राजनीति विज्ञान / Political Science

हॉब्स तथा लॉक के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन

हॉब्स तथा लॉक के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन
हॉब्स तथा लॉक के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन

हॉब्स तथा लॉक के सामाजिक समझौते के सिद्धान्त की तुलना 

सिद्धान्त की व्याख्या: सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के अनुसार राज्य न तो कोई ईश्वरीय रचना है और न स्वाभाविक संस्था है, बल्कि एक कृत्रिम संस्था है। इसकी उत्पत्ति न तो ईश्वर द्वारा हुई है और न वह स्वयंमेव बन गया है, बल्कि इसका जन्म व्यक्तियों के पारस्परिक समझौते के फलस्वरूप हुआ है। मनुष्यों ने जानबूझकर ऐच्छिक रूप से राज्य की स्थापना की है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य की स्थापना के पूर्व मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में रहता था और इस अवस्था में रहने में जब असुविधा हुई तो उसने एक समझौते द्वारा राज्य का निर्माण किया। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि सामाजिक समझौता के सिद्धान्त के अनुसार मानव समाज के दो भाग हैं ( 1 ) राज्य की स्थापना से पहले का, (2) राज्य की स्थापना के बाद का राज्य की स्थापना से पूर्व के समय को सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के प्रवर्तक हॉब्स; लॉक और रूसो इसे प्राकृतिक अवस्था कहते हैं और बाद की अवस्था को वे नागरिक समाज के नाम से पुकारते हैं। मनुष्य प्राकृतिक अवस्था से इस नागरिक समाज में एक सामाजिक समझौता के माध्यम से आया। इस प्रकार सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के सार निम्नलिखित तत्त्वों में निहित हैं—(1) प्राकृतिक अवस्था, (2) समझौता तथा (3) नागरिक समाज

1. प्राकृतिक अवस्था- सामाजिक समझौते के द्वारा राज्य की स्थापना हुई है, परन्तु इसके पूर्व का जो समय था उसे प्राकृतिक अवस्था के नाम से पुकारा जाता है। प्राकृतिक अवस्था की दशा के विषय में समझौता के सिद्धान्त के समर्थक एकमत नहीं है। हॉब्स कहते हैं कि इस अवस्था में मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं था और जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत चरितार्थ होती थी, जबकि लॉक यह मानते हैं कि प्राकृतिक अवस्था आदर्श और परम-सुख की अवस्था थी और उसमें लोग स्वर्गीय आनन्द का उपभोग करते थे दोनों के विचारों में प्राकृतिक अवस्था में पर्याप्त मतभेद है। हॉब्स के अनुसार “प्राकृतिक अवस्था बड़ी दयनीय थी। इसमें मनुष्य क्रूर, स्वार्थी तथा अहंकारी था। प्रत्येक मनुष्य दूसरे का दुश्मन था और सुख की प्राप्ति के लिए दूसरों पर अधिकार जमाना चाहता था। ऐसी स्थिति में केवल संघर्ष की प्रवृत्ति थी। जिसे मार सको मारो, जो छीन सको छीनो। यही उस समय का नियम था और इसे दूर करने के लिए ही लोगों ने समझौते द्वारा राज्य की स्थापना की।” इस सम्बन्ध में लॉक के विचार हॉब्स से बिल्कुल ही भिन्न है। उसके अनुसार प्राकृतिक अवस्था शान्ति, सद्भावना पारस्परिक सहायता तथा सुरक्षा की अवस्था है। यह ऐसी अवस्था थी, जिसमें स्वतन्त्रता थी, किन्तु स्वछन्दता नहीं थी। लॉक के शब्दों में “यद्यपि यह प्राकृतिक अवस्था है, परन्तु उसे अपने को नष्ट करने की स्वतन्त्रता नहीं है, जब तक कि ऐसा करने की आवश्कता जीवन को बनाये रखने के अतिरिक्त किसी अन्य अच्छे उद्देश्य के लिए न हो।” लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में लोग विवेकपूर्ण थे। उसने लिखा है कि “सभी लोग समान और स्वतन्त्र हैं। इसलिए किसी के जीवन, स्वास्थ्य और सम्पत्ति को हानि मत पहुँचाओ।”

प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य प्राकृतिक विधियों का पालन करते थे। इस अवस्था में कुछ कमियाँ थीं। विधि तथा न्याय की कोई सर्वमान्य पद्धति न होने के कारण लोग अपनी इच्छानुसार नियमों का अर्थ निकालते थे। लोग अपने ही सम्बन्ध में सही मत को निश्चित नहीं कर पाते थे। इन कठिनाइयों के कारण प्राकृतिक अवस्था की शान्ति अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सकी। अतः लोगों ने प्राकृतिक अवस्था को छोड़कर, नागरिक समाज की स्थापना के लिए एक समझौता सम्पादित किया।

