राजनीति विज्ञान / Political Science

जॉन लॉक को उदारवाद का जनक क्यों कहा जाता है?

जॉन लॉक को उदारवाद का जनक क्यों कहा जाता है?
जॉन लॉक को उदारवाद का जनक क्यों कहा जाता है?

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जॉन लॉक को उदारवाद का जनक

प्राचीनकाल से स्वतन्त्रता को मानव जीवन का एक महान लक्ष्य माना जाता था, लेकिन इसे राजनीतिक विचार के केन्द्रबिन्दु का स्थान प्रदान करने का श्रेय उदारवादी दर्शन को प्राप्त है। स्वतन्त्रता की समस्या और मानव मात्र के लिए इसकी प्राप्ति के उपायों पर सबसे अधिक ध्यान उदारवाद ने दिया है।

उदारवाद के समर्थकों में सबसे महत्त्वपूर्ण जॉन लॉक हैं। लॉक ने अपने दर्शन में स्वतन्त्रता को शासन के सर्वोच्च लक्ष्य का स्थान प्रदान किया है, इसीलिए इनको उदारवाद की आत्मा कहा जा सकता है। उदारवाद के निम्न दो रूप प्रचलित रहे हैं। पुरातन उदारवाद और नवीन उदारवाद। पुरातन उदारवाद का प्रतिपादन जेमन मिल, जैकरसन और टामसन येन के द्वारा किया गया। यह राज्य को श्रेष्ठतम अवस्था में भी एक बुराई मानता है, उसे केवल एक प्रहरी का ही रूप प्रदान करता है और राज्य के कार्यक्षेत्र को सीमित रखने के ही पक्ष में है, लेकिन लोक उदारवाद की नवीन विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है और शासन की स्वतन्त्रता की प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन मानता है। लॉक उदारवादी इस बात में है कि वह शासन को व्यक्ति की स्वतन्त्रता की प्राप्ति का एक आवश्यक साधन मानते हुए यह कभी नहीं भूलते हैं कि शासकीय शक्ति की मर्यादाएँ निर्धारित की जानी चाहिए, जिससे कि इस शक्ति को मानवीय स्वतन्त्रता के विरुद्ध न प्रयोग किया जा सके। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने लिखा है कि-

डनिंग के अनुसार, “हॉब्स और पूकेण्डोर्फ के द्वारा सामाजिक समझौते के आधार पर राजनीतिक संघ के निर्माण की पद्धति शासकीय सत्ता की असीमितता का प्रतिपादन करने के लिए अपनायी गयी है, लेकिन लॉक इस पद्धति के आधार पर शासकीय सत्ता को सीमित करने में ही प्रयत्नशील रहा है। “

ए. हैकर के अनुसार, “जबकि सभी पूर्वगामी विचारकों ने राज्य को अधिक सुदृढ़ बनाने के प्रयत्न किए, लॉक प्रथम विचारक हैं कि जिसने राज्य संस्था को कमजोर बनाने और उसकी शक्तियों को सीमित करने का प्रयत्न किया।”

जॉन लॉक का यह मानना है कि व्यक्तियों को प्राकृतिक अवस्था में कुछ प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे और राजनीतिक समाज की स्थापना के बाद भी उनके ये अधिकार पूर्णतया सुरक्षित रहे। इस सम्बन्ध में किसी ने लिखा है कि-

डनिंग के अनुसार, “व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार सम्प्रभु समाज के अधिकारों को ठीक वैसे ही सीमित करते हैं, जिस प्रकार प्राकृतिक अधिकार अन्य व्यक्तियों के प्राकृतिक अधिकारों को सीमित करते थे।”

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