आरक्षण वरदान या अभिशाप
‘आरक्षण’ एक विशेषाधिकार है, जो दूसरों के लिए बाधक और ईर्ष्या का कारण बन जाता है; किन्तु ‘आरक्षण’ समाज में आर्थिक विषमता को दूर करने का एक साधन भी है। भारत में आरक्षण का मुख्य आधार जातिगत ही रहा है। देश में आरक्षण का समर्थन करने वाले विभिन्न आधारों पर आरक्षण की माँग करते हैं। इनमें जातिगत एवं शैक्षणिक तथा आर्थिक आधार प्रमुख हैं, जो इस प्रकार हैं-
(अ) जातिगत एवं शैक्षणिक आधार
पक्ष में तर्क- 1. भारतीय संविधान में सामाजिक (जातिगत) एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन को ‘आरक्षण’ का आधार बनाया गया है, इसलिए यह विधिसम्मत है।
2. वास्तव में पिछड़ी जाति के योग्य और सुन्दर-सम्पन्न लड़के से भी ऊँची जाति के लोग शादी नहीं करते हैं और न उनके साथ समान व्यवहार करते हैं। मन्दिर, विवाह, यज्ञ आदि में ब्राह्मण पण्डित को ही बुलाया जाता है, किसी हरिजन पण्डित को नहीं। सफाई कर्मचारी आज भी अपना सामाजिक स्तर नहीं सुधार सका, इसलिए आरक्षण का आधार जातिगत ही स्वीकार किया गया है।
3. प्रतिभा तथा योग्यता किसी ऊँचे कुल की धरोहर नहीं है, वह तो किसी व्यक्ति में हो सकती है।
4. भारत में आर्थिक विषमता का मुख्य कारण सदियों से दलित और शोषित जातियों के उत्थान की दिशा में प्रयास न होना है। मानसिक गुलामी आर्थिक गुलामी की अपेक्षा अधिक हानिकारक होती है। पिछड़ी जाति अथवा अनुसूचित जाति के लोग मानसिक गुलामी के शिकार हैं, इसीलिए उन्हें आरक्षण की आवश्यकता है।
विपक्ष में तर्क- 1. जातिगत आधार पर आरक्षण करने से जातिवाद और अधिक दृढ होता जाता है। जब तक जातिगत आधार पर आरक्षण मिलता रहेगा, तब तक जातिगत पक्षपात की भावना समाप्त नहीं होगी।
2. जातिगत आधार पर आरक्षण दिये जाने से अयोग्य व्यक्तियों को भी महत्त्वपूर्ण पद मिल जाता है, जिससे कार्य-गति बढ़ने की अपेक्षा शिथिल हो जाती है और प्रशासनिक सेवाओं का स्तर गिर जाता है।
3. जातिगत आधार को मानकर किया गया आरक्षण इसलिए भी लाभदायक नहीं हो पाता, क्योंकि धनी और प्रभावी लोग ही इस सुविधा का लाभ उठा लेते हैं और जो इसके वास्तविक अधिकारी हैं, वे इस लाभ किसी एक विशेष वर्ग या समुदाय के अधिक लाभान्वित होने के कारण समाज में धनी वंचित रह जाते हैं। जाति के और निर्धन का अन्तर बढ़ता जाता है। भारत की वर्तमान स्थिति इसी का परिणाम है।
4. समाज में कर्म की महत्ता घट जाएगी और जन्म की महत्ता स्थापित हो जाएगी। समाज में ऊँच-नीच का भेदभाव बढ़ता ही जाएगा।
(ब) आर्थिक आधार पक्ष में तर्क
आर्थिक दशा को आरक्षण का मूल आधार मानने वाले अपने समर्थन में तर्क प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि अर्थ प्रधान युग में प्रतिष्ठा एवं अप्रतिष्ठा तथा विकसित एवं पिछड़ेपन का कारण धन ही है। सभी जातियों में धनी और निर्धन लोग होते हैं; इसलिए आरक्षण का सच्चा व न्यायोचित आधार ‘आर्थिक दशा’ ही उचित है।
विपक्ष में तर्क- आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के विपक्ष में मुख्य रूप से यह तर्क दिया जाता है कि प्रायः ऊँचे पदों पर ऊँची जाति के लोग ही नियुक्त होते हैं। यदि आरक्षण का आधार आर्थिक दशा को मान लिया जाएगा तो ऊँची जाति के निर्धन लोग भी इन पदों पर पहुँच जाएँगे, फलस्वरूप सामाजिक विषमता और अधिक बढ़ जाएगी।
संवैधानिक आधार- भारत में संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में ‘समानता के अधिकारों का विशद रूप में उल्लेख किया गया है और संविधान की धारा 15 की उपधारा 4 में अनुसूचित एवं पिछड़े वर्ग के लिए जातिगत आधार पर कुछ विशेष सुविधाओं और अधिकारों की व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरियों तथा लोकसभा व विधानसभाओं में निर्वाचित होने के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए गए हैं। प्रारम्भ में यह आरक्षण दस वर्षों के लिए किया गया था; पर आवश्यकतानुसार 10-10 वर्ष बढ़ाते हुए अवधि 2026 ई0 तक बढ़ा दी गई।
उपसंहार
भारत में आरक्षण को जिस प्रकार का राजनीतिक स्वरूप दे दिया गया है, वह इसकी मूल कल्याणकारी भावना पर ही कुठाराघात कर रहा है। इसका उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक शोषण से मुक्ति दिलाकर शोषित एवं दलित वर्ग का उत्थान करना था, किन्तु आज जाति-भेद को प्रोत्साहन देकर जाति-विद्वेष की भावना को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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