टी.एच. ग्रीन का स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार
महान आदर्शवादी दार्शनिक टी.एच. ग्रीन के स्वतन्त्रता व अधिकार सम्बन्धी विचारों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
1. स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में विचार- ग्रीन व्यक्ति के नैतिक विकास में सहायक तत्त्वों को ही स्वतन्त्रता मानता था। स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ उन सुविधाओं को प्राप्त करना है, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व में सहायक सिद्ध हो। ग्रीन के अनुसार, “एक मनुष्य तभी स्वतन्त्र है, जबकि वह उस स्थिति में है, जिसमें वह अपने व्यक्तित्व के आदर्श को प्राप्त कर सके, नियमों का पूर्णतः पालन करे और उन्हें स्वेच्छा से पालन करने योग्य माने, वह सब कुछ बन सके, जिसकी उसे इच्छा है और अपने जीवन को सार्थक बना सके अर्थात् प्रकृति के अनुसार जीवन व्यतीत कर सके। स्वतन्त्रता सीमित नहीं है। आत्मोन्नति ही स्वतन्त्रता है। सद्भावना स्वतन्त्रता है, दुर्भावना नहीं है।”
2. अधिकार के सम्बन्ध में विचार- ग्रीन का कथन है कि द्वारा मनुष्य की नैतिक प्रकृति में ही अधिकार निहित है तथा उसके आदर्श उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। दूसरे शब्दों में अधिकार वे दशाएँ हैं, जिनके अन्तर्गत व्यक्ति अपना नैतिक और बौद्धिक विकास कर सके, परन्तु वह माँग समाज द्वारा मंजूर होनी आवश्यक है। अतः अधिकार के लिए दो तत्त्व अनिवार्य है
(i) विकास के लिए व्यक्ति द्वारा सुविधाओं की माँग,
(ii) उन माँगों की समाज द्वारा स्वीकृति।
अपने अधिकार के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए ग्रीन ने लिखा है कि “किसी भी व्यक्ति को समाज कल्याण को महत्त्वपूर्ण मानने वाले समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त अधिकारों के अतिरिक्त अन्य कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। प्राकृतिक अधिकार अर्थात् प्राकृतिक स्थिति में अधिकार वस्तुतः अधिकारों के विपरीत है क्योंकि प्राकृतिक स्थिति व्यवस्थित समाज की स्थिति नहीं है। समाज के सदस्यों द्वारा सार्वजनिक कल्याण की भावना के बिना अधिकार हो नहीं सकते।”
अधिकार के उचित प्रयोग के लिए ग्रीन उन्हें कर्त्तव्यों के साथ जोड़ता है। उसके अनुसार-
“अधिकार कर्त्तव्यों के साथ ही माननीय है। अधिकार व नैतिकता अत्यधिक निकट है, परन्तु हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि नैतिकता की भाँति अधिकारों का आधार कानून ही है।”
राज्य का विरोध करने का अधिकार- ग्रीन राज्य के विरोध करने का अधिकार मनुष्य को सामान्य दशा में देने के लिये तैयार नहीं है। उसके अनुसार- “राज्य का विरोध केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिये” जैसे—
(i) जब व्यक्ति के मन में राज्य की भूलों के कारण उसके प्रति विरोध की भावना पनप रही है, तब उसे शान्त मन से सोचना चाहिये कि प्या भूल इतनी महत्त्वपूर्ण है यदि हाँ तो भी व्यक्ति के द्वारा राज्य का सर्वव्यापक विरोध नहीं करना चाहिये, बल्कि अत्याचारपूर्ण कानून या भूल का ही विरोध करना चाहिये।
(ii) यदि वह कानून न केवल उसकी वरन् समाज के अन्य लोगों की नजर में भी उतना ही महत्त्वपूर्ण हो, तो जनमत को अपने पक्ष में करने के उपरान्त ही राज्य का सक्रिय विरोध करना चाहिये।
(iii) यदि केवल के द्वारा सभी संवैधानिक साधनों के आधार पर इस अत्याचारपूर्ण कानून में परिवर्तन कराने की कोशिश सफल न रही हो, तो भी व्यक्त राज्य का विरोध कर सकता है।
राज्य के विरोध के अधिकार के सम्बन्ध में हीगल व ग्रीन के विचार समान नहीं है, जिसका वर्णन वेपर (Wayper) ने इस प्रकार किया है कि “ग्रीन और हीगल के विचारों का भेद किसी अन्य बात में इतना अधिक स्पष्ट नहीं है, जितना इस बात में कि व्यक्ति राज्य का विरोध करने में न्यायोचित हो सकता है।”
Important Links
- मैकियावेली अपने युग का शिशु | Maikiyaveli Apne Yug Ka Shishu
- धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना
- मैकियावेली के राजा सम्बन्धी विचार | मैकियावेली के अनुसार शासक के गुण
- मैकियावेली के राजनीतिक विचार | मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ
- अरस्तू के परिवार सम्बन्धी विचार | Aristotle’s family thoughts in Hindi
- अरस्तू के सम्पत्ति सम्बन्धी विचार | Aristotle’s property ideas in Hindi
- प्लेटो प्रथम साम्यवादी के रूप में (Plato As the First Communist ),
- प्लेटो की शिक्षा प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Plato’s Education System),
- प्लेटो: साम्यवाद का सिद्धान्त, अर्थ, विशेषताएँ, प्रकार तथा उद्देश्य,
- प्लेटो: जीवन परिचय | ( History of Plato) in Hindi
- प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव( Influence of Socrates ) in Hindi
- प्लेटो की अवधारणा (Platonic Conception of Justice)- in Hindi
- प्लेटो (Plato): महत्त्वपूर्ण रचनाएँ तथा अध्ययन शैली और पद्धति in Hindi
- प्लेटो: समकालीन परिस्थितियाँ | (Contemporary Situations) in Hindi
- प्लेटो: आदर्श राज्य की विशेषताएँ (Features of Ideal State) in Hindi
- प्लेटो: न्याय का सिद्धान्त ( Theory of Justice )
- प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना | Criticism of Plato’s ideal state in Hindi
- प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधियाँ, तथा क्षेत्र में योगदान
- प्रत्यक्ष प्रजातंत्र क्या है? प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के साधन, गुण व दोष
- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं
- भारतीय संसद के कार्य (शक्तियाँ अथवा अधिकार)