व सहयोग की भावनायें विकसित होना स्वाभाविक है। जितनी अधिक मुस्लिम आबादी पाकिस्तान में है उससे अधिक मुस्लिम भारत में हैं। श्रीलंका बौद्ध राष्ट्र है किन्तु वहाँ 26 लाख हिन्दू व 10 लाख मुस्लिम हैं। दक्षिण एशिया का यह धार्मिक स्वरूप जहाँ इस ओर एक क्षेत्र में दो राष्ट्रों को बाँटने का कार्य करता रहा है तो यही कारक उन्हें नजदीक लाकर मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करने में सहायक भी सिद्ध हो सकता है।

भाषा, दक्षिण एशिया के सांस्कृतिक स्वरूप को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के पूर्ववर्ती काल में यहाँ 136 कार्यकारी भाषा व 544 स्थानीय बोलियाँ मानी गयी थीं किन्तु साहित्य व स्थानीय कारणों से 15 प्रादेशिक भाषायें विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। भारत, पाकिस्तान व बंगलादेश में राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू व बंगाली भाषायें मान्यता प्रात हैं। इसी प्रकार नेपाल में नेपाली तथा श्रीलंका में तमिल व सिंहली भाषायें बोली जाती हैं। सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में 2/3 हिन्दू धर्मावलम्बी हैं तथा यहाँ की आबादी के 82.72 प्रतिशत हिन्दू, 11.2 प्रतिशत मुस्लिम, 2.6 प्रतिशत ईसाई, 1.9 प्रतिशत सिक्ख, 0.7 प्रतिशत बौद्ध तथा 0.47 प्रतिशत जैन हैं। अन्य शब्दों में भाषा, धर्म, संस्कृति व कला आदि ऐसे पहलू हैं जिसके पारस्परिक सामंजस्य से दक्षिण एशिया में पारस्परिक सहयोग बढ़कर क्षेत्रीय स्थिरता व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।

उक्त पहलुओं में साम्यता के बावजूद राजनैतिक दृष्टि से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय विवाद पर्याप्त मात्रा में परिलक्षित होते हैं। दक्षिण एशिया का प्रमुख व विशाल राष्ट्र होने के कारण अन्य सभी राष्ट्रों की सीमायें किसी न किसी रूप में भारत से जुड़ी हैं। जहाँ एक ओर भारत विश्व का विशाल प्रजातान्त्रिक राष्ट्र हैं वहीं श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश व मालदीव आदि देशा के शासन का स्वरूप नितान्त अस्थिर व अपरिपक्व हैं। धार्मिक दृष्टि से नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान व श्रीलंका में बन्द सामाजिक व्यवस्था है जबकि इस दृष्टि से भारत में खुला समाज है। इन सभी देशों का अपना राज्य धर्म है जबकि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन का केन्द्रीय राष्ट्र होने के कारण अन्य भी राष्ट्रों की विभिन्न समस्यायें भारत से जुड़ी हुई हैं। कश्मीर संकट, सियाचिन विवाद, कश्मीर में आतंकवादियों को प्रोत्साहन व समर्थन तथा क्षेत्रीय परमाणु मुक्त क्षेत्र सम्बन्धी मतभेद जैसे बिन्दुओं पर कई वार्ताओं व बैठकों के बावजूद भारत व पाकिस्तान के मध्य तनाव बना हुआ है। ग्लादेश के साथ गंगाजल-विवाद, चकमा शरणार्थी समस्या व सीमांकन विवाद, श्रीलंका के साथ तमिल सिंहली विवाद तथा नेपाल के साथ पारगमन सन्धि सम्बन्धी बिन्दुओं पर भारत व सम्बद्ध राष्ट्रों के सम्बन्ध मधुर नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परमाणु अप्रसार सन्धि (N.P.T.) निशस्त्रीकरण, उपनिवेश, हस्तक्षेप व आतंकवाद आदि मसलों पर भी सार्क सदस्यों में वैचारिक मतभेद हैं। सभी राष्ट्र गुटनिरपेक्ष होते हुए भी संकोच नहीं करते। इस संगठन के कुछ सदस्य राष्ट्र तो बड़ी शक्तियों से इस तरह जुड़े हैं कि अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु सैनिक सन्धियां करके इस संगठन पर ही कुठाराघात करते रहते हैं।

गरीबी, अशिक्षा, साम्प्रदायिकता एवं आतंकवाद जैसी समस्याओं से संत्रस्त इस क्षेत्र के राष्ट्रों के मध्य व्याप्त अविश्वास व घृणा की भावनायें सार्क के पथ को निरन्तर अवरुद्ध करती रही हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल व श्रीलंका के साथ भारत की जुड़ी विभिन्न द्विपक्षीय समस्यायें न केवल इस संगठन को लक्ष्य विमुख कर रही हैं अपितु समस्या समाधान की विभिन्न भारतीय पहलों के प्रति उनका कारात्मक दृष्टिकोण सहयोग भावनाओं को कुण्ठित कर रहा है। लघुता की हीन ग्रन्थि से त्रस्त पाकिस्तान को इस बात का निरर्थक भय है कि यदि सार्क अपनी मूल भावनाओं के अनुरूप चल निकला तो पाकिस्तानी बाजार में भारतीय माल की बाढ़ आ जायेगी। वह यह नहीं सोचता कि इस समय तो आयातित माल उसे महँगा पड़ता है वह भारत से आयात करने में अपेक्षाकृत सस्ता पड़ेगा। कपड़ा, चावल व चमड़े के सामान के निर्यात में भारत को अपना प्रतिद्वन्द्वी मानने के कारण पाकिस्तान यह चाहता है कि इस क्षेत्र में व्यापार गतिरोध बना रहे। ध्यातव्य है कि गरीबी, बेरोजगारी, तस्करी व आतंकवाद जैसी समस्याओं से संत्रस्त दक्षिण एशिया में सहयोग व विकास की भावनाओं को त्वरित गति देने में भारत व पाकिस्तान की विशेष भूमिका हो सकती है। अतएव, दोनों ही देशों को अब संघर्ष के केन्द्रक कश्मीर समस्या के समाधान पर व्यावहारिक रुख अपनाने की दिशा में संतुलित व यथार्थपरक कदम उठाने होंगे। लेकिन इससे पूर्व पाकिस्तान को भारत के विरोधी राष्ट्र (Anti Nation of India) की अपनी मनोवैज्ञानिक ग्रन्थि से मुक्त होकर मैत्री व सहयोग की भावनाओं को अपनी विदेश नीति में समाविष्ट करना होगा। भारत व पाक के अतिरिक्त सार्क के अन्य सदस्यों को भी वार्ताओं के माध्यम से पारस्परिक विवादों के निस्तारण के प्रयास तीव्र करके उनके हल खोजने होंगे। सार्क के विशाल राष्ट्र होने के कारण भारत को अन्तर्राज्य-सम्बन्धों के पुनर्निर्धारण एवं क्षेत्रीय संघर्षों के समाधान की विशेष राजनैतिक पहल तो करनी ही होगी साथ ही साथ सदस्यों में यह भावना व विश्वास उत्पन्न करने का भी प्रयत्न करना होगा कि वह सबके साथ बराबरी का दर्जा रखता है। अतएव जब तक इस संगठन के सभी राष्ट्र, संस्कृति, धर्म व राजनैतिक मतभेदों को भुलाकर एक इकाई के रूप में कार्य करने हेतु अभिप्रेरित नहीं होंगे तब तक वह क्षेत्रीय संगठन अपने लक्ष्य प्राप्ति में सफल नहीं हो सकता।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment