राजनीति विज्ञान / Political Science

जॉन लॉक का व्यक्तिवाद सिद्धांत | Locke’s Individualism in Hindi

जॉन लॉक का व्यक्तिवाद सिद्धांत
जॉन लॉक का व्यक्तिवाद सिद्धांत

जॉन लॉक का व्यक्तिवाद सिद्धांत

व्यक्तिवाद लॉक के विचारों की आधारशिला है और लॉक उसका परम भक्त एवं उपासक। वाहन के शब्दों में “लॉक के दर्शन में प्रत्येक बात व्यक्ति के इर्द गिर्द घूमती है और प्रत्येक बात का समाधान इस रूप में किया जाता है कि जिससे व्यक्ति की सम्प्रभुता सुनिश्चित रहे।” इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि लॉक के सम्पूर्ण राजदर्शन की आधारशिला व्यक्ति है। उसने अपने राज्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन व्यक्तिवादी विचारधारा के अनुकूल किया है। मैक्सी के शब्दों में— “लॉक का कार्य राजसत्ता को ऊँचा उठाना नहीं अपितु उसके प्रतिबन्धों का प्रतिपादन करना है।”

1. सम्पूर्ण राजनीतिक दर्शन व्यक्तिवाद पर आधारित- लॉक पूर्णतया एक व्यक्तिवादी है तथा उसके दर्शन में प्रत्येक बात व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। प्राकृतिक स्थिति का चित्रण करते हुए उसे एकमात्र चिन्ता व्यक्ति की है। सामाजिक जीवन का अस्तित्व प्राकृतिक एवं राजनीतिक दोनों स्थितियों में व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए है। राजनीतिक समाज का निर्माणकारी तत्त्व भी व्यक्ति ही है। समाज भी व्यक्ति के अधिकारों से मर्यादित है। राज्य की सत्ता तथा शासन का उद्देश्य भी व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना है।

2. राज्य के निर्माण का आधार जन इच्छा- लॉक के अनुसार राज्य का निर्माण जन-इच्छा के आधार पर होता है। किसी भी व्यक्ति को अपनी इच्छा के विरुद्ध राज्य का सदस्य बनने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। सभी व्यक्ति जन्म से स्वतन्त्र होते हैं। अतः वे किसी भी राज्य की सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार लॉक व्यक्ति को राज्य में सम्मिलित होने अथवा न सम्मिलित होने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है।

3. राज्य की शक्ति पर प्रतिबन्ध- लॉक का विचार है कि राज्य को वे ही अधिकार और शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो व्यक्ति ने उसे प्रदान की है। ये शक्तियाँ किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को न सौंपकर सम्पूर्ण समाज को प्रदान की गयी है। अतः लॉक ने हॉब्स के समान निरंकुश सम्प्रभु की कल्पना नहीं की है। उसकी शक्तियाँ और अधिकार वे ही हैं, जो कि समाज ने उसे प्रदान किये हैं। डनिंग के शब्दों में “व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाज के व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार दूसरे व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों को मर्यादित करते हैं।”

4. राज्य साधन है व्यक्ति साध्य है- लॉक इस दृष्टि से भी पूर्ण व्यक्तिवादी हैं कि वह प्राकृतिक अवस्था, सभ्य समाज, समझौता और राज्य सभी को उत्पत्ति का कारण व्यक्ति को मानता है। लॉक के अनुसार सम्प्रभुता व्यक्ति में निहित है। राज्य का अस्तित्व केवल व्यक्तियों को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए है। इस प्रकार राज्य का निर्माण व्यक्ति के हितों की प्राप्ति के लिए एक साधन हैं।

5. न्यूनतम सम्पत्ति- लॉक ने राज्य के कार्यों को अत्यधिक सीमित कर दिया है। राज्य व्यक्ति के निजी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही ऐसे ही कानूनों का ही निर्माण कर सकता है। राज्य को केवल नकारात्मक कार्य करने की अनुमति प्राप्त है।

6. व्यक्तिगत सम्पत्ति- लॉक के व्यक्तिगत सम्पत्ति सम्बन्धी विचार उसकी कट्टरवादिता के परिचायक हैं। उसका विचार है कि व्यक्तिगत श्रम द्वारा अर्जित वस्तु व्यक्ति की निजी सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति को छीनने का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति अथवा राज्य को नहीं है।

