वर्तमान शिक्षा पद्धति पर निबंध
प्राचीन समय में हमारी शिक्षा प्रणाली विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ थी। प्राचीन काल में रचनात्मक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था। हमारे देश के मनीषियों ने जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया था। ब्रह्मचर्याश्रम में शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रत्येक विद्यार्थी को गुरुकुल में रहकर तन, मन, धन से गुरु की सेवा करनी पड़ती थी। राजा-रंक में कोई भेद नहीं होता था। अतः शिक्षा का उद्देश्य मन की एकाग्रता और चिन्तन की क्षमता थी। प्राचीन काल में शारीरिक, आत्मिक तथा मानसिक विकास पर समान रूप से बल दिया जाता था।
वर्तमान शिक्षा पद्धति के गुण
वर्तमान शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा गुण यह है इससे देशवासियों में देश-प्रेम की भावना जागृत हुई है। हमारे देश के युवकों में निर्भीकता तथा वैचारिक स्वाधीनता का प्रादुर्भाव करने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली का प्रमुख योगदान रहा है।
इस प्रणाली ने ही रवीन्द्रनाथ, लाला लाजपतराय, मदनमोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस तथा जवाहरलाल नेहरू जैसे महान देशभक्त उत्पन्न किये हैं।
वर्तमान शिक्षा की दूसरी विशेषता नारी-जागृति के रूप में दृष्टिगोचर होती है। वर्तमान में नारी-जागरण का श्रेय वर्तमान शिक्षा पद्धति को ही है। इस पद्धति ही नारी में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न की है।
वर्तमान शिक्षा पद्धति ने देश में प्रचलित अन्ध-विश्वासों तथा कुरीतियों को मिटाने में अभूतपूर्व योग दिया है। आज हमारे देश युवा वर्ग ने वैज्ञानिक ढंग से शिक्षा प्राप्त करके इतनी बौद्धिक उन्नति कर ली है कि वह अन्ध-विश्वासों तथा कुरीतियों में लेशमात्र भी आस्था नहीं रखता।
वर्तमान शिक्षा पद्धति के दोष
वर्तमान शिक्षा पद्धति में गुणों की अपेक्षा दोष अधिक है। इस शिक्षा प्रणाली का प्रधान उद्देश्य अंग्रेजी शासन को चलाने के लिए लिपिक पैदा करना तथा ईसाई धर्म का विस्तार करना है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भारतीय आदर्शों के लिए लेशमात्र भी स्थान नहीं है।
वर्तमान शिक्षा-पद्धति में बौद्धिक विकास की ओर ही ध्यान दिया जाता है। शारीरिक तथा चारित्रिक विकास की ओर लेशमात्र भी ध्यान नहीं दिया जाता। रात-दिन पुस्तकें रटकर, परीक्षा में पास हो जाने को आज का विद्यार्थी अपनी अद्भुत सफलता समझता है।
आज की शिक्षा विद्यार्थी को स्वावलम्बी न बनाकर पराश्रित बनाती है। इसका प्रधान कारण यह है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में उद्योग-धन्धों, दस्तकारी तथा व्यावसायिक शिक्षा का पूर्णतः अभाव है। मूलतः आज का विद्यार्थी बाबूगीरी ही करना चाहता है। इसके फलस्वरूप देश में बेकारी की समस्या ने भयंकर रूप धारण कर लिया है। शिक्षितों में तो बेकारी की समस्या दिन-रात बढ़ती ही चली जा रही है।
वर्तमान शिक्षा पद्धति इतनी महँगी है कि वह पूँजीपतियों के लिए ही लाभदायक है। जिसके पास धन है, वह धन के बल पर मन्द बुद्धि होते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है, जबकि कुशाग्र बुद्धि वाले व्यक्ति धन के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली का ढाँचा पराधीनता के वातावरण में तैयार था। यह वह शिक्षा प्रणाली है, जिसका सूत्रपात्र लार्ड मैकाले ने अंग्रेजी शासन चलाने के लिए तैयार किया था, जिसका उद्देश्य लोगों को सभ्य तथा उत्तम नागरिक बनाना नहीं था, बल्कि शासन के पुर्जे लिपिकों को पैदा करना था। अंग्रेजों के द्वारा चलायी गयी शिक्षा प्रणाली नागरिकों के मस्तिष्क में दासता की भावना जगाने के लिए आज भी शिक्षा प्रणाली में ऐसे निकम्मे तथा निरर्थक विषयों का समावेश है, जो विद्यार्थियों के मस्तिष्क पर केवल बोझ हैं। इन विषयों में विद्यार्थियों की रुचि भी नहीं है, न जीवन में इनकी कोई उपयोगिता ही है। हुआ
शिक्षा पद्धति में परिवर्तन की आवश्यकता
अतः गुण-दोषों के विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। इसमें गुणों की अपेक्षा दोष अधिक हैं। राष्ट्र की उन्नति के लिए हमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन करना होगा। देश को इस समय बाबुओं तथा लिपिकों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इस समय ऐसे औद्योगिक एवं प्राविधिक शिक्षा पर बल देना होगा, जिससे छात्र भविष्य में स्वावलम्बी तथा परिश्रमी बन सकें। इससे देश फैली बेकारी की समस्या का अन्त हो जायेगा। हमें शिक्षा में ऐसी पद्धति समावेश करना होगा, जिसमें धर्म, चरित्र, सादा रहन-सहन, उच्च विचार, स्वावलम्बन एवं देश-भक्ति का समावेश हो ।
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