भ्रष्टाचार समस्या एवं समाधान पर निबंध
प्रस्तावना
भ्रष्टाचार किसी काल या स्थान से सम्बन्धित नहीं है। इसकी जड़ें समाज में गहराई तक छायी हुई हैं। आजकल भ्रष्टाचार के लिए दो बातें होना आवश्यक है— कोई कर्मचारी गैर-कानूनी रूप से कोई उपहार स्वीकार करता हो तथा द्वितीय यह कि वह कोई विशेष पद पर आसीन हो। भ्रष्टाचार रूपी वह नासूर आज बड़ी तेजी से पनप रहा है।
भ्रष्टाचार का अर्थ
भ्रष्टाचारी व्यक्ति सदैव सेवा और सहयोग की भावना को बहुत ही नाटकीय ढंग से पेश करता है। सही मायनों में वह इस सबसे बहुत दूर होता है। ‘सम्भ्रान्त’ कहे जाने वाले व्यक्ति जब सामाजिक हितों को त्यागकर व्यक्तिगत स्वार्थों को प्रधानता देने लगते हैं, अनुचित लाभों की आशा से समाज में कानून-विरोधी साधनों को अपनाते हैं तो यही सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार कहलाता है।
भ्रष्टाचार का अर्थ है-भ्रष्ट आचरण अर्थात् स्तर से गिरा हुआ आचरण प्रत्येक देश, जाति, धर्म अथवा समाज के कुछ पूर्व निश्चित सामाजिक, धार्मिक, नैतिक, आदर्श व मूल्य होते हैं, इन्हें तोड़ना ही भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं— रिश्वत, मुनाफाखोरी, मिलावट करना, भाई-भतीजावाद, काला धन आदि।
भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार
भारत में भ्रष्टाचार की समस्या देशव्यापी बन गयी है। जीवन का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह गया है। स्वर्गीय विनोबा भावे के शब्दों में तो आज भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन गया है। विभिन्न कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिए, कोई परमिट लेने के लिए, विदेश जाने के लिए, व्यापार में अधिक धन कमाने के लिए, यहाँ तक कि परीक्षा में पास होने के लिए या हत्या करके छूटने के लिए भी आज भ्रष्ट तरीकों का सहारा लिया जाता है। लोगों का नैतिक चरित्र गिर चुका है। राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर केवल स्वार्थ पूर्ति की जा रही है।
भ्रष्टाचार के कारण
भ्रष्टाचार के कुछ प्रमुख कारण निम्नवत् हैं (1) चुनाव प्रणाली का दोषयुक्त होना, (2) शिक्षा का गिरता स्तर, (3) निम्न कोटि का साहित्य, (4) चलचित्र, (5) दूरदर्शन (6) पाश्चात्य प्रभाव, (7) भ्रष्ट मंत्री एवं शासक, (8) उच्च जीवन स्तर की लालसा, (9) राष्ट्रीय चरित्र का अभाव।
भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय
भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय निम्नलिखित हैं—
(क) उच्च शिक्षा का प्रसार- भारत में भ्रष्टाचार सबसे अधिक शिक्षित वर्ग में है। अतः सबसे पहले शिक्षित वर्ग के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाया जाना चाहिए। बालकों को नैतिक व आध्यात्मिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा भी अवश्य दी जानी चाहिए।
(ख) समाज कल्याण संस्थाओं की स्थापना-भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समाज कल्याण संस्थाएं सहयोगी सिद्ध हो सकती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक नगर व गाँव में ये संस्थाएँ स्थापित की जाएँ।
(ग) राजनीतिक नेताओं के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाना- भ्रष्ट राजनेताओं के द्वारा भी कई प्रकार के भ्रष्टाचार होते हैं। मतदान में तो अनेक भ्रष्ट तरीके अपनाये जाते हैं। जो व्यक्ति चुनाव जीतकर सत्ता में आ जाते हैं, वे चुनाव प्रचार में व्यय की गयी राशि अनुचित साधनों से वसूलने का प्रयास करते हैं। इसी प्रकार अपने लाभों को देखते हुए लोग दल भी बदल लेते हैं। अतः सरकार द्वारा इस प्रकार के कानून बनाये जायँ कि नेता दल न बदल सकें। प्रत्येक नेता सच्चा, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और जनता का हित चाहने वाला हो।
(घ) प्रशासकीय सुधार-प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना आवश्यक है। जो व्यक्ति रिश्वत लेते हैं उन्हें तुरन्त नौकरी से हटाना चाहिए। प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कर्मचारियों को पर्याप्त वेतन दिया जाना चाहिए।
(ङ) पुलिस विभाग में सुधार- पुलिस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि शिक्षित व्यक्तियों को पुलिस सेवाओं में जाने के लिए, प्रेरित करना चाहिए। उन्हें इस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए कि उनका कार्य जनता की भलाई के लिए कार्य करना है।
(च) दण्ड व्यवस्था में सुधार- भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए आवश्यक है कि दण्ड व्यवस्था में सुधार किया जाय। जो सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जायँ उनका स्थानान्तरण करने के स्थान पर नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए और कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसा करने से ही व्यक्तियों में भ्रष्टाचार के प्रति भय उत्पन्न होगा और वे गलत कार्यों से दूर रहेंगे।
उपसंहार
भ्रष्टाचार देश की सबसे गम्भीर समस्या है। देश के अस्तित्व के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। अपने देश की रक्षा, प्रगति व राष्ट्रीय मूल्यों को बचाये रखने के लिए इस समस्या का युद्ध स्तर पर समाधान आवश्यक है।
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