7. प्राकृतिक अधिकारों की सुरक्षा- लॉक का विचार है कि प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति प्राकृतिक अधिकारों का प्रयोग समान रूप से करते थे। इन्हीं अधिकारों की प्राप्ति एवं सुरक्षा के लिए राज्य का निर्माण किया गया है। अतः राज्य का कार्य व्यक्ति के जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति को सुरक्षा प्रदान करना है। इस प्रकार राज्य का निर्माण व्यक्ति के अधिकारों के आधार पर होता है। इस प्रकार लॉक का प्राकृतिक अधिकार सम्बन्धी सिद्धान्त व्यक्तिवाद का समर्थक है।

8. व्यक्ति को राज्य का विरोध करने का अधिकार- लॉक ने अपने व्यक्तिवादी विचारों के अनुकूल व्यक्ति को राज्य का विरध करने का अधिकार प्रदान किया है। यदि राज्य अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता है, तो व्यक्ति को उसका विरोध करने का अधिकार प्राप्त हो । यदि राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य नहीं करता, तो व्यक्ति को उसका विरोध करने का अधिकार प्राप्त है। यदि राज्य कोई ऐसे कानूनों का निर्माण करता है, जो कि प्राकृतिक कानूनों के विरुद्ध है, तो व्यक्तियों को उसके विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार प्राप्त है।

9. प्राकृतिक कानूनों की धारणा तथा व्यक्तिवाद- लॉक की प्राकृतिक कानूनों की धारणा भी उसके व्यक्तिवादी विचारों के अनुकूल है। व्यक्ति को प्राकृतिक अधिकार प्राकृतिक कानून द्वारा ही प्राप्त होते हैं। अतः राज्य के कानून प्राकृतिक कानून के विपरीत नहीं अपितु उसके अनुकूल होने चाहिये। यदि ऐसा नहीं होता, तो व्यक्तियों को राज्य के विरुद्ध क्रान्ति करके उसको पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।

10. व्यक्ति को सुख एवं सुरक्षा- लॉक का दर्शन सुखवादी सिद्धान्त का प्रतीक है। प्राकृतिक अवस्था में राज्य का निर्माण व्यक्ति को अधिक सुख की प्राप्ति तथा उसके कष्टों के निवारणार्थ किया गया था। अतः राज्य का कार्य व्यक्ति के हितों का संरक्षण करना है। जब तक राज्य इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है, तभी तक उसका अस्तित्व है। यदि राज्य अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल होता है, तो व्यक्ति ऐसे राज्य के विरुद्ध क्रान्ति कर सकता है। डनिंग के शब्दों में, “व्यक्ति का सुख और सुरक्षा के अस्तित्व के लिए केवल अनिवार्य ही नहीं है, वरन् वे उद्देश्य है कि जिनके लिए सरकार का निर्माण किया गया है।”

लॉक के व्यक्तिवाद की आलोचना

लॉक के व्यक्तिवादी धारणा की आलोचना उसकी निम्नलिखित त्रुटियों के आधार पर की जाती है-

1. व्यक्तिगत समानता सम्भव नहीं है- लॉक ने सब व्यक्तियों को समानता का अधिकार प्रदान किया है, किन्तु शायद वह इस तथ्य को नहीं समझ पार कि व्यक्ति अपने स्वाभाविक गुणों के कारण असमान होते हैं।

2. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की अवहेलना- लॉक ने विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति को राज्य का विरोध करने का अधिकार प्रदान किया है, किन्तु ऐसा करने का अधिकार केवल बहुसंख्यक वर्ग को हैं। इस दृष्टि से उसने अल्पसंख्यक को इस अधिकार से वंचित रखा है।

3. अराजकता का साम्राज्य- राज्य के कार्यों का निर्धारण करते समय लॉक ने इसे नैतिक कार्यों से पृथक रखा है। नैतिकता के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकता है। अतः कुछ व्यक्ति अपने राज्य के कानूनों को अनैतिक कहकर उनका विरोध कर सकते हैं। इसका परिणाम अराजकता होगा।

4. बहुमत की निरंकुशता- लॉक ने बहुमत के शासन के विचार को स्वीकार किया है। उसका मत है कि अल्पमत को बहुमत का निर्णय अनिवार्य रूप से स्वीकार करना चाहिये। इसका तात्पर्य तो यह है कि अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, जिसकी सुरक्षा की गारण्टी उनको राज्य के निर्माण के समय दी गयी थी। इस प्रकार लॉक एक ओर तो प्राकृतिक अधिकारों को अपरिहार्य मानता है तथा दूसरी ओर अल्पसंख्यकों को उन अधिकारों से वंचित कर देता है। यदि व्यक्ति को स्वतन्त्रता का अधिकार है, तो कोई कारण नहीं कि अल्पसंख्यक अपने इस अधिकार का त्याग बहुमत की इच्छा पर कर दे।

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