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विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में अध्यापक की भूमिका

विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में अध्यापक की भूमिका
विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में अध्यापक की भूमिका

विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में अध्यापक की भूमिका

विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में अध्यापक की भूमिका- विद्यालयों में विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने का दायित्व भी शिक्षकों पर होता है। अध्यापक को चाहिए कि वह प्रत्येक बालक के समुचित विकास पर ध्यान रखे। अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों के वास्तविक मानसिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त करें और उनके मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन के लिये तत्पर रहे। मानसिक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में फ्रेंडसन (Frandsen) ने कहा है कि “मानसिक स्वास्थ्य का विकास, शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य और प्रभावशाली अधिगम की एक अनिवार्य शर्त दोनों हैं।”

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मानसिक स्वास्थ्य के उल्लिखित महत्व से अवगत होने वाले शिक्षक विद्यालय में उपलब्ध प्रत्येक साधन का प्रयोग बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति करने के लिये करते हैं। इस सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण प्रविधियों का वर्णन निम्नवत् है-

(1) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- बालकों के प्रति शिक्षक का व्यवहार नम्र, शिष्ट और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। पक्षपात या भेदभाव किए बिना उसे कक्षा एवं विद्यालय के समस्त बालकों के साथ समान और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

(2) प्रजातांत्रिक अनुशासन- विद्यालय में अनुशासन की स्थापना में विद्यालय के शिक्षकों का विशेष योगदान होता है और अनुशासन का मानसिक स्वास्थ्य से अनुलोम एवं प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अतः शिक्षकों को चाहिए कि कक्षा तथा विद्यालय का अनुशासन भय, दण्ड, दमन और कठोरता पर आधारित न होकर प्रजातांत्रिक सिद्धान्तों स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व व न्याय पर आधारित होना चाहिए। बालकों में स्व अनुशासन, आत्म-अनुशासन की भावना का विकास करने के लिये स्वानुशासन, प्रभावात्मक अनुशासन तथा अनुकरण द्वारा अनुशासन को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके साथ-साथ बालकों को उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपकर विद्यालय के प्रशासन में सहयोगी एवं भागीदार बनाना चाहिए। ऐसा करने से बालकों के मानसिक स्वास्थ्य को कठोर अनुशासन के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है तथा श्रेष्ठ मानसिक स्वास्थ्य में निरन्तर उन्नति होती रहती है।

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(3) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग- शिक्षण विधियों का बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उपयुक्त शिक्षण विधियों के अभाव में बालकों में अनेक प्रकार की मानसिक विसंगतियाँ, बुराइयाँ, कुण्ठा तथा बीमारियाँ घर कर लेती हैं जो उनके भावी जीवन को नुकसान पहुँचाती हैं। कक्षा के अलग-अलग मानसिक क्षमता के बालकों को दृष्टिगत रखते हुए उपयुक्त अनुकूलन शिक्षण सूत्रों, युक्तियों, प्रविधियों एवं विधियों का प्रयोग करना चाहिए।

(4) उपयुक्त पाठ्यक्रम का सम्प्रेषण- उपयुक्त शिक्षण   विधियों के साथ-साथ शिक्षकों को चाहिए कि कक्षा के बालकों को मानसिक वृद्धि, क्षमता, रुचि तथा ग्राह्यता को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त मात्रा में ही उनकी रुचि एवं बोधगम्यता एवं बोध क्षमता के अनुसार सम्प्रेषित करें। ऐसा करने से जहाँ एक ओर शिक्षक अपने शिक्षण अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होगा वहीं दूसरी ओर बालकों के मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में भी सफल होगा।

(5) अल्पगृह कार्य – कुछ शिक्षक प्रायः बालकों को इतना अधिक गृहकार्य दे देते हैं कि उसे समय से पूर्ण करना उनकी सामर्थ्य से परे होता है। बालकों द्वारा गृहकार्य को समय से पूर्ण न कर पाने के कारण वे दण्ड का विचार करके भय व चिन्ताग्रस्त हो जाते हैं। इससे उनमें मानसिक तनाव उत्पन्न होने लगता है।

अतः शिक्षकों को चाहिए कि छात्रों को केवल इतना की गृहकार्य दें जिसे वे सरलता से बिना किसी मानसिक तनाव के पूर्ण कर सकें। ऐसी मानसिक स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिये निश्चित रूप से हितकर साबित होगी।

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(6) पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन- शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यालयों में शिक्षण के साथ-साथ अन्य पाठ्य सहगामी क्रियाओं जैसे- खेलकूद, स्काउटिंग, योग, व्यायाम, प्रश्न प्रतियोगिताएँ, अभिनय, गायन, वादन, संगीत, नृत्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्वच्छता कार्यक्रम इत्यादि का आयोजन नियमित कार्ययोजना बनाकर अवश्य करें। ऐसा करने से बालक इनमें से किसी न किसी क्रिया को माध्यम बनाकर अपने संवेगों, इच्छाओं, मूल प्रवृत्तियों, विशिष्ट रुचियों, जन्मजात क्षमताओं इत्यादि को अभिव्यक्त करते हुए अपने मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने में सफल सिद्ध होगा।

(7) निर्देशन एवं परामर्श- शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यालय में अन्य शैक्षिक गतिविधियों के साथ-साथ निर्देशन एवं परामर्श की भी व्यवस्था करें। छात्रों के विषयगत समस्याओं का निर्देशन एवं निदान, भविष्य में पाठ्यक्रम/विषयों का चयन, कैरियर काउंसिलिंग, व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श को कुशलतापूर्वक प्रदान कर छात्रों को अवसाद या मानसिक अस्वस्थता से बचा सकता है।

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इसके साथ-साथ शिक्षक अपने विवेक के अनुसार छात्रों को आवश्यकतानुसार उनके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने हेतु अन्य कार्यकलापों का आयोजन या व्यवस्था कर सकता है। फ्रेंडसन ने बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के लिये शिक्षकों से निम्न कारकों को अपनाने की अपेक्षा एवं सलाह दी है –

(i) शिक्षण विधियों में मानसिक स्वास्थ्य के सिद्धान्तों का प्रयोग |

(ii) बालक एवं उनके साथियों के सम्बन्धों की देखभाल।

(iii) अभिभावक-अध्यापक सम्मेलन का आयोजन।

(iv) बालक के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के लिये शिक्षकों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सम्मिलित प्रयास ।

विद्यालय में स्वास्थ्य मेलों का आयोजन भी कारगर उपाय है।

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