सहकारी बैंक का अर्थ एवं परिभाषा
सहकारी बैंक का अर्थ एवं परिभाषा- “सहकारिता वह संगठन है जिसे लोग स्वतः ही समानता के अधिकारों के आधार पर अपनी आर्थिक समस्याओं की पूर्ति के लिए बनाते हैं।” सहकारिता में कुछ व्यक्ति धन एकत्रित करके आपसी लाभ की दृष्टि से समानता का अधिकार रखते हुए आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं। सहकारिता का सिद्धान्त यह है कि कुछ व्यक्ति आपस में मिलकर आपसी लाभार्थ कुछ आर्थिक क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं। इस संगठन से गरीब और निर्बल स्वावलम्बन, बचत तथा विनियोग के सिद्धान्तों को लेकर एक-दूसरे की सहायता करके आर्थिक उन्नति करते हैं। अतः सहकारिता के सिद्धान्त पर बनाये गये बैंक को ‘सहकारी बैंक’ कहते हैं। सहकारी बैंकिंग प्रणाली में कुछ साधनहीन आपस में मिलकर चन्दा इकट्ठा करके, अंश खरीदकर या लोगों से रुपया उधार लेकर एक कोष बना लेते हैं और उसमें से उत्पादन के लिए सदस्यों को रुपया उधार देकर सहायता दी जाती है। इस प्रकार के बनाये गये सहकारी कोष को ही ‘सहकारी बैंक’ कहते हैं।
सहकारी बैंक की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
( 1 ) डिवाइन के शब्दों में, “सहकारी बैंक एक पारस्परिक संस्था है जो कार्यशील वर्ग के द्वारा ही निर्मित तथा नियंत्रित होती है तथा जहाँ बचत को प्रोत्साहित किया जाता है एवं ब्याज तथा भुगतान की सरल शर्तों पर छोटे ऋण स्वीकार किए जाते हैं।”
( 2 ) प्रो. बेरोन के अनुसार, “सहकारी बैंक सदस्यता तथा सामूहिक स्वामित्व साधनों वाले व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संगठन है जिसका निर्माण प्रजातन्त्रीय आधार पर किया जाता है।
इस संगठन में सदस्यों की बचतों को जमा कर ब्याज तथा भुगतान की सरल शर्तों पर साख दी जाती है; अत्यधिक धन संचित कोष में रख लिया जाता है या उसे जमाकर्ताओं, ऋणियों तथा अंशधारियों में बाँट दिया जाता है।”
इन परिभाषाओं से सहकारी बैंकों के दो आवश्यक तत्व प्रकट होते हैं— (i) इनका निर्माण सहकारिता के सिद्धान्त पर आधारित हो, (ii) इनका उद्देश्य साख की सुविधाएँ प्रदान करना हो ।
भारत में सहकारी बैंकों का संचालन भारतीय सहकारिता अधिनियम के अनुसार होता है। अतः सहकारी बैंक वे बैंक हैं जिनकी स्थापना सदस्यों द्वारा अपने पारस्परिक लाभ के लिए की जाती है और जिन पर सहकारिता अधिनियम लागू होता है।
सहकारी बैंक की विशेषताएँ
सहकारी बैंक की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
1. ऐच्छिक संगठन- यह समिति साधनों वाले और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का ऐच्छिक संगठन है।
2. समान अधिकार- इसमें सभी सदस्यों का अधिकार व दर्जा समान रहता है।
3. थोड़ी-थोड़ी राशि- इसका उद्देश्य सदस्यों से थोड़ी-थोड़ी राशि अंश पूँजी के रूप में अथवा जमा राशि के रूप में लेना तथा उसमें से समय-समय पर उत्पादन कार्यों के लिए ऋण देकर उसकी सहायता करना है।
4. आत्मनिर्भरता- इनका उद्देश्य सदस्यों में आत्म-निर्भरता और परस्पर सहयोग की भावना पैदा करना भी होता है।
5. सहकारी कानून- सहकारी बैंकों का संचालन प्रायः सहकारी समिति कानून द्वारा सहकारी होता है।
बैंक व वाणिज्य बैंक में अन्तर (Difference between Co-operative Bank and Commerical Bank)—
सहकारी बैंक व वाणिज्य बैंक में अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
1. बैंकों पर बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (Banking Regulation Act. 1949) की सभी धाराएँ लागू हैं, जबकि सहकारी बैंकों पर इस अधिनियम की कुछ ही धाराएँ लागू हैं। इस तरह सहकारी बैंकों पर रिजर्व बैंक का नियन्त्रण केवल आंशिक है।
2. सहकारी बैंक सहकारिता के सिद्धान्तों पर चलते हैं, जबकि वाणिज्यिक बैंक विशुद्ध व्यापारिक सिद्धान्तों (Sound Business Principles) का अनुगमन करते हैं। यही कारण है कि रिजर्व बैंक सहकारी बैंकों को रियायती दर पर वित्तीय सहायता देता है।
3. सहकारी बैंक अलग-अलग राज्यों द्वारा बनाये गये सहकारी समिति अधिनियमों के अन्तर्गत स्थापित किये गये हैं जबकि वाणिज्य बैंक कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत संयुक्त पूँजीवादी कम्पनियों के रूप में गठित किये गये हैं।
4. सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों (Three Tier Set-up) वाला है, जबकि सहकारी बैंक अलग-अलग राज्यों द्वारा बनाए गए सहकारी समिति अधिनियमों के अन्तर्गत स्थापित किये गए हैं।
5. सहकारी बैंक केवल निर्धारित क्षेत्र में अपना काम-काज कर सकता है लेकिन अधिकांश वाणिज्य बैंकों की शाखाएँ अनेक राज्यों और देश के विभिन्न भागों में फैली हुई हैं।
6. सहकारी बैंक आधारभूत रूप से ही ग्रामोन्मुखी (Rural-oriented) रहे हैं और कृषि तथा उससे जुड़ी गतिविधियों के लिए ही वित्त सुलभ कराते हैं जबकि सन् 1969 तक वाणिज्यिक बैंक केवल नगरोन्मुखी (Urban-oriented) रहे और व्यापार तथा उद्योगों को वित्त की सुविधाएँ देते रहे।
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