बढ़ती जनसंख्या रोजगार और समस्या
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) जनसंख्या वृद्धि के कारण, (3) जनसंख्या वृद्धि से हानि, (4) परिवार नियोजन से लाभ, (5) पंचवर्षीय योजनाएँ एवं परिवार नियोजन, (6) परिवार नियोजन के उपाय, (7) उपसंहार ।
प्रस्तावना
भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहाँ कभी दूध की नदियाँ बहती थीं, किन्तु आज अधिकांश बच्चों को दूध के रंग का भी पता नहीं है। आज असंख्य लोगों को रहने के लिए घर, तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र और खाने के लिए भरपेट भोजन भी नहीं मिल रहा है। ऐसा क्यों? इसका एकमात्र कारण है-जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि। जनसंख्या की इस अपार वृद्धि के कारण सम्पूर्ण देश की प्रगति अवरुद्ध हो रही है। भारत में विश्व की जनसंख्या का छठा भाग निवास करता है। सन् 1981 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 68.38 करोड़ थी, किन्तु, सन् 1991 की जनगणना के अनुसार यह संख्या बढ़कर 84.39 करोड़ हो गई। मार्च, सन् 2011 तक यह आंकड़ा 121 करोड़ तक पहुँच गया। यद्यपि जनसंख्या किसी देश अवा राज्य का प्रमुख तत्त्व है। इसके बिना किसी राज्य एवं जाति की कल्पना नहीं की जा सकती। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ कथन हमारे देश के लिए सत्य साबित हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि का यह दानव आज भारत के सामने मुँह खोले खड़ा है, क्योंकि जिस गति से भारत में जनसंख्या की वृद्धि हो रही है, वह अत्यधिक दुःखदायी है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण
भारत में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि के कुछ विशेष कारण हैं, जिनमें बाल-विवाह, दरिद्रता, मनोरंजन के साधनों का अभाव, अशिक्षा, गर्म जलवायु, रूढ़िवादिता, ग्राम क्षेत्रों में सन्तति-निरोध की सुविधाओं का कम प्रचार हो पाना, परिवार नियोजन के साधनों की अज्ञानता एवं पुत्र की अनिवार्यता इत्यादि इसके प्रमुख कारण हैं।
जनसंख्या वृद्धि से हानि
भारत की वर्तमान विभिन्न समस्याओं का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है। ‘ऋग्वेद’ का कथन है-“जहाँ प्रजा का आधिक्य होगा, वहाँ निश्चय ही दुःख एवं कष्ट की मात्रा अधिक होगी।” यही कारण है कि आज भारत में सर्वत्र गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी निम्न जीवन स्तर, सामाजिक कलह, अस्वस्थता एवं खाद्यान-संकट’ आदि अनेक समस्याएँ निरन्तर बढ़ रही हैं। निश्चय ही जनसंख्या का यह विस्फोट भारत के लिए अभिशाप है। अर्थशास्त्री माल्थस का विचार है कि “जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर गति से होती है, किन्तु उत्पादन अंकगणितीय गति से।” प्रो० कारसाण्डर्स का अनुमान है कि “संसार की जनसंख्या में एक प्रतिशत प्रति वर्ष की गति से वृद्धि हो रही है।” यदि यह वृद्धि दर बनी रही तो पाँच-सौ वर्ष पश्चात् मनुष्यों को पृथ्वी पर खड़े होने की जगह भी नहीं मिल पाएगी।”
हम सब जनसंख्या की वृद्धि से होने वाली हानियों के प्रति आज भी लापरवाह हैं। हम सब आज भी सन्तान को ईश्वर की देन मानते हुए उसके जन्म पर नियन्त्रण करना पाप मानते हैं। निश्चित ही जनसंख्या की वृद्धि का यदि यही क्रम रहा तो मानव जीवन अत्यधिक संघर्षपूर्ण एवं अशान्त हो जाएगा।
परिवार नियोजन से लाभ
समस्त प्राणी अपने जीवन को सुखी एवं व्यवस्थित बनाना चाहता है। ऐसा तब सम्भव होगा, जब व्यय का अनुपात आय के अनुकूल हो। व्यक्ति कम में भी अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दे सकता है और स्वयं को भी व्यवस्थित रख सकता है। परिवार सीमित रहे, इसका उपाय है परिवार नियोजन। वैसे, बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण रखने का सर्वोत्तम साधन ब्रह्मचर्य का पालन है; किन्तु इस भौतिकवादी युग में इसका पूर्णतया पालन सम्भव प्रतीत नहीं होता। नियोजित परिवार के लाभ हमारे देशवासियों से छिपे नहीं हैं। ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ का सन्देश अब जन-जन का कण्ठहार बन गया है। परिवार नियोजन का चिह्न ‘लाल तिकोन’ है जो ‘स्वास्थ्य, शिक्षा एवं समृद्धि’ अथवा ‘सुख, शान्ति और विकास’ का प्रतीक है। यह चिह्न ‘पति, पत्नी एवं बालक’ का भी सूचक है। परिवार नियोजन से देश, समाज तथा व्यक्ति तीनों को ही लाभ है। परिवार नियोजन अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन सुख एवं शान्ति से व्यक्त कर सकेगा, उसके रहन-सहन का स्तर ऊँचा हो सकेगा और वह अपने आश्रितों की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति करता हुआ उन्हें अधिक सुखी रख सकेगा। वास्तव में कम बच्चों वाले माता पिता अपने सभी बच्चों की शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य का समुचित प्रबन्ध अवश्य कर सकते हैं।
पंचवर्षीय योजनाएँ एवं परिवार नियोजन-प्रथम पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम केवल शहरी अस्पतालों तक ही सीमित रहा। केन्द्रीय सरकार ने 146 तथा राज्य ने 205 परिवार नियोजन केन्द्र शहरों व गाँवों में स्थापित किए। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम को गाँवों तक पहुँचाने की चेष्टा की गई। तृतीय पंचवर्षीय योजना में सरकार ने ग्रामीणों को परिवार नियोजन की आवश्यकता एवं उसके महत्त्व का ज्ञान कराकर उन्हें इस कार्यक्रम को अपनाने के लिए प्रेरित किया। चतुर्थ योजनाकाल में केन्द्रों की संख्या न बढ़ाकर पुराने केन्द्रों पर ही सुविधाएँ बढ़ाने का प्रयत्न किया गया। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन को राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक महत्त्व देकर यह कार्यक्रम के तीव्र क्रियान्वयन हेतु परिवार नियोजन अपनाने वाले दम्पतियों को पुरस्कार आदि देकर प्रोत्साहित किया गया। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने जनसंख्या विस्फोट पर नियन्त्रण हेतु ‘गर्भपात अधिनियम’ भी बनाया, जिससे अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने की वैधानिक समर्थन प्राप्त हुआ। छठवीं, सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं में भी सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान दिया। अब प्रत्येक गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले जाएँगे और वहाँ परिवार नियोजन सम्बन्धी पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी तथा जगह-जगह पर कैम्प लगाकर नवीन पद्धतियों के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम को गतिशील बनाया जायेगा।
परिवार नियोजन के उपाय
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) बच्चों की आयु में अन्तर रखने के लिए परिवार नियोजन सम्बन्धी सामग्री अपनाने की प्रेरणा दी जाए।
(2) अधिक बच्चों को जन्म देने वाले माता-पिता को हतोत्साहित किया जाए। इसके लिए उन्हें विभिन्न शासकीय सुविधाओं से वंचित रखा जाए, भले ही वे किसी भी वर्ग के हों।
(3) बाल-विवाह एवं बहु-विवाह जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाई जाए।
(4) परिवार नियोजन कार्यक्रम का व्यापक प्रचार किया जाए।
(5) विवाह की आयु में वृद्धि करके लड़कियों के लिए न्यूनतम आयु 20 तथा लड़कों के लिए 25 वर्ष निर्धारित की जाए। वर्ष
उपसंहार
आज हमारे देश में वे कुप्रथाएँ समाप्त होती जा रही हैं, जिनसे जनसंख्या में वृद्धि हो रही थी। बाल-विवाह जैसी कुप्रथा अब लगभग समाप्त हो गई है और शिक्षा का निरन्तर प्रसार हो रहा है। परिणामतः हम सभी भारतीय परिवार नियोजन के महत्त्व को जानकर जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए प्रयासरत हैं। चिकित्सा क्षेत्र में नवीन – पद्धतियों के आने से, गर्भ निरोध के साधनों के प्रति जनता का भय समाप्त हो गया है। यदि हम सभी समझदारी से काम लेते रहे और हमारी सरकार इस विषय पर प्रयत्नशील रही तो परिवार नियोजन कार्यक्रम हमारे देश का मुख्य कार्यक्रम बन जाएगा। यदि यह कार्यक्रम पूरी तरह से समाज का अंग बन गया तो हमारे देश और समाज अनेकानेक समस्याएँ स्वतः ही हल हो जायंगी।
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