2. समझौता- प्राकृतिक अवस्था के अन्त में विभिन्न कारणों से मनुष्यों ने समझौता करके राज्य की स्थापना की। समझौता क्यों हुआ, इस सम्बन्ध में हॉब्स और लॉक के विचारों में तीव्र मतभेद है। हॉब्स का कहना है कि समझौता मनुष्यों ने जीवन रक्षा के लिए किया है। लॉक का विचार है कि यह समझौता प्राकृतिक अवस्था की असुविधाओं को दूर करने के लिए किया गया है। इस समझौते का स्वरूप क्या था? इस सम्बन्ध में भी समझौता के सिद्धान्त के प्रवर्तकों में मतभेद है। हॉब्स यह मानता है कि यह समझौता लोगों ने आपस में शासक को नियुक्त करने के लिए किया था। हॉब्स के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मैं अपने ऊपर शासन करने का अधिकार इस व्यक्ति अथवा इस समिति को सौंपता हूँ बशर्ते तुम भी उसे अपने ऊपर शासन करने का अधिकार सौंप दो।” इस प्रकार हॉब्स के अनुसार व्यक्ति अपने समस्त प्राकृतिक अधिकार शासक को सौंप देता है। शासन इस संविदा में कोई पक्ष नहीं था। वह तो समझौते का परिणाम है। उसे जिन अधिकारों को एक बार दे दिया जाता है उन्हें वापस नहीं लिया जाता है। इस कारण जनता का शासक के विरुद्ध विरोध करने का कोई अधिकार नहीं रहता। हॉब्स के अनुसार इस संविदा द्वारा एक नागरिक समाज की रचना होती है, नागरिक समाज को बनाने वाली सरकार में अन्तर नहीं किया है। इसके विपरीत लॉक मानता है कि एक समझौता न होकर दो समझौते हुए एक सामाजिक और द्वितीय शासकीय प्रथम समझौते द्वारा नागरिक समाज की स्थापना हुई और द्वितीय समझौते द्वारा सरकार की स्थापना हुई। पहली संविदा को नागरिक समाज की स्थापना के लिए लोगों ने आपस में किया। दूसरा समझौता एक ओर सम्पूर्ण जनता तथा दूसरी ओर शासक के बीच में हुआ। इस स्थल पर लॉक के विचार हॉब्स से भिन्न है। हॉब्स के अनुसार सरकार की स्थापना के बाद नागरिक समाज की स्थापना होती है, लेकिन लॉक के अनुसार, सर्वप्रथम नागरिक समाज की स्थापना होती है और उसके बाद सरकार की स्थापना हुई। इस समझौते में लॉक के अनुसार, जनता अपने सभी अधिकारों को शासन सत्ता को नहीं सौंपती। वे अपने कुछ ही अधिकारों को सामान्य सत्ता को प्रदान करती हैं। शेष अधिकार उसके पास बचे रहते हैं। यदि सरकार इन अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाती, तो जनता को यह अधिकार है कि वह सरकार को पदच्युत कर उसके स्थान पर दूसरी सरकार बनाये।

3. नागरिक समाज– समझौते का स्वरूप क्या था? एक समझौता हुआ या दो? इस सम्बन्ध में  कुछ विद्वानों में अवश्य मतभेद है, परन्तु इस सिद्धान्त को मानने वाले सभी विद्वान स्वीकार करते हैं यह समझौता अवश्य हुआ। इस समझौते के द्वारा ही नागरिक समाज या राज्य की स्थापना हुई। इस समझौते में मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार एवं प्राकृतिक कानून सदैव के लिये समाप्त हो गये और उनका स्थान राज्य के कानूनों ने प्राप्त कर लिया। आरम्भ में मनुष्य प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता था। इस प्राकृतिक जीवन से ऊबकर मनुष्य ने एक समझौता किया और इस समझौते के द्वारा ही राज्य की उत्पत्ति हुई। समझौते के पश्चात् लोगों ने अपने प्राकृतिक अधिकारों का परित्याग कर दिया और अपने विभिन्न अधिकार राज्य को सौंप दिये। इस प्रकार यह सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि राज्य की उत्पत्ति ईश्वर द्वारा नहीं बल्कि मनुष्य द्वारा एक समझौते के फलस्वरूप हुई है।

सिद्धान्त की आलोचना 

सामाजिक समझौता सिद्धान्त की आलोचना कानूनी, ऐतिहासिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण के आधार पर की गयी है। इसके बारे में निम्न तथ्य उल्लेखनीय हैं-

(1) यह सिद्धान्त ऐतिहासिक तथ्यों से परे है- यह सिद्धान्त किसी ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित नहीं है। यह कहना कि आदिम मनुष्य ने किसी एक स्थान पर एकत्र होकर राज्य की स्थापना की होगी पूर्णतया गलत और भ्रामक है। ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, जिससे यह पता चले कि आदिम मनुष्य ने किसी समझौते द्वारा राज्य की स्थापना की हो।

(2) यह सिद्धान्त तार्किक नहीं है- इस सिद्धान्त के अनुसार प्राकृतिक अवस्था को पार करने वाले व्यक्तियों ने समझौता द्वारा राज्य का निर्माण किया। इतिहास में इस प्रकार का कोई उदाहरण नहीं मिलता। यह सिद्धान्त आदि मनुष्य को स्वतन्त्र मानता है। इसके अनुसार वह स्वतन्त्र व्यक्तियों से समझौता करता है। परन्तु यदि आदि काल के बारे में की गयी खोजों के अनुसार, आदिम काल में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं था।

(3) यह सिद्धान्त कानूनी दृष्टि से गलत है- समझौते का सिद्धान्त कानूनी दृष्टि से गलत है। ग्रीन के शब्दों में, “अस्थायी नागरिक सत्ता की स्थापना करने वाला समझौता वैध नहीं हो सकता। ऐसे समझौते के पीछे शक्ति नहीं होती, जो उसे वैध बना सके।”